आठ बजे से लाइन में लग जाते हैं मरीज, 10 बजे तक डॉक्टर साहब का पता नहीं
पटना का एक एेसा अस्पताल है जो अपने नाम को चरितार्थ नहीं कर पा रहा। राजवंशीनगर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की दशा इस समय खराब है।
नीरज कुमार, पटना। पटना के अस्पताल बीमार हैं। यहां मरीज इंतजार करते रहते हैं, पर डॉक्टरों का पता नहीं रहता। आलम यह है कि सचिवालय से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित राजवंशीनगर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर 10 बजे हाजिरी लगाते हैं, जबकि सरकार द्वारा इसके लिए समय सुबह 8 बजे निर्धारित किया गया है। 10 बजे तक अस्पताल के अधिकांश चैंबर खाली हैं। इमरजेंसी में भर्ती मरीजों को भी कोई देखने वाला नहीं है।
10 बजे से पहले नहीं आते डॉक्टर
सुबह 10 बजे दैनिक जागरण की टीम जब राजवंशीनगर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पहुंची तो अस्पताल के ओपीडी की अधिकांश कुर्सियां खाली मिलीं। टीम ने देखा कि राज्य के कोने-कोने से आए मरीजों की भीड़ लगी है। हर कोई अपनी बारी का इंतजार कर रहा है, लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है।
सर्वाधिक भीड़ महिलाओं की
महिलाओं के इलाज के लिए भी व्यवस्था है। डॉ. रंजना पदस्थापित भी हैं। सोमवार को उनका ओपीडी भी था, लेकिन 10 बजे तक कहां थीं, किसी को पता नहीं। मरीज उनके कमरे के बाहर चक्कर काट रहे हैं। सोमवार को डॉ. एनएन राय की ड्यूटी भी ओपीडी में थी, लेकिन निदेशक ने बताया कि वे छुट्टी पर हैं।
इमरजेंसी के मरीज भी बेहाल
राजवंशीनगर अस्पताल की इमरजेंसी की हालत भी काफी खराब है। वहां पटना जिले के सकसोहरा निवासी राम बादक दास भर्ती हैं, लेकिन 10 बजे तक किसी डॉक्टर ने उनके इलाज की जरूरत नहीं समझी। पूछने पर बताया कि अब तक कोई डॉक्टर नहीं आए हैं। इंतजार कर रहे हैं। यही हाल मनेर निवासी सूरजदेव सिंह का है। प}ी भाई के साथ रविवार को आए थे। बाइक से गिरने के कारण पैर टूट गया है।
चलना-फिरना बंद हो गया है। दर्द से कराह रहे हैं, लेकिन उससे डॉक्टरों को क्या लेना-देना है। वे तो तानाशाही से ही चलेंगे। राजधानी में रहने वाली लीलावती की कमर में भी काफी चोट है। उठ नहीं पा रही है, कमर में बहुत दर्द हो रहा है। राजवंशीनगर अस्पताल की इमरजेंसी में पड़ी हैं। ऐसे में मरीजों को लेकर काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
दर्द की दवा भी नदारद
अस्पताल में दर्द की दवा भी नदारद है। हड्डी रोग का अस्पताल होने के कारण ट्रोमा के मरीज काफी संख्या में आते हैं, जो दर्द से कराहते रहते हैं, लेकिन अस्पताल उन्हें दर्द की दवाएं भी मुहैया नहीं करा पाता है।