Move to Jagran APP

पटना संग्रहालयः यहां है आठवीं शताब्दी का नक्काशीदार द्वार तो मुगलकालीन तोप, जानें इतिहास

पटना संग्रहालय में मौर्यकाल से लेकर मुगल काल तक की नायाब चीजों की प्रदर्शनी तो लगी ही है बाहरी परिसर में भी इतिहास दिखता है। जानें म्यूजिम का इतिहास।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 10:14 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 10:14 AM (IST)
पटना संग्रहालयः यहां है आठवीं शताब्दी का नक्काशीदार द्वार तो मुगलकालीन तोप, जानें इतिहास

प्रभात रंजन, पटना। राजधानी की शान पटना संग्रहालय के जर्रे-जर्रे में इतिहास छिपा है। इसके अंदर तो मौर्यकाल से लेकर मुगल काल तक की नायाब चीजों की प्रदर्शनी तो लगी ही है, बाहरी परिसर में भी इतिहास दिखता है। संग्रहालय के बगीचे में प्रवेश के लिए आठवीं शताब्दी का नक्काशीदार द्वार है, तो मुगलकालीन तोपें भी ध्यान खींचती हैं। कांस्य से बनीं लार्ड हार्डिंग और जॉर्ज पंचम की प्रतिमाएं अंग्रेजों की शान-ओ-शौकत की याद दिलाती हैं। पढ़ें इसकी खासियतों पर ये रिपोर्ट।

loksabha election banner

राजपूताना शैली की इमारतें

पटना संग्रहालय का जब भी जिक्र आता है, तो पहला ध्यान उसकी गैलरी में रखे नायाब सामानों पर ही जाता है, मगर इससे इतर भी संग्रहालय में स्वर्णिम इतिहास की कई निशानियां हैं। एक बड़ा आकर्षण तो इसकी इमारत ही है, जो राजपूताना शैली में बनी है।

संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शंकर सुमन बताते हैं कि 1912 ई. में बिहार और बंगाल के अलग होने के बाद उस समय की महत्वपूर्ण कलाकृतियों का संग्रह करने के लिए संग्रहालय की अवधारणा बनी। सुमन बताते हैं कि 1814 में इंडियन म्यूजियम की स्थापना कोलकाता में की गई थी। यह एशिया का पहला म्यूजियम था। 1912 में कुम्हरार की खुदाई में निकले पुरावशेषों को संग्रह करने के लिए संग्रहालय की आवश्यकता पड़ी।

1925 ई में जमीन मिलने पर भवन निर्माण शुरू हुआ। इमारत का डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुकार राय बहादुर विष्णु स्वरूप ने तैयार किया। करीब चार वर्षों तक भवन का निर्माण कार्य लगातार चलता रहा। दिसंबर 1928 में भवन बनकर तैयार हो गया। संग्रहालय बनने के बाद बिहार और उड़ीसा के तत्कालीन राज्यपाल सर स्टीफनसन ने सात मार्च 1929 को म्यूजियम आम लोगों के लिए खोल दिया।

मुगल-राजपूत शैली में हुआ था भवन का निर्माण 

भवन को मुगल-राजपूत यानी इंडो-सारसैनिक शैली में बनाया गया। संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. शंकर सुमन ने कहा कि इसे बनाने में ईंट-सूर्खी और चूने का भरपूर प्रयोग किया गया था। भवन के उपर चारों ओर छोटे-बड़े गुंबद मुगल शैली की याद दिलाते हैं वही भवन में बने झरोखे राजपूत शैली को बयां करते हैं।

आठवीं शताब्दी का द्वार बड़ा आकर्षण

पटना म्यूजियम के मुख्य भवन के सामने उड़ीसा के उदयगिरी में उत्खनन में मिले द्वार स्तंभ को स्थापित किया गया है। खोंडो-लाइट पत्थर से द्वार स्तंभ का निर्माण आठवीं शताब्दी के कलाकारों ने किया था। द्वार के बीच 'गज-लक्ष्मी' की प्रतिमा के साथ मानव जीवन की कहानियों को कलाकृतियों के जरिए बयां किया गया है। इस द्वार पर दो दर्जन से अधिक छोटी-छोटी कलाकृतियां बनाई गई हैं। इस कलाकृति को म्यूजियम बनने के बाद स्थापित किया गया था।

