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मरने से पहले पत्‍नी के लिखे ने पति को जेल जाने से बचाया, पटना हाई कोर्ट ने उम्रकैद से किया मुक्‍त

एकल पीठ ने पाया कि सुसाइड नोट में दहेज की मांग संबंधित किसी भी बात का जिक्र नहीं किया गया था। इस पर हाई कोर्ट ने अप्लार्थी को संदेह का लाभ देते हुए उसे हुए सजामुक्त कर दिया। पीडि़त पक्ष चाहे तो आगे अपील कर सकता है

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Wed, 30 Jun 2021 02:50 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jun 2021 02:50 PM (IST)
मरने से पहले पत्‍नी के लिखे ने पति को जेल जाने से बचाया, पटना हाई कोर्ट ने उम्रकैद से किया मुक्‍त
पत्‍नी के लिखे सुसाइड नोट ने बचाई पति की जान। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, राज्य ब्यूरो। Patna High Court News: पत्‍नी के सुसाइड नोट के कारण एक पति पूरी उम्र के लिए जेल जाने से बच गया। पति पर दहेज हत्‍या (Dowry Murder) का मुकदमा दर्ज था और उसे निचली अदालत से उम्र कैद (Life imprisonment) की सजा हो गई थी। हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्‍नी का लिखा सुसाइड नोट एक अहम वजह रहा, जिसके आधार पर पटना हाई कोर्ट ने दहेज हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए पति को बरी कर दिया है। न्यायाधीश बिरेंद्र कुमार (Justice Birendra Kumar) की एकलपीठ (single bench) ने सन्नी शर्मा (Sunny Sharma) की अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया।

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सास ने लगाया था पांच लाख रुपए दहेज मांगने का आरोप

मामले की प्राथमिकी में महिला के पिता ने आरोप लगाया था कि 2015 में उसकी बेटी का विवाह सन्नी शर्मा के साथ हुआ था। कुछ दिनों के बाद बेटी मायके आ गई और बताया कि उसका पति डिस्पेंसरी खोलने के लिए पांच लाख रुपये की मांग कर रहा है। वर्ष 2016 में उसने फंदे से लटक कर खुदकशी कर ली। पिता प्राथमिकी में बताया था कि बेटी की लाश के साथ एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है। उसमें उसने जिक्र किया था कि वह अपने ससुराल पक्ष से खुश नहीं है।

हाई कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपित को किया बरी

इस मामले में ट्रायल आत्महत्या करने वाली महिला के पति को 10 साल की उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस पूरे मामले का अवलोकन करने के बाद एकल पीठ ने पाया कि सुसाइड नोट में दहेज की मांग संबंधित किसी भी बात का जिक्र नहीं किया गया था। इस पर हाई कोर्ट ने अप्लार्थी को संदेह का लाभ देते हुए उसे हुए सजामुक्त कर दिया। ऐसे मामलों में अगर पीडि़त पक्ष चाहे तो हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील कर सकता है। न्‍यायिक प्रक्रिया में पीडि़त और आरोपित दोनों को सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाने का मौका दिया जाता है।


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