चिमनियों से निकलते धुएं के बीच बीत गए पांच साल, क्या अबकी बार दिखेंगे सरकार!
पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के पितंपुरपुरा जेठुली मौजीपुर और डुमरी की जनता ने अपने वर्तमान सांसद की कभी शक्ल नहीं देखी। क्या है इनकी अपने प्रत्याशी से उम्मीद जानें।
कौशलेंद्र कुमार, पटना। गांव-गिरान, खेत - खलिहान, दूरा-दालान और चौपाल पर लोगों की बैठकियां ज्यादा लगने लगी, बतकही और बतकुचन बढऩे लगे तो समझिए चुनाव नजदीक है। पटना साहिब लोकसभा के क्षेत्र फतुहा के गांवों में ऐसे नजारे नजदीक से देखने को मिल रहे हैं। पितंपुरपुरा, जेठुली, मौजीपुर और डुमरी की जनता ने अपने वर्तमान सांसद की कभी शक्ल नहीं देखी। अधिकांश लोग अपने जनप्रतिनिधि को नहीं पहचानते। लेकिन उनके द्वारा किए गए वादों को उनके नुमाइंदे ग्रामीणों तक जरूर पहुंचा देते हैं।
राजधानी पटना से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित फतुहा पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में आता है। यह इलाका सेमी अरबन का एक बेहतरीन उदाहरण भी है। एक तरफ यहां कल-कारखानों की चिमनियों से धुआं निकलता दिखेगा तो दूसरी तरफ खेत-खलिहान में किसान और मजदूर फसल की कटनी और दउनी करते भी दिखेंगे। फतुहा प्रखंड की आबादी तकरीबन दो लाख है। जिसमें 15 पंचायत और 27 वार्ड शामिल हैं। चुनावी माहौल को देखने-समझने प्रखंड के जेठुली पंचायत के गुलमहिया गांव के लिए फतुहा से पक्की दरगाह बराठपुर रोड की ओर मुड़े ही थे कि कीचड़ और बदबूदार पानी से लबालब गड्ढों से हमारा सामना हुआ। आगे चलते हुए बंकाघाट रेलवे स्टेशन के पास ट्रैक के नीचे बने संकीर्ण और छोटे अंडर पास से गुजरते हुए गुलमहिया पहुंचे। अनायास एक दालान पर नजर गई। काफी संख्या में लोग वहां जुटे हुए थे।
नेताओं के ओहदे की है चर्चा
उसमें से एक शख्स सिर मुड़ाए उतरी (उतरी से तात्पर्य है किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसे मुखाग्नि देने के वक्त और क्रिया कर्म तक आधी धोती पहने जाने वाला वस्त्र) लिए बैठे थे। सब लोग आपस में बातचीत में मशगूल थे। सो उत्सुकता वश हम भी उस दालान की ओर चल दिए। परिचय-पाती के बाद चर्चा शुरू हुई। दरअसल यह दालान उत्पल बल्लभ नाम के व्यक्ति का था। उन्होंने खुद को शरद यादव की पार्टी में एक बड़े ओहदे पर होने की बात कही। इनके पिताजी की कुछ दिन पहले मृत्यु हुई थी। लिहाजा मातमपुर्सी करने वाले लोग पहुंच रहे थे। यहां बीच-बीच में लोकसभा चुनाव का विश्लेषण भी हो रहा था। हम भी उसमें शरीक हो गए। चुनाव में मुद्दे को लेकर वहां बैठे लोग फूट पड़े। सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर सवालों की छड़ी लगा दी।
उत्क्रमित स्कूल में न लैब है न शिक्षक
स्कूलों को बारहवीं तक उत्क्रमित कर दिया गया लेकिन न तो वहां लैब है और नहीं शिक्षक। बिजली की हालत पहले से सुधरी जरूर है परंतु तार इतने जर्जर हैं कि थोड़ी सी तेज हवा चली नहीं कि फिर चार - पांच दिनों तक रोशनी गायब। स्वास्थ्य केंद्र में दवाई और डॉक्टर नहीं। वहां गाय-भैंस विचरण करते हैं। पक्की दरगाह से बराठपुर सड़क साल 1993 में बनी थी। उसके बाद इसकी सुध लेने कोई नहीं आया। छठ पर्व के दौरान ग्रामीण खुद श्रमदान से इसे ठीक करते हैं। इससे भी बड़ा मुद्दा इस पंचायत और गांव वालों के लिए बंकाघाट स्टेशन के पास ट्रैक के नीचे बने अंडर पास हैं। यह इतना संकीर्ण और नीचा है कि शादी या अन्य मौके पर बड़े वाहन इस रास्ते से नहीं जा पाते। ऐसे में लोगों को दो किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए आठ किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है।
