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पटना हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- बिहार में शराबबंदी कानून के चलते जमानत याचिकाओं में भारी वृद्धि

शराबबंदी कानून लागू होने के कारण जमानत याचिकाओं में भारी वृद्धि हुई है। लगभग 25 प्रतिशत नियमित जमानत याचिकाएं केवल शराबबंदी से जुड़ी हैैं। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत को बताया कि 39622 जमानत आवेदन में 21671 अग्रिम और 17951 नियमित जमानत लंबित हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 11:00 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 11:00 PM (IST)
शराबबंदी कानून के चलते जमानत याचिकाओं में वृद्धि हो रही है। सांकेतिक तस्वीर।

राज्य ब्यूरो, पटना: पटना हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के कारण जमानत याचिकाओं में भारी वृद्धि हुई है। लगभग 25 प्रतिशत नियमित जमानत याचिकाएं केवल शराबबंदी से जुड़ी हैैं। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत को बताया कि 39,622 जमानत आवेदन में 21,671 अग्रिम और 17,951 नियमित जमानत लंबित हैं। इसके अलावा 20,498 अग्रिम और 15,918 नियमित जमानत याचिकाओं सहित 36,416 ताजा जमानत आवेदनों पर अभी विचार किया जाना बाकी है। पटना हाईकोर्ट ने यह भी बताया कि जजों के स्वीकृत पदों से आधे से भी कम के साथ काम करना पड़ रहा है। इसलिए याचिकाओं के निपटारे में देर हो रही है। 

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याचिकाकर्ता अभयानंद शर्मा ने पटना हाईकोर्ट में मामलों के सूचीबद्ध नहीं होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। जिसपर पटना हाईकोर्ट का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि मामलों के निपटारे की निगरानी मुख्य न्यायाधीश द्वारा रोजाना की जा रही थी। 

शीर्ष अदालत ने जताई चिंता

न्यायाधीश अजय रस्तोगी और न्यायाधीश अभय एस ओका की पीठ ने हाईकोर्ट में जमानत याचिकाओं के लंबित रहने पर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि चिंता का विषय है कि अग्रिम जमानत के आवेदन निष्फल हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें दाखिल करने के एक साल बाद पहली बार सुनवाई हो रही है। पीठ ने अधिवक्ता शोएब आलम द्वारा दिए गए सुझाव से सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय पर बोझ कम करने के लिए धारा 436-ए सीआरपीसी के प्रविधानों को नियोजित किया जाना चाहिए, जो किसी को भी वैधानिक जमानत प्रदान करने का प्रावधान करता है। इससे पहले 11 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिहार सरकार की उन याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया था, जिसमें कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती दी गई थी। 


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