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मोदी कैबिनेट में जदयू के शामिल नहीं होने से गदगद है विपक्ष, डाले जा रहे हैं डोरे

लोकसभा चुनाव में राजग की प्रचंड जीत के बाद केंद्र की नई सरकार से जदयू के बाहर रहने के फैसले ने बिहार में विपक्ष के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं। राजद से ज्‍यादा खुश कांग्रेस है।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 07:11 PM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 10:37 PM (IST)
मोदी कैबिनेट में जदयू के शामिल नहीं होने से गदगद है विपक्ष, डाले जा रहे हैं डोरे
मोदी कैबिनेट में जदयू के शामिल नहीं होने से गदगद है विपक्ष, डाले जा रहे हैं डोरे

पटना [अरविंद शर्मा]। लोकसभा चुनाव में राजग की प्रचंड जीत के बाद केंद्र की नई सरकार से जदयू के बाहर रहने के फैसले ने बिहार में विपक्ष के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं। परिणाम के बाद से हताश-निराश प्रतिपक्ष को अब भाजपा-जदयू के अगले व्यवहार का इंतजार है। कांग्र्रेस और राजद समेत तमाम विपक्षी दलों को लग रहा है कि चुनाव के बाद अब सियासत का समीकरण बदल सकता है। लिहाजा सबकी बेकरारी बढ़ गई है। कुछ दल मुखर हैं तो कुछ ने चुप्पी साध रखी है। कांग्र्रेस, राजद और जीतनराम मांझी की पार्टी हम ने अपने-अपने तरीके से भावनाओं का इजहार किया है। 

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विरोधी मान रहे हैं शुभ संकेत

कांग्रेस-राजद के शीर्ष नेता जदयू के ताजा स्टैंड को अपने लिए शुभ संकेत मान रहे हैं। कांग्रेस ने जदयू पर डोरे भी डाल दिए हैं, जबकि राजद अभी प्रतीक्षा के मूड में है। जदयू और नीतीश कुमार की राजनीति को बहुत करीब से जानने वाले लालू प्रसाद को बनते-बदलते सियासी समीकरण में अपने लिए गुंजाइश दिखने लगी है। यही कारण है कि केंद्र सरकार में हिस्सेदारी से जदयू के अलग होने के बाद लालू परिवार ने चुप्पी साध रखी है। हालांकि राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने भाजपा-जदयू के भविष्य के बिगड़ते संबंधों की कल्पना जरूर की है, किंतु बात-बात पर ट्वीट करके जदयू के शीर्ष नेतृत्व पर हमला करनेवाले लालू परिवार के किसी भी सदस्य ने अभी तक मुंह नहीं खोला है। न राबड़ी देवी का ट्वीट आया है और न ही तेजस्वी यादव का।

लालू ने भी नहीं किया है ट्वीट

लालू ने भी देर रात तक सोशल मीडिया पर अपना उद्गार व्यक्त नहीं किया है। यहां तक कि राजद के फायर ब्रांड प्रवक्ता भाई वीरेंद्र को भी इसमें जदयू का अंदरुनी मामला से अधिक कुछ नहीं दिख रहा है। जाहिर है, राजद को पर्दा खुलने का इंतजार है। सूचना तो यह भी है कि राजद प्रमुख ने अपने प्रवक्ताओं को हिदायत दे रखी है कि बयान देने की बेताबी नहीं दिखाई जाए। इसे जदयू का अंदरुनी मामला बताकर दूसरी ओर से आने वाले संकेतों को पकडऩे-समझने की कोशिश की जाए। लालू की हिदायत के बाद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी प्रतीक्षा की मुद्रा में आ गए हैं। 

कांग्रेस में कुछ ज्यादा उत्साह

राजद की तुलना में कांग्र्रेस खेमे में ऊर्जा का संचार कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। इसकी वजह भी है। लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्र्रेस जिस गठबंधन में शामिल थी, उसके सारे घटक दल शून्य पर आउट हो गए। कांग्र्रेस के हिस्से में ही सिर्फ एक सीट आई। जाहिर है, कांग्र्रेस अब नए सिरे से सपने सजा रही है। यही कारण है कि हार के बाद समग्रता में समीक्षा के लिए राजद के नेतृत्व में बुलाई गई महागठबंधन की बैठक से कांग्रेस ने दूरी बना रखी है। ऐसे में भाजपा-जदयू के ताजा संबंधों से संजीवनी तलाशने की कोशिश लाजिमी है।

शुरू हो गई तलाश की प्रक्रिया

तलाश की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह ने जदयू की उपेक्षा को बिहार की अस्मिता से जोड़ते हुए भाजपा नेताओं को अहंकारी करार दिया है। कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी को भी बिहार में सियासी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। हालांकि जदयू के बारे में अभी कुछ कहना वह जल्दीबाजी मानते हैं, किंतु यह भी कहते हैं कि जो आज इधर है, कल उधर भी जा सकता है। सबसे ज्यादा बेताबी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा ने दिखाई है। प्रवक्ता दानिश रिजवान ने जदयू के लिए महागठबंधन का दरवाजा खुला बताया है। 

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