बिहार में अब वकीलों ने की शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग, मंत्री से मिलकर दी ये राय
शराबबंदी कानून की वजह से अदालतों पर बढ़े हुए भार के मद्देनजर वर्मा ने विधि मंत्री से गुहार लगाई कि शराबबंदी कानून में सजा कुर्की-जब्ती एवं अग्रिम जमानत की व्यवस्था आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत की जानी चाहिए।
राज्य ब्यूरो, पटना : पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं के एक शिष्टमंडल ने गुरुवार को राज्य के विधि मंत्री प्रमोद कुमार से मुलाकात कर शराबबंदी कानून की समीक्षा करने का आग्रह किया। शिष्टमंडल की अध्यक्षता एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा कर रहे थे। शराबबंदी कानून की वजह से अदालतों पर बढ़े हुए भार के मद्देनजर वर्मा ने विधि मंत्री से गुहार लगाई कि शराबबंदी कानून में सजा, कुर्की-जब्ती एवं अग्रिम जमानत की व्यवस्था आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत की जानी चाहिए। अधिवक्ताओं ने कानून मंत्री से यह भी आग्रह किया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के बिहार बजट में राज्य के वकीलों के कल्याणकारी कार्यों एवं आधुनिक उपकरणों से लैस वकालत-खाना के लिए पांच हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था करनी चाहिए। अधिवक्ताओं को सुरक्षा देने के लिए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट को जल्द लागू करने की मांग की गई। केरल, मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी नए अधिवक्ताओं को पांच हजार प्रति माह की दर से सम्मान निधि मिलनी चाहिए। योगेश चंद्र वर्मा ने बताया कि विधि मंत्री ने मांगों पर जल्द विचार करने का आश्वासन दिया। शिष्टमंडल में युवा अधिवक्ता प्रियंका सिंह, माधव राज एवं अन्य शामिल थे।
दुर्लभ जेनेटिक बीमारी से ग्रस्त लोगों को इलाज में मदद करे सरकार
पटना हाईकोर्ट ने दुर्लभ जेनेटिक बीमारी के असमर्थ मरीजों को इलाज और दवा मुहैया कराने के मामले में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने राजू यादव की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया। आगे की सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी। याचिकाकर्ता का कहना है कि समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर एवं भागलपुर समेत विभिन्न जिलों में 33 ऐसे रोगी हैं, जो डुचेने मस्क्यूलर डीस्ट्रोफी (डीएमडी) नामक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी से ग्रस्त हैं। इसकी दवा अमेरिका में मिलती है, लेकिन बेहद महंगी होने के कारण आम लोगों की पहुंच में नहीं है। इसलिए सरकार को सहयोग करना चाहिए। यदि रोगियों को इलाज की सुविधा नहीं दी गई तो यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 28, 39, 41 व 47 का उल्लंघन होगा।