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प्रसंगवश : हमारी गंगा, वहां की पेरियार; जगह व समय अलग, कहानी एक

गंगा के बहाव में अप्रत्याशित कमी आई है। कोसी का कुसहा बांध टूटने की त्रासदी बिहार देख चुका है। उधर, केरल के पेरियार में आई बाढ़ ने भी हमें अलर्ट किया है। जगह अलग लेकिन कहानी एक है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 27 Aug 2018 11:41 AM (IST)Updated: Mon, 27 Aug 2018 09:14 PM (IST)
प्रसंगवश : हमारी गंगा, वहां की पेरियार; जगह व समय अलग, कहानी एक
प्रसंगवश : हमारी गंगा, वहां की पेरियार; जगह व समय अलग, कहानी एक
पटना [भारतीय बसंत कुमार]। इस साल की यह रिपोर्ट अचंभित करने वाली है कि अपनी गंगा नदी में जल बहाव में अप्रत्याशित कमी आई है। सिर्फ दो साल के दरम्यान हुई कमी का ही आकलन भयावह है। पटना में गंगा का डिस्चार्ज अभी 6.89 लाख क्यूसेक है, जबकि 21 अगस्त 2016 को 32 लाख क्यूसेक था। कई तर्क दिये जा रहे हैं। यह बताया जा रहा है कि गंगा की सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में बारिश कम हुई है और उम्मीद जताई जा रही है कि सितंबर माह में बहाव में कुछ वृद्धि दर्ज हो। घाघरा, झारखंड स्थित नार्थ कोयल और सोन आदि के पानी पर गंगा के बहाव की आस टिकी है। गंडक और घाघरा कितना 'पानी' टिका पाती है, यह देखना बाकी है। कोसी में भी डिस्चार्ज बहुत कम है। यह सबके लिए चिंता की बात है।
रेणु के 'ऋणजल-धनजल' की पटकथा से कहीं भयावह दृश्य बार-बार उपज ही जाता है। कुसहा बांध टूटने के बाद की विभीषिका पूरा देश देख चुका है। आज केरल में यही पटकथा बड़े भयावह रूप में हमारे सामने है। इस बात में न उलझा जाए कि केरल में विदेशी सहायता लेनी चाहिए थी या नहीं। उलझा तो इस बात पर जाए कि आखिर प्रकृति का यह प्रकोप ऐसा कैसे हुआ कि चौबीस घंटे में ही करीब सवा तीन सौ फीसदी अधिक बारिश हुई। 24 अगस्त को ही रांची में अचानक पांच घंटे में 94 मिलीमीटर बारिश हो गई।
केरल में औसतन बारिश 14 मिलीमीटर होती है, लेकिन इस बार औसत 66 मिलीमीटर बारिश हुई। इससे पेरियार समेत कई नदी में इतना उफान आया कि राज्य के 78 में से 24 डैम में जलस्तर सीमा से ऊपर निकल गया। एशिया के सबसे बड़े बांध चेरुथोनी का फाटक तक खोलना पड़ा। पेरियार नदी के उफान से हवाई अड्डे पर विमानों की आवाजाही रोकनी पड़ी। वहां राहत बचाव कार्य जारी है। लेकिन, समय ज्यों-ज्यों बीतता है आपदा प्रभावित की जरूरत वैसी ही बढ़ती है और राहत की चादर उसके बरक्स छोटी होती चली जाती है। 
यह सब हम सबों की करनी का परिणाम है। हमने नैसर्गिक अवदान की राह में अनेक रोड़े डाले हैं। अब उसकी ही प्रतिकूलता मानव जीवन झेल रहा है। जगह और समय अलग-अलग हो जाता है। नदी की निर्मलता को लेकर हम अब भी बहुत उदासीन हैं। अभी इसी साल बारिश से पूर्व बक्सर में जहाज अटका तो अर्से तक अटका ही रहा गया। छह फीट पानी की जरूरत थी और वहां सिर्फ चार फीट पानी बचा था, जिससे काफी दिनों तक मालवाहक जहाज अटका रहा।
