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मिशन 2019: बिहार में गठबंधन का साइड इफेक्‍ट यह भी, घटे सीटों के पुराने दावेदार

बिहार में लोकसभा चुनाव को देखते हुए गठबंधनों के स्‍वरूप में परिवर्तन हुआ है। इसका असर सीटों की दावेदारी पर भी पड़ा है। पूरा मामला जानिए इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 06 Jan 2019 03:07 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jan 2019 08:56 AM (IST)
मिशन 2019: बिहार में गठबंधन का साइड इफेक्‍ट यह भी, घटे सीटों के पुराने दावेदार
मिशन 2019: बिहार में गठबंधन का साइड इफेक्‍ट यह भी, घटे सीटों के पुराने दावेदार

पटना [अरुण अशेष]। बिहार में गठबंधन का एक साइड इफेक्‍ट यह भी है। सभी दलों के लिए राहत की बात है कि उनके सामने पुराने उम्मीदवारों की दावेदारी कम हो गई है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बुनियादी फर्क है। उस समय त्रिकोणीय संघर्ष था। सीटें अधिक थीं। इस साल सीधे मुकाबले की तस्वीर बन रही है। सीटें कम हो गई हैं। सभी दलों के 2014 वाले उम्मीदवार इधर-उधर हो गए हैं। इसके चलते कम सीटों के बावजूद पार्टी के वफादार लोगों को टिकट मिलने की गुंजाइश बनी हुई है।

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राजद में खुद ही कम हो गए नौ उम्‍मीदवार

राजद को ही लीजिए। 2014 में 27 उम्मीदवार थे। इनमें से नौ अपने आप कम हो गए। पश्चिम चंपारण के उम्मीदवार रहे रघुनाथ झा और शिवहर के अनवारूल हक गुजर गए। मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव ने अपनी पार्टी बना ली। मुंगेर के प्रगति मेहता और आरा के उम्मीदवार रहे श्रीभगवान सिंह कुशवाहा जदयू में हैं। महाराजगंज के प्रभुनाथ सिंह और नवादा के राजबल्लभ यादव सजायाफ्ता होने के चलते चुनाव नहीं लड़ सकते।

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सारण से लड़ी थीं। वे विधान परिषद की सदस्य हैं। चुनाव लडऩे की दिलचस्पी भी नहीं है। पाटलिपुत्र की उम्मीदवार रहीं मीसा भारती राज्यसभा की सदस्य हैं। उनके चुनाव लडऩे पर फिलहाल संशय है। महागठबंधन में राजद को 20 सीटें भी मिलती हैं तो अधिक दिक्कत नहीं होगी।

कांग्रेस को राहत: दावा नहीं करेंगे आठ उम्मीदवार

कांग्रेस को भी यह राहत है कि 2014 के उसके 12 में से आठ उम्मीदवार अपना दावा नहीं करेंगे। किशनगंज के सांसद मौलाना असरारूल हक का निधन हो गया है। मुजफ्फरपुर के डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह राज्यसभा के सदस्य हैं। नालंदा के आशीष रंजन सिन्हा और पटना साहिब के उम्मीदवार रहे कुणाल सिंह राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हैं।

कांग्रेस में नए शामिल हुए तारिक अनवर के लिए सीट का संकट नहीं है। वे पिछली बार भी कांग्रेस-राजद की मदद से एनसीपी उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीते थे।

भाजपा में टिकट कटने की आशंका से परेशान सांसद

भाजपा का संकट थोड़ा दूसरे तरह का है। यहां पराजित उम्मीदवार इत्मीनान में हैं। सिटिंग सांसद टिकट कटने की आशंका से परेशान चल रहे हैं। फिर भी हालत भी उतनी बुरी नहीं है। सीधा हिसाब यह बैठ रहा है: भाजपा के 22 सांसद है। इनमें से बेगूसराय के सांसद भोला सिंह का निधन हो गया। शत्रुघ्न सिन्हा (पटना साहिब) और कीर्ति झा आजाद (दरभंगा) खुद ब खुद अलग हो गए। मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव ने पहले ही चुनाव से अलग होने की घोषणा कर दी है। मतलब चार दावेदार कम हो गए।

बचे हुए 18 के लिए भाजपा के पास 17 सीटें हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जिनके बारे में पार्टी का आंतरिक सर्वे टिकट देने की सिफारिश नहीं कर रहा है। जहां तक पिछले चुनाव के पराजित आठ उम्मीदवारों का सवाल है, टिकट न मिलने की आशंका में, उनमें से अबतक सिर्फ एक का मुंह खुला है। ये पूणिया के पूर्व सांसद पप्पू सिंह हैं।


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