Bihar Lok Sabha Election Phase 7: पटना साहिब पर दो दिग्गजों के बीच दिख रही दुश्मनों की दोस्ती
Bihar Lok Sabha Election Phase 7 लोकसभा चुनाव प्रचार में अन्य जगह तो विरोधियों में तल्ख जुबानी जंग छिड़ी दिखी। लेकिन पटना साहिब में प्रमुख उम्मीदवारों के बीच दोस्ती बरकरार रही।
पटना [अरविंद शर्मा]। मौजूदा लोकसभा चुनाव की शुरुआत से ही पश्चिम बंगाल में सियासी आक्रामकता, कट्टरता और नेताओं की बदजुबानी से अगर आप सचमुच तंग आ गए हैं तो पटना साहिब चले आइए। यहां पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जीतने के सियासी दांव-पेच तो दिखे, लेकिन सियासी शालीनता और भाषा का अनुशासन कहीं से भी टूटता नजर नहीं आया। मतदान के दिन भी ऐसा ही दिखा। दो राष्ट्रीय दलों की प्रतिद्वंद्विता के बीच प्रत्याशियों में घमासान का यह नया अंदाज है।
सदियों पहले दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाली वैशाली के बगल के संसदीय क्षेत्र में दो राष्ट्रीय पार्टियों में आरपार की लड़ाई है। भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद हैं तो कांग्रेस की ओर से फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा।
दो अच्छे दोस्त बने प्रबल प्रतिद्वंद्वी
दोनों दोस्त रहे हैं। पहले दल भी एक था। अब प्रबल प्रतिद्वंद्वी हैं। एक की जीत से दूसरे की हार तय है। इतनी कड़ी और बड़ी लड़ाई में लोग अक्सर भाषा की मर्यादा भूल जाते हैं। लेकिन दोनों ने भाषाई मर्यादा कायम रखी है।
जंग के बीच शिष्टाचार बना उदाहरण
ऐेसे मुकाबले में तो नेता धमकी से भी आगे बढ़कर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। मारपीट और हिंसा तक हो जाती है। पश्चिम बंगाल तो पटना से बहुत दूर है, बिहार में ही ऐसे कई उदाहरण हैं। चुनावी सत्र में यहां भी कई बार जुबान जहरीली हुई, गाली-गलौच तक हुई। जनसभाओं से मुद्दे गायब हैं। लपलपाती ज़ुबान के रास्ते ही डायनासोर, शुतुरमुर्ग और नाली के कीड़े तक निकल आए हैं। लेकिन पटना साहिब मेंं कड़ी जंग के बीच कायम यह शिष्टाचार एक उदाहरण है।
दूसरों के लिए सबक बना यह सियासी व्यवहार
ऐसे हालात में रविशंकर प्रसाद और शत्रुघ्न सिन्हा का एक दूसरे के प्रति सियासी व्यवहार अन्य क्षेत्रों के प्रतिद्वंद्वियों के लिए सबक की तरह है। पटना साहिब के इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों का यह आचरण बताता है कि नेता जब शालीन रवैया अपनाते हैं तो उनके कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए भी भाषाई शिष्टता बनाए-बचाए रखना मजबूरी होती है, जबकि बड़बोले और बदजुबान नेताओं के समर्थक भी उसी जुबान में बात करने लगते हैं।
एक दूसरे का नाम लेने से भी किया परहेज
पटना साहिब में दोनों प्रत्याशी चुनाव प्रचार के दौरान नजीर पेश करते दिखे। चुनाव प्रचार के दौरान वाणी में तल्खी व व्यवहार में कटुता नहीं दिखी। आचरण में उत्तेजना नहीं रही। छिछले स्तर के आरोप-प्रत्यारोप भी नहीं दिखे। यहां तक कि प्रचार के दौरान या जनसभाओं में दोनों एक-दूसरे का नाम लेने से भी परहेज करते दिखे। सिर्फ विरोधी दल एवं उसकी नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों की ही आलोचना करते रहे।
दोनों की भाषा उस वक्त भी हद में ही रही, जब 11 मई को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का पटना में रोड शो हुआ और काफिला शत्रुघ्न सिन्हा के मोहल्ले से गुजरा। चुनाव की मुनादी होते ही धीरे-धीरे गंदी होती भाषा के बीच दोनों प्रत्याशियों के वाणी-व्यवहार से सियासी शिष्टाचार नई उम्मीद कर सकता है।
मैदान में आते ही मित्र बताया
दरअसल, रविशंकर और शत्रुघ्न दोनों ने चुनाव मैदान में उतरते ही सार्वजनिक कर दिया था कि सियासत की इस रस्साकशी में वे अपने पुराने संबंधों को असहज नहीं होने देंगे। एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाएंगे। पार्टियों और नीतियों की बात तो जरूर होगी, लेकिन परवरिश, परिवेश और परिवार पर चर्चा नहीं करेंगे। दोनों ने इसे निभाया।
नजीर के रूप में पेश करे चुनाव आयोग
बहरहाल, कमोबेश पूरे देश भर में विषाक्त और कड़वे होते चुनावी माहौल के बीच बिहार की राजधानी में यह विलक्षण नजारा दिखा। पटना ने इसे महसूस किया। चुनाव आयोग को भी इसे नोटिस लेकर इसे नजीर के रूप में पेश कर प्रोत्साहित करना चाहिए।
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