परसौनी को रामकलावन का सेशेल्स के राष्ट्रपति के रूप में आने का इंतजार
गोपालगंज के बरौली प्रखंड के परसौनी गांव में खुशी की लहर है क्योंकि हिंद महासागर के दि़वपीय देश सेशेल्स में यहां के बेटे वैवेल रामकलावन को राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया है। उनके पुरखे करीब 135 साल पहले यहां से मारीशस चले गए थे। तब देश अंग्रेजों का गुलाम था।
गोपालगंज, जागरण संवाददाता। गोपालगंज के बरौली प्रखंड के परसौनी गांव में खुशी की लहर है, क्योंकि हिंद महासागर के दि़वपीय देश सेशेल्स में यहां के बेटे वैवेल रामकलावन को राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया है। उनके पुरखे करीब 135 साल पहले यहां से मारीशस चले गए थे। तब देश अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेज यहां के लोगों को मजदूरी कराने के लिए ले जाते थे। उन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। इनमें बिहार के लोग भी बड़ी संख्या में होते थे।
उन लोगों ने अपनी मेहनत से वहां अपना साम्राज्य भी स्थापित किया। रामकलावन के परदादा भी उन्हीं में थे, जो अपने वतन को छोड़कर वहां गए। फिर उनके वंशज वहां से सेशेल्स चले गए, लेकिन भारत और अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले। अब रामकलावन सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं।
वे दस जनवरी 2018 को अपने पूर्वजों के गांव को ढूंढते हुए परसौनी आए थे। यहां आते ही गांव की माटी को नमन कर माथे पर तिलक लगाया था। वे तब सेशेल्स की नेशनल असेंबली में नेता प्रतिपक्ष थे। अपने पुरखों के गांव परसौनी में कदम रहते ही इनकी आंखें छलक आईं थी। अपने स्वागत से अभिभूत रामकलावन ने कहा था कि वे यहां का प्यार कभी नहीं भूलेंगे। उन्होंने अगली बार फिर आने का वादा किया था। यह भी कहा था कि अब आएंगे तो राष्ट्राध्यक्ष बनकर।
राष्ट्राध्यक्ष बनने का उनका वादा पूरा हो गया है। लोगों को अब उनके राष्ट्रपति के रूप में आने का इंतजार है। उन्होंने यह भी कहा था कि वे अपने तीनों बेटों को भी लेकर आएंगे, ताकि वे अपने पुरखों का गांव देख सकें, यहां की मिट्टी को चूम सकें। वे उस समय अपने पुरखों के परिवार रघुनाथ महतो से मिले थे। रघुनाथ महतो ने बताया कि रामकलावन उनके चाचा के पुत्र हैं, रिश्ते में भाई लगते हैं। उनके राष्ट्रपति बनने से पूरा गांव खुश है। अब हम उनके स्वागत के लिए तत्पर हैं।