बरसात में पानी-पानी
बरसात के दिनों में परेशानी और बढ़ जाती है। अंडरपास पानी से भरा रहता है। फतुहा जाने के लिए ट्रैक पार करना पड़ता है। इस दौरान एक बार तीन महिलाएं ट्रेन से भी कटकर अपनी जान गवां चुकी हैं। इससे पांच पंचायत के तकरीबन 40- 45 हजार लोग प्रभावित हैं। यहां पर ओवरब्रिज बनाने की मांग भी वर्षों पुरानी है। थोड़ी देर यहां ठहरने के बाद हम आगे बढ़े। तकरीबन दस मिनट आगे बढऩे पर रेलवे लाइन से सटे एक आम के बगीचे में काफी संख्या में लोग बैठे हुए आपस में उम्मीदवारों की हार जीत का सर्टिफिकेट बांटते दिखे। हम भी उनकी मंडली में शरीक हो गए।
जो काम करेगा, उसी को मिलेगा वोट
वहां जेठुली पंचायत की मुखिया रेखा देवी के पति प्रियरंजन सहाय के अलावा राजकुमार, इंद्रजीत सहाय, अजय कुमार आदि मौजूद थे। उन्होंने बताया कि 12000 की आबादी वाले इस पंचायत में 8500 मतदाता हैं। इनलोगों की समस्याएं भी कमोबेश गुलमहिया गांव के समान ही थी। लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर था कि फतुहा प्रखंड में लड़कियों की शिक्षा के लिए अलग से न तो कोई विद्यालय है और न ही कॉलेज। इसी बीच पांचवीं पास पेशे से ट्रैक्टर चालक विश्वनाथ प्रसाद ने कहा कि उनका तो एक ही नारा है जो काम करेगा, उसी को मिलेगा वोट। यहां से राम-राम करते हुए मौजीपुर पंचायत के लोगों का चुनावी नब्ज टटोलने के लिए निकल पड़े।
भीड़ बढ़ी हो गई चर्चा शुरू
कुछ ही देर में हमारी गाड़ी इस पंचायत में घुस चुकी थी। इसी बीच फतुहा-कच्ची दरगाह मुख्य सड़क के किनारे मौजीपुर में स्थित मस्जिद के पास सड़क किनारे काफी लोगों की भीड़ जमा थी। लोग हो-हल्ला कर रहे थे। भीड़ देखकर हमलोग गाड़ी से नीचे उतरे। पता चला कि वे लोग अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। मौजीपुर पंचायत के मौजीपुर गांव में इनकी आबादी लगभग सात सौ के आसपास है। जिसमें वोटर 250 हैं। इसी भीड़ में इस पंचायत के मुखिया विजय कुमार भी मौजूद थे।
खोल दिया समस्या का पिटारा
जैसे ही उनलोगों को यह पता चला कि हमलोग अखबार वाले हैं, भीड़ हमलोगों की तरफ मुखातिब हुई और समस्याओं का पिटारा खोल दिया। इनके पास मुद्दे सीमित थे। परंतु जो थे वे संवेदनशील। लिहाजा हमलोग इनके साथ वहीं मस्जिद के कैंपस में चले गए। इनलोगों की सालों से एक ही मांग थी, कब्रिस्तान की घेराबंदी और उसे दबंगों के कब्जे से मुक्त करना। जलालुद्दीन खान, सायरून खातून और शहनाज खातून आदि ने कहा कि मौजीपुर में कब्रगाह के लिए एक एकड़ 78 डिसमल जमीन है। परंतु इस पर दबंगों ने कब्जा कर रखा है। ऐसे में शवों को दफनाने के लिए भी चिरौरी करनी पड़ती है।
छह से सालभर में मिलता है बिल
बिजली बिल और राशन-किरासन को लेकर भी इनलोगों में गुस्सा है। किराना दुकानदार बच्चू कुमार ने बताया कि बिजली का बिल छह महीने-साल भर में एक बार मिलता है। मोटी रकम होने के कारण उसे जमा करने में पसीने छूट जाते हैं। पूरे दुकान की जमा पूंजी ही बीस हजार है और बिजली का बिल भी इतना ही आता है। यह दर्द केवल इनका नहीं है। यहां रहने वाले तमाम लोगों का है। इसके अलावे राशन-किरासन भी साल में तीन-चार बार ही मिलता है। यहां से दुआ सलाम के बाद अगला पड़ाव डुमरी पंचायत था।
सड़कें लकीर में तब्दील हो गई हैं