उदयगिरी से प्राप्त भगवान लोकेश्वर की प्रतिमा

पटना संग्रहालय परिसर में प्रवेश करते ही हरे-भरे पौधों के बीच उड़ीसा के उदयगिरी से प्राप्त नौवीं शताब्दी की लगभग 10 फीट ऊंची और चार फीट चौड़ी भगवान लोकेश्वर की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति भी खोंडो-लाइट पत्थर से बनी है। मूर्ति में आयरन की मात्रा अधिक है। इसी पत्थर का प्रयोग पुरी के मंदिर निर्माण के लिए किया गया था। इस मूर्ति के सिर पर भगवान बुद्ध की ध्यान मुद्रा को बनाया गया है, वही हाथ में कमल का फूल। गुप्त काल में बनाई गई यह मूर्ति ङ्क्षहदू देवता और बौद्ध देवता का मिश्रण है। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के दौरान उस वक्त के कलाकारों ने ङ्क्षहदू देवता को समाहित कर मूर्ति का निर्माण किया गया था। वही मूर्ति में भगवान शिव का त्रिशूल और नाग के साथ ही भगवान ब्रह्मा का माला लिए स्वरूप शामिल किया गया है।

मुगलकाल के तोप म्यूजियम की शोभा

पटना संग्रहालय के बाहरी परिसर में मुगल काल के दौरान प्रयोग में लाए जाने वाले तोप को संभाल कर स्मृतियों के रूप में रखा गया है। ये सभी तोप आजादी के बाद से ही म्यूजियम का हिस्सा हैं। लोहे से बनी तोप में लकड़ी के पहिए लगे हैं। हर तोप के मुंह में आगे की ओर गोला रखा जाता था। इसके सामने एक छेद बना है, जिसमें तोपची सूतली डालकर उसमें आग लगाते थे। इसके बाद बम का गोला आगे की ओर दूर जाकर गिरता था। तोप को ऊंचा और नीचा करने के लिए हैंडल लगा है। इसके रखरखाव के लिए समय-समय पर लखनऊ एवं पटना संग्रहालय के कर्मचारी साफ-सफाई करते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि तोप को सुरक्षित रखने के लिए इसे वैक्स यानी मोम से पॉलिश किया जाता है।

ब्रिटिश काल की तोप भी बड़ा आकर्षण

म्यूजियम के मेन गेट के सामने ब्रिटिश काल में प्रयोग होने वाली तोप को सुरक्षित रखा गया है। इसे देश की आजादी के बाद यहां पर रखा गया था। तोप के दोनों सिरों पर लकड़ी का पहिया लगा है। यह तोप रायफल की तरह ङ्क्षरग सिस्टम के आधार पर काम करती थी। परिसर में रखी तीनों तोपें अलग-अलग मारक क्षमता वाली हैं।

सौ साल पूरे होने पर बना था शताब्दी स्मारक

म्यूजियम के परिसर में शताब्दी स्मारक का निर्माण बिहार के सौ साल पूरे होने पर किया गया था। म्यूजियम की पुरानी ईंट और पत्थरों से बिहार की पहचान की मुकम्मल तस्वीर बनाने की कोशिश की गई है। इस कलाकृति में पटना का गोलघर, अशोक स्तंभ, नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर, भगवान बुद्ध का चेहरा, बराबर की गुफा आदि की प्रतिकृतियों का निर्माण स्थानीय कलाकारों ने किया था। इसमें कला संस्कृति विभाग का भी योगदान रहा। मुख्यमंत्री के सलाहकार अंजनी बाबू के मार्गदर्शन में पटना के वरिष्ठ कलाकार सन्यासी रेड सहित कई कलाकारों ने वर्ष 2012 में इसे बनाया था।

