कभी राबड़ी की आंखों के थे तारे, अब राखी पर भी नहीं आते साधु-सुभाष
कभी राबड़ी देवी के लिए उनके दोनों भाई उनकी आंखों के तारे थे लेकिन राजनीतिक महात्वाकांक्षा के कारण दूरी बढ़ी तो अब राखी पर भी दोनोें भाई बहन से मिलने नहीं आते।
पटना [वेब डेस्क]। रक्षाबंधन ऐसा पर्व है, जिसमें बहनें भाई की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा का संकल्प दोहराते हैं। अधिकतर मामलों में भाई-बहन का प्यार ताउम्र बना रहता है। लेकिन, कई बार इस पावन रिश्ते में भी दरार भी आ जाती है।
एेसे कई उदाहरण हैं जब राजनीतिक महात्वाकांक्षा ने संबंधों की दीवार को दरका दिया। माधव राव सिंधिया के परिवार में वसुंधराराजे का जाना नहीं के बराबर है। ऐसी ही बात लालू यादव के परिवार में भी देखी जा सकती है।
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राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने दरका दिया रिश्ता
राबड़ी कभी अपने भाइयों साधु यादव और सुभाष यादव को बड़े धूमधाम से राखी बांधती थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते यह रिश्ता उतना गहरा नहीं रहा है। आस-पास रहने के बाद भी भाई बहन नहीं मिलते हैं। राखी के दिन भी साधु और सुभाष राबड़ी से नहीं मिलते हैं।
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कभी इनकी बोलती थी तूती
लालू राबड़ी की सरकार में इनकी तूती बोलती थी। साधु यादव को राबड़ी सरकार में छोटे सरकार के नाम से जाना जाता था। लालू राबड़ी से ज्यादा साधु और सुभाष के घर पर दरबार लगता था। लालू और राबड़ी की सरकार जाने के साथ ही साधु और सुभाष बागी हो गए। रिश्ता धीरे-धीरे कटु होता गया।