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भूकंप आया और सभी लोग भागने लगे तब मिट्टी के घोड़े को बचाने की फिक्र में थे लाला

केवल इंटर तक ही हुई है पढ़ाई लेकिन अपनी कला से सैकड़ों लोगों को रोजगार दे चुके हैं। टेराकोटा के शिल्पकार लाला पंडित ने करीब पांच हजार लोगों को प्रशिक्षण दिया है। उन्‍होंने जापान जाकर वहां भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

By Shubh NpathakEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 10:39 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 10:39 AM (IST)
भूकंप आया और सभी लोग भागने लगे तब मिट्टी के घोड़े को बचाने की फिक्र में थे लाला
अपनी कलाकृति को दिखाते लाला पंडित। जागरण

पटना [दिलीप ओझा]। भूकंप के झटके में जब लोग जान बचाकर भाग रहे थे तो एक व्यक्ति अपनी मूर्ति को पकड़े बैठा था कि इसे बचा लें। लाला पंडित! इंटरमीडिएट तक की शिक्षा, पर मूर्तिकला के प्रति इसी प्रेम की बदौलत उन्होंने सैकड़ों लोगों को रोजगार की राह दिखा दी। लाला दरभंगा जिला के कुम्हारटोली मौलागंज के रहने वाले हैं। इस समय बिहार सरकार के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में टेराकोटा प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। इसी संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिन्हा कहते हैं कि उन्होंने पूरा जीवन कला को समर्पित कर दिया।

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जापान के म्‍यूजियम में बना रहे थे मिट्टी का घोड़ा, तभी आ गया भूकंप

1997 की बात है, जब लाला जापान में थे। वे निगाता स्टेट के टोकामाची सिटी के ओइके गांव में टोक्यो हासेगावा नाम के कलाप्रेमी की ओर से स्थापित मिथिला म्यूजियम में मिट्टी से घोड़ा बना रहे थे। तभी भूकंप का झटका लगा। सारे लोग भाग गए। स्थिति सामान्य हुई तो लोग म्यूजियम के अंदर आए और देखा कि लाला पंडित अपने घोड़े को पकड़े हुए हैं। लोग हैरान रह गए। मिट्टी के घोड़े को टूटने से बचाने के लिए जान जोखिम में डालने वाला कलाकार उन्होंने पहली बार देखा था। लाला कहते हैं, कला के प्रति जिसने जीवन को समर्पित नहीं किया, वह कलाकार क्या बनेगा?

केवल इंटर पास हैं, लेकिन नौ बार घूम आये जापान

वे कहते हैं-मैं महज इंटर पास हूं, लेकिन इसी कला के बल पर नौ बार जापान गया। जापानियों को प्रशिक्षण दिया। उन्होंने सेंटर फॉर कल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग दिल्ली, राष्ट्रीय बाल भवन, दिल्ली और देहरादून में भी प्रशिक्षण दिया है। अब तक करीब पांच हजार लोगों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। वे कहते हैं, सभी के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन इनमें दो सौ से अधिक लोग टेराकोटा के बल पर जीवनयापन कर रहे हैं। लाला कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता अमित पंडित से यह हुनर सीखा।

आगे चलकर हैंडीक्रॉफ्ट विभाग के उप निदेशक एमके पाल से मिट्टी की वस्तुओं को भट्ठी में पकाने की कला सीखी। इसी दौरान जापान से प्रो. मोरे भारत आए और उनकी कई कलाकृतियां ले गए। जापान में कलाप्रेमी टोक्यो हासेगावा ने जब ये कलाकृतियां देखीं तो 1993 में जापान बुलाया। कुल नौ बार उन्होंने जापान बुलाया। वहां हासेगावा ने मिथिला म्यूजियम स्थापित किया है, जहां जापानियों को देवी-देवताओं की मूर्ति व हाथी-घोड़ा बनने का प्रशिक्षण दिया। अपने बेटे शंकर कुमार पंडित को भी टेरोकोटा की कला सिखाई।


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