यहां से लगभग आधे घंटे का सफर तय करने के बाद हमलोग डुमरी पंचायत के डुमरी गांव स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय के पास बने मंदिर के निकट पहुंचे। वहां लोग ताश जमाए हुए थे। ताश तो एक बहाना था। असल में लोकसभा चुनाव इसके केंद्र में था। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर कई मुद्दों पर सवाल-जवाब हुए। इस पंचायत की आबादी नौ हजार है और मतदाता छह हजार। फतुहा से यहां पहुंंचने वाली सड़क की सेहत कुछ ठीक नहीं है। लेकिन इससे भी बदतर स्थिति डुमरी से दूसरे गांवों में जाने वाली सड़कों की है। वर्ष 2002 में सड़कें बनी थी। उसके बाद से लेकर अबतक इसकी मरम्मत नहीं हुई है लिहाजा सड़कें लकीर में तब्दील हो गई हैं। इस पंचायत के पैक्स अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह ने कहा कि यहां दो उप स्वास्थ्य केंद्र भी है लेकिन सिर्फ कागजों पर। आज तक किसी ने भी न तो यहां चिकित्सक को देखा और नहीं नर्सिंग स्टाफ को। पंचायत में एक भी बारहवीं तक का स्कूल नहीं है।
पेशे से किसान नवलेश पासवान, रणजीत पासवान, 85 वर्षीय बुजुर्ग महावीर चौधरी की मानें तो पुनपुन रक्षा तटबंध की पक्कीकरण यहां की सबसे पुरानी मांग है। इसके पूरा होने से यहां के दर्जनों गांव के हजारों निवासियों को आवागमन के लिए एक सुगम और सीधा रास्ता मिल जाएगा। बातें हो ही रही थीं कि फतुहा प्रखंड प्रमुख रेखा देवी के पति पप्पू कुमार और पेशे से बॉटनी के प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह की गाड़ी भी इस मंदिर पर आकर ठहर गई। पप्पू कुमार ने कहा कि चुनाव में मुद्दे तो कई हैं परंतु सड़क, स्वास्थ्य उपकेंद्र और स्कूल बहुत जरूरी है।
दंश झेलने को तैयार हैं सभी
वहीं प्रोफेसर अरुण कुमार पुनपुन रक्षा तटबंध के किनारे बसे लगभग 40 हजार की आबादी को हर साल बाढ़ का दंश झेलने को लेकर चर्चा के मूड में थे। उन्होंने कहा कि तटबंध के किनारे जितने भी गांव हैं उसे ङ्क्षरग बांध बनाकर यहां बाढ़ आने से रोका जा सकता है। काफी पहले से इसके लिए यहां के लोग आवाज उठाते रहे हैं परंतु किसी जनप्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया। लगभग डेढ़ घंटे के बतकुचन के बाद पितंबरपुरा पंचायत के पितंबरपुरा गांव के लिए निकले।
हमलोग पितंबरपुरा गांव के उत्क्रमित विद्यालय के पास पहुंच गए थे। स्कूल में बैठकर कुछ लोग चुनावी चर्चा में व्यस्त थे। हम भी उनकी मंडली में शामिल हो गए। रसलपुर, सैदपुर, सेनारु, सुपनचक, प्रह्लाद चक, भिखुआ, परशुरामपुर आदि गांव पितंबरपुरा पंचायत में आते हैं। पंचायत की आबादी 13 हजार और मतदाता 86 सौ। फिर बात आगे बढ़ी तो बढ़ती चली गई। पितंबरपुरा कभी अखाड़ा और पहलवानों के लिए जाना जाता था। श्री खलीफा और सरयुग खलीफा यहां के लोगों के लिए बड़े अजीज थे।
इस स्कूल के संस्थापक 85 वर्षीय बुजुर्ग भोला सिंह भी वहीं बैठे थे। उन्होंने कहा कि अखाड़ा और व्यायामशाला के निर्माण और पहलवानों को टे्रनिंग देने की व्यवस्था को लेकर वे कई बार आवाज उठा चुके हैं। उन्हें आश्वासन और वादों की घुट्टी भी मिली लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई नतीजा सामने नहीं आया। उनके प्रयास से स्कूल में एक लाइब्रेरी की स्थापना हुई थी परंतु भवन और पैसों के अभाव में यह जमीन पर नहीं उतर सका। जबकि, निर्माणाधीन स्कूल के दीवारों पर गोईठा थोपा जा रहा है और पंचायत भवन में कुट्टी काटने की मशीन लगी है।
इनपुट में सहयोग गौतम, फतुहा