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बिहारः कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन की जांच में कितना आता है खर्च? जानकर रह जाएंगे दंग

आइजीआइएमएस पटना में जीनोम सीक्वेसिंग शुरू हो गई है। सात दिन में यह रिपोर्ट आ जाएगी कि जिन लोगों के नमूने लिए गए हैं वे कोरोना वायरस के किस वैरिएंट से संक्रमित हैं। इस खबर में आप जान सकते हैं कि इस टेस्ट में आखिर खर्च कितना आता है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 04 Jan 2022 04:50 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jan 2022 04:50 PM (IST)
बिहारः कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन की जांच में कितना आता है खर्च? जानकर रह जाएंगे दंग
पटना में जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हो गई है। सांकेतिक तस्वीर।

जागरण संवाददाता, पटना: इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) में सोमवार को 20 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हो गई है। सात दिन में यह रिपोर्ट आ जाएगी कि जिन लोगों के नमूने लिए गए हैं, वे कोरोना वायरस के किस वैरिएंट से संक्रमित हैं। कोरोना वायरस की जानकारी होने के बाद रोगी का सटीक उपचार करने में मदद मिलेगी। चिकित्साधीक्षक डा. मनीष मंडल ने बताया कि मशीन में एक बार में 96 नमूनों की जांच हो सकती है। एक नमूने की जांच की जाए या 96 की, उसमें 15 लाख रुपये का केमिकल (री-एजेंट) खर्च होगा। पहले बैच में जिन 20 नमूनों की जांच की जा रही है, उस पर भी 15 लाख रुपये का खर्च आएगा। 

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सौ लोगों की टीम, 24 घंटे करेगी विश्लेषण

डा. मनीष मंडल ने बताया कि जीनोम सीक्वेसिंग में आरएनए से बने कोरोना वायरस की आनुवंशिक संरचना का अध्ययन कर उसका कोड निकाला जाता है। इससे पता चलता है कि वायरस खुद को कितनी बार बदल चुका है और अब पहले से खतरनाक हुआ है या कमजोर हुआ है। 33 म्यूटेशन के कारण ही ओमिक्रोन को डेल्टा से ज्यादा संक्रामक है, लेकिन कम खतरनाक माना जा रहा है। वायरस की जीनोम सीक्वेसिंग के द्वारा उसके उपचार की दवा बनाने में मदद मिलती है। जीनोम सीक्वेसिंग एक जटिल प्रक्रिया है, इसमें वायरस कैसे बना, इसमें म्यूटेशन से क्या अंतर आया, वायरस की ऊपरी सतह पर स्थित कांटेदार संरचना यानी स्पाइक में एस जिंस है या नहीं, उनके बीच स्पेस में क्या अंतर आया है जैसे तमाम पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। इसके लिए आइजीआइएमएस में डाक्टरों व डाटा आपरेटर समेत सौ लोगों की टीम लगाई गई है। एस जिंस नहीं पाए जाने पर माना जाता है कि वायरस का नया वैरिएंट है। इसके बाद उसके जेनेटिक मैटेरियल यानी जिनसे वह बना है उसमें आए बदलाव का विश्लेषण किया जाता है। यही कारण है कि इसमें सात या उससे अधिक दिन का समय लगता है। म्यूटेशन के आधार पर ही वैरिएंट की पुष्टि की जाती है। 

ऐसे होती है वैरिएंट की पहचान 

कोरोना वायरस की आरटी-पीसीआर जांच के पहले चरण में आरएनए एक्सट्रैक्शन यानी उसे अलग किया जाता है। इसके बाद इसके बहुत सी कापी निकाल कर कंप्यूटर पर उनकी क्वालिटी का विश्लेषण करते हैं। इसमें आरएनए के चारो अमीनो एसिड यानी एडनिन, गुआनिन, साइटोसिन औश्र थायमिन के क्रम का अध्ययन कर बदलाव देखा जाता है। जिनके एस जीन में बदलाव पाया जाता है, उससे हमें आने वाले नए वैरिएंट का पता चलता है। 

विदेशों से आ रहा री-एजेंट्स 

जीनोम सीक्वेसिंग की जांच के लिए कई प्रकार की मशीनें हैं। विभिन्न माडल की मशीनों में एक बार में 96 से से 376 नमूनों तक की जांच एकसाथ की जा सकती है। आइजीआइएमएस में 96 जांच एक साथ करने वाली मशीन है। इसका री-एजेंट्स अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों से मंगाया जाता है। आइजीआइएमएस ने अमेरिका से री-एजेंट्स मंगवाया है। 


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