बिहार में 23 जगहों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनना है। इतने दिन बाद प्लान बना भी तो क्रियान्वयन बहुत धीमा है। अकेले पटना में 10 जगहों पर बनना है। आधी जगह पर काम ही शुरू नहीं हुआ है। बक्सर में जो एजेंसी काम कर रही थी, वह बीच में ही काम छोड़ गई। जो भी पुराने एसटीपी हैं, वे अब काम के नहीं रह गए हैं। 2020 तक नए प्लांट के पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है। कहलगांव, बड़हिया, कटिहार के मनिहारी, खगडिय़ा, सुल्तानगंज, नवगछिया, भागलपुर, मुंगेर, बेगूसराय, हाजीपुर से लेकर बक्सर तक यह होना है। पर कहीं भी संतोषजनक प्रगति नहीं है।
पटना में ऐसे उदाहरण हैं, जिसमें गंगा की पेटी में बड़े निर्माण किए गए। यह अलग बात है कि इन अवैध निर्माण पर रोक लगा दी गई है। सीवेज में एक प्रतिशत कार्बनिक या अकार्बनिक ठोस होता है। कई देश सीवेज जल को प्रदूषण मुक्त करने की तकनीक को उच्चतम स्तर तक ले गए है। छोटा सा देश इजराइल भी उनमें एक है। इजराइल में आधी सिंचाई उपचारित जल से ही होती है।
अपने देश में करीब साठ प्रतिशत सीवेज मल-जल सीधे जल स्रोतों में डाल दिया जाता है। सतही जल के प्रदूषण का भी यह बड़ा कारक है। पवित्र नदियों का उद्गम से ही गंदा होने का एक मुख्य कारक यही है। लेकिन, हमें नाउम्मीद नहीं होना है। अपने देश में ऐसे उदाहरण हैं, जिसमें नदियों को फिर से शुद्ध बनाया गया है। लुधियाना के बलवीर सिंह इसी काम के लिए समादृत हैं। उन्होंने वहां की कालीबेई नदी को प्रदूषण मुक्त कराया। उनके संकल्प को स्थानीय लोगों का सहयोग मिला। ऐसी वहां मान्यता है कि गुरुनानक देव ने इसी नदी के जल में स्नान करते हुए शबद रचना की थी। 
एक उम्मीद तब जगी थी जब कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि संविधान द्वारा मनुष्य को प्रदत्त अधिकार नदियों के लिए भी बने रहेंगे ओर नदी जल को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी। नदी के प्रति आस्था की कोई कमी बिहार में नहीं है। बिहार के सबसे बड़े पर्व में यही आस्था नदी किनारे हिलोरे मारती है। हे गंगा मैया .... के गीतों से गंगा घाट गूंज उठते हैं।
न्यूजीलैंड में कोर्ट ने जब कुछ दिन पूर्व नदियों को सप्राण अस्तित्व लीविंग एंटिटी यानी जीवित इकाई माना तो उसके बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी इसे जीवित इकाई का दर्जा दिलाया। लेकिन, जमीन पर इस फैसले का असर होना अभी बाकी है।
बिहार की गंगा के साथ सह जीवन पर बड़ा शोध बहुत पहले डॉक्टर के एस बिलग्रामी कर चुके हैं। उनकी रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित हुए 30 साल से अधिक हो चुका है। यह रिपोर्ट तभी कह चुकी है कि गंगा है तो जीवन है...। नमामि गंगा को लेकर सरकार और राजनेता दोनों का बार-बार दावा है कि गंगा नदी की सफाई उनकी प्राथमिकता में है। बिहार के बिल्कुल पड़ोस में साहिबगंज में गंगा नदी के किनारे मालवाहक जहाजों के आवागमन के लिए बड़ी संरचना तैयार हो रही है। इजराइल ने अपनी तकनीक भारत से साझा करने की इच्छा जताई है। उम्मीद की बड़ी किरण फैल रही है। आइए, हम सब मिलकर अपनी नदियों को निर्मल बनाए रखें।

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