पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अब हिंदी में भी सभी मुकदमों की बहस सुनेंगे मी लॉर्ड
पटना हाईकोर्ट में मुकदमे अंग्रेजी में दाखिल किए जाते हैं। इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए हिंदी के प्रयोग की अनुमति देने की मांग की गई। इसपर सुनवाई में कोर्ट ने क्या कहा, जानिए।
By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 08:28 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 12:57 PM (IST)
पटना [राज्य ब्यूरो]। पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट में हिंदी प्रयोग से जजों को कोई परहेज नहीं है। हाईकोर्ट में अंग्रेजी के अलावा हिंदी को भी तरजीह दिये जाने को लेकर दायर मामले पर यह फैसला मुख्य न्यायाधीश एपी शाही, न्यायाधीश आशुतोष कुमार एवं न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद की पूर्णपीठ का है।
1972 में जारी हुई थी राज्यपाल की अधिसूचना
विदित हो कि 9 मई 1972 को जारी राज्यपाल की अधिसूचना के अनुसार हाईकोर्ट में अंग्रेजी के साथ-साथ वैकल्पिक भाषा के रूप में दीवानी और फौजदारी के मुकदमे तथा शपथ पत्र के आवेदन और बहस में हिंदी के उपयोग की बात है। लेकिन यह भी लिखा है कि अपवाद स्वरूप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 एवं 227 के तहत दाखिल होने वाले मुकदमे केवल अंग्रेजी में होंगे। इसी प्रकार टैक्स संबंधित सारे मामले केवल अंग्रेजी में दाखिल होंगे।
अधिसूचना रद करने को हाईकोर्ट में मुकदमा
अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने इस अधिसूचना को रद करने की मांग की। याचिका में भारतीय भाषा अभियान के वकील राजकुमार सुनील कुमार, विश्वरंजन चौधरी ने सहयोग किया।
याचिका पर हाईकोर्ट ने कही ये बात
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश शाही ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी हाईकोर्ट को निर्देश जारी कर कहा है कि जो व्यक्ति प्रांतीय भाषा में फैसला चाहते हैं, उन्हें उपलब्ध कराया जाए।
हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति एवं राज्यपाल भी अदालत में हिंदी के प्रयोग की वकालत करते रहे हैं। फिर अदालत क्यों रोड़ा बने? संविधान ने भी हिंदी के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई है। बिहार में राज्यपाल की एक अधिसूचना से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। कोर्ट ने इसपर राज्य सरकार से स्थिति स्पष्ट करने को कहा।
1972 में जारी हुई थी राज्यपाल की अधिसूचना
विदित हो कि 9 मई 1972 को जारी राज्यपाल की अधिसूचना के अनुसार हाईकोर्ट में अंग्रेजी के साथ-साथ वैकल्पिक भाषा के रूप में दीवानी और फौजदारी के मुकदमे तथा शपथ पत्र के आवेदन और बहस में हिंदी के उपयोग की बात है। लेकिन यह भी लिखा है कि अपवाद स्वरूप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 एवं 227 के तहत दाखिल होने वाले मुकदमे केवल अंग्रेजी में होंगे। इसी प्रकार टैक्स संबंधित सारे मामले केवल अंग्रेजी में दाखिल होंगे।
अधिसूचना रद करने को हाईकोर्ट में मुकदमा
अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने इस अधिसूचना को रद करने की मांग की। याचिका में भारतीय भाषा अभियान के वकील राजकुमार सुनील कुमार, विश्वरंजन चौधरी ने सहयोग किया।
याचिका पर हाईकोर्ट ने कही ये बात
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश शाही ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी हाईकोर्ट को निर्देश जारी कर कहा है कि जो व्यक्ति प्रांतीय भाषा में फैसला चाहते हैं, उन्हें उपलब्ध कराया जाए।
हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति एवं राज्यपाल भी अदालत में हिंदी के प्रयोग की वकालत करते रहे हैं। फिर अदालत क्यों रोड़ा बने? संविधान ने भी हिंदी के प्रयोग पर रोक नहीं लगाई है। बिहार में राज्यपाल की एक अधिसूचना से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। कोर्ट ने इसपर राज्य सरकार से स्थिति स्पष्ट करने को कहा।
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