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CM Nitish Kumar के गृह जिला से एक भी मंत्री नहीं, