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पटना का लॉन बन गया गांधी मैदान, यहां है बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा

पटना का गांधी मैदान बापू के कई इतिहास समेटे हुए है। राजधानी में महात्मा गांधी की सबसे ऊंची प्रतिमा तो है ही यहां पग-पग पर बापू की निशानियां हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 02:10 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 02:10 PM (IST)
पटना का लॉन बन गया गांधी मैदान, यहां है बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा
पटना का लॉन बन गया गांधी मैदान, यहां है बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा

पटना, जेएनएन। ये शहर गांधी का भी है। पटना के पग-पग पर गांधी की निशानियां आज भी मौजूद हैं। गांधी के नाम पर एक ओर शहर का सबसे बड़ा मैदान है तो दूसरी ओर सबसे ऊंची प्रतिमा। शहर में एक ओर जहां विद्यापीठ है तो दूसरी ओर गांधी संग्रहालय जहां आज भी गांधी से जुड़ी यादें सहेज कर रखी गई हैं।

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गांधी ने की थी गांधी मैदान में सर्वधर्म प्रार्थना सभा

स्वतंत्रता आंदोलनों से लेकर संपूर्ण क्रांति और कई दिवसों का गवाह बना यह गांधी मैदान बापू के नाम पर बनाया गया। भारत के सबसे बड़े मैदानों में से एक गांधी मैदान में कभी घुड़दौड़ होती थी। अंग्रेजों के जमाने में इसे पटना लॉन भी कहा जाता रहा। भारत विभाजन के बाद शहर में हुए दंगे फसाद ने महात्मा गांधी को भी पटना आने पर विवश कर दिया था। बापू ने गांधी मैदान में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया जहां हजारों लोग जमा हुए। समय बीतता गया शहर के साथ मैदान का भी कायाकल्प हुआ

पटना में बापू की सबसे ऊंची प्रतिमा

पटना में दुनिया की सबसे ऊंची गांधी मूर्ति की प्रतिमा स्थापित की गई है। मूर्ति का अनावरण 15 फरवरी 2013 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। गांधी मैदान में महात्मा गांधी के अलावा देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण, अबुल कलाम आजाद, जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं ने आजादी की लड़ाई के समय रैलियों को संबोधित किया था।

बिहार विद्यापीठ रहा सर्वोपरि

स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए रणनीति बनाने की बात हो या फिर विभिन्न नेताओं का जमावड़ा जिसके लिए बिहार विद्यापीठ का नाम सर्वोपरि लिया जाता है। कुर्जी स्थित सदाकत आश्रम का एक हिस्सा बिहार विद्यापीठ है। देश में तीन विद्यापीठ की स्थापना के समय बापू ने छह फरवरी 1921 को बिहार विद्यापीठ की स्थापना की थी। यहां महात्मा गांधी, मजहरूल हक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद आदि हस्तियों ने समय बिताया है। गांधी से प्रभावित होकर मजहरूल हक ने यह जमीन विद्यापीठ के नाम से दान कर दी थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति से बनने पहले और बाद के दिन यहां गुजारे थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपनी अंतिम सांसे भी इसी विद्यापीठ ्मे ली थी। जिस खपरैल मकान में प्रसाद ने जीवन के अंतिम दिन बिताए वह जगह संग्रहालय के रूप में स्थापित कर दी गई है।

गांधी ने की थी सदाकत आश्रम की स्थापना

कुर्जी स्थित सदाकत आश्रम से ही गांधी जी ने चंपारण आंदोलन के लिए हुंकार भरी थी। सदाकत आश्रम से ही आज़ादी के अन्य आंदोलन का आह्वान किया गया था। यहीं से देश के नामी शिक्षा मंदिर बिहार विद्यापीठ का संचालन किया जाता था। गांधी जी जब राजकुमार शुक्ला के साथ उस समय के संयुक्त राज्य बंगाल, उड़ीसा, बिहार आए थे तब कलकत्ता के रास्ते गांधी जी सदाकत आश्रम ही पहुंचे थे। सदाकत आश्रम अपने साथ आज़ादी के पहले और बाद के कई महत्वपूर्ण लम्हों को आज भी संजोए हुआ है।

छज्जुबाग में मजहरूल हक के घर रुके थे बापू

आज से लगभग 100 साल पहले बापू पहली बार पटना की धरती पर कदम रखे थे। पटना में महात्मा गांधी के सहपाठी रहे मौलाना मजहरूल हक के छज्जुबाग स्थित पर बापू रूके थे। मौलाना खुद महात्मा गांधी को अपनी मोटरकार में बिठाकर घर ले गए थे। हक साहब उन दिनों एक किराए के मकान में रहा करते थे। घर का नाम था सिकंदर मंजिल। जो रेडियो स्टेशन के पास स्थित था।

उपेंद्र महारथी शिल्प संस्था एेतिहासिक कलाकृतियां

गांधी के व्यक्तित्व पर पटना के शिल्पकारों ने भी शिल्प कला के विविध आयामों के तहत एक से बढ़कर एक कलाकृतियों को बना शिल्प संस्थान का मान बढ़ाने में लगे हैं। उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान परिसर में टेराकोटा, वेणु, सिक्की आदि से बनी गांधी की कलाकृतियां संस्थान परिसर में आने वाले लोगों का ध्यान आकर्षित करतीं हैं। संस्थान परिसर के उपनिदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि वैशाली के रहने वाले राज्य पुरस्कार प्राप्त सीताराम मल्लिक ने बांस से महात्मा गांधी की मूर्ति बना कला का बेहतरीन प्रदर्शन किया था। मल्लिक ने 1980 में मूर्ति का निर्माण किया था। वर्ष 2018 में रामू पंडित ने टेराकोटा में गांधी के चरखे में सारे क्रांतिकारी को खड़ा कर जीवंत कलाकृति बनाकर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। नंद लाल बाबू ने गांधी की कलाकृति का स्कैच बना लोगों का दिल जीता था।


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