कांस्य से बनी हैं लार्ड हार्डिंग की प्रतिमा

परिसर में स्थित लार्ड हार्डिंग की प्रतिमा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। प्रतिमा के बारे में संग्रहालय के डॉ. विमल तिवारी ने कहा कि प्रांत के तत्कालीन गर्वनर सर एडवर्ड गेट ने लंदन के प्रख्यात ब्रिटिश मूर्तिकार हर्बर्ट हैम्टन द्वारा लॉर्ड हार्डिंग की कांस्य प्रतिमा का निर्माण कराया था। इसका वजन लगभग पांच टन है। इस प्रतिमा को कई वर्षो तक पटना के हार्डिंग पार्क में रखा गया था। बिहार को अलग प्रांत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले वायसराय के सम्मान में हार्डिग पार्क का निर्माण कराया था, वही पर लार्ड हार्डिंग की प्रतिमा स्थापित की गई थी। प्रतिमा को पार्क से हटाने को लेकर विरोध भी हुआ था। प्रतिमा का एक हाथ टूट चुका है। 1990 के दौरान पार्क से मूर्ति को हटाकर संग्रहालय परिसर में स्थापित किया गया। संग्रहालय में लगी प्रतिमा के नीचे पट्टिका पर लॉर्ड हार्डिंग के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है। लॉर्ड हार्डिंग ने ही वर्ष 1911 में दिल्ली दरबार में बिहार को अन्य राज्यों से अलग करने की आवाज उठाई थी।

अंग्रेजी शासक जॉर्ज पंचम की प्रतिमा

संग्रहालय के दूसरे छोर पर अंग्रेजी शासक जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी है। ये प्रतिमा भी कांस्य से बनी है। प्रतिमा के बारे में डॉ. शंकर सुमन ने कहा कि जॉर्ज पंचम की प्रतिमा को बहुत समय तक राजभवन चौराहे पर स्थापित किया गया था। फिर कुछ साल बाद इसे पटना संग्रहालय में लाकर स्थापित किया गया। लगभग 10 फीट ऊंची प्रतिमा का निर्माण ब्रिटिश मूर्तिकार ने किया था।

पाटली वृक्ष म्यूजियम की बढ़ा रहे शोभा

पटना की पहचान के रूप में जाना जाने वाला वर्षो पुराना पाटली वृक्ष पटना संग्रहालय की महत्वपूर्ण धरोहर है। सम्राट अशोक के समय में पाटली के पेड़ों को कई जगहों पर लगाया गया था। इसके बीच से निकलने वाले पौधे आज वृक्ष बनकर लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। म्यूजियम के अपर-निदेशक डॉ. विमल तिवारी ने कहा कि पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए समय-समय पर पर्यावरण विशेषज्ञों की टीम देखरेख करती है।

परिसर के अंदर व बाहर कई दुर्लभ वस्तुएं

संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. शंकर सुमन कहते हैं, पटना संग्रहालय का इतिहास काफी पुराना और रोचक है। इसकी गरिमा हमेशा बने रहे, इसके लिए सरकार और म्यूजियम की ओर से हर संभव प्रयास किया जाता रहा है। संग्रहालय में रखी ऐतिहासिक सामग्री को सुरक्षित और संरक्षित रखना म्यूजियम की पहली प्राथमिकता है। परिसर के अंदर और बाहर कई दुर्लभ वस्तुएं हैं, जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते रहते हैं।

आने वाले दिनों दिखेगा बदलाव

पटना म्यूजियम अपर निदेशक डॉ. विमल तिवारी ने कहा कि पटना संग्रहालय परिसर के बाहर रखीं कई दुर्लभ मूर्तियां लोगों को आकर्षित करती हैं। वहीं परिसर के अंदर भी कई महत्वपूर्ण सामग्री मौजूद हैं। म्यूजियम को और सुव्यवस्थित और आकर्षक बनाने के लिए सरकार की ओर से कई काम किए जाने वाले हैं। आने वाले दिनों में कई प्रकार के बदलाव देखने को मिलेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.