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कविता अंधेरे में उम्मीद लगती है, पर अंधेरे से कभी उम्मीद नहीं लगाती

बिहार म्यूजियम में शनिवार को अर्थशिला और रजा फाउंडेशन की ओर से दो दिवसीय काव्य गोष्ठी

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 11:19 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 06:16 AM (IST)
कविता अंधेरे में उम्मीद लगती है, पर अंधेरे से कभी उम्मीद नहीं लगाती
कविता अंधेरे में उम्मीद लगती है, पर अंधेरे से कभी उम्मीद नहीं लगाती

पटना। बिहार म्यूजियम में शनिवार को अर्थशिला और रजा फाउंडेशन की ओर से दो दिवसीय काव्य गोष्ठी का आगाज किया गया। आयोजन के पहले दिन कथाकार अशोक वाजपेयी ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस मौके पर आलोक धन्वा, अरुण कमल, उदयन वाजपेयी, प्रेम कुमार मणि आदि मौजूद थे। वाजपेयी ने कहा कि कविता भाषा का रूप है, वही शिल्पित स्वरूप है। जितना कवि समय को गढ़ता है, उतना ही समय कवि को गढ़ता है। उन्होंने कहा कि कविता आत्मधर्म कभी नहीं छोड़ती। कविता अंधेरे में उम्मीद लगती है, पर अंधेरे से कभी उम्मीद नहीं लगाती। ये अहसास कभी नहीं होना चाहिए कि कविता जीवन से बड़ी है। उद्घाटन के बाद युवा कवियों ने अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। युवा कवियों में उपाशु ने बसेरे की यात्रा, वक्त के लिए, सुख और मेरी अमानत शीर्षक से जुड़ी कविताओं की प्रस्तुति की। इसमें भाषा से ऊपर कोई ढांचा नहीं, उम्र कट जाती है, सुख की खातिर, यार दो वक्त ही सही, आवाजें नहीं रहतीं बंद कमरों में आदि पंक्तियों को पेश किया।

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कवि अरुण कमल ने कहा कि कथा सुनने से ज्यादा आनंद कुछ नहीं होता। तकलीफ तब होती है जब उस पर बोलना पड़ता है। मैं हमेशा सोचता हूं और सीखने का प्रयास करता हूं। शुरू में आलोचना नहीं थी। कवि अपनी कथा सुनाते थे, तब तालिया खूब बजती थीं। तालियां बजवाना सबसे बड़ी आलोचना थी। धीरे-धीरे कवियों की रचनाओं की आलोचना होने लगी। युवा कवियों की रचनाओं पर आलोचना करते हुए वरिष्ठ कभी अरुण कमल ने कहा कि हर पीढ़ी अपने समय को नए ढंग से गढ़ रही है। इन सभी कवियों ने छंद का व्यवहार नहीं के बराबर किया है। अरुण कमल ने कहा कि प्रेम एक ऐसा विषय है जो जोखिम से भरा होता है। युवा कवि बिहार वैभव ने पूरी सभ्यता की आलोचना अपनी कविताओं में नए ढंग से की है। जो समाज से बाहर है, हाथों से बाहर है। युवाओं की रचनाओं पर टिप्पणी करते हुए अरुण कमल ने कहा कि आज के दौर में पाठकों में सुस्ती आ गई है, ऐसे में कवि और श्रोता दोनों को मेहनत करने की जरूरत है। कमल ने कहा कि युवा कवि को बड़े-बड़े पद का व्यवहार न करें। भाषा को तोड़ना पड़ता है, तब अर्थ पैदा होता है। हमेशा भाषा का निर्माण सामान्य लोग करते हैं, ऐसे में भाषा को सरल रखने की जरूरत है। भाषा में ढीलापन जरूरी है। आवेश के क्षण में कवि को भाषा पर ध्यान देने की जरूरत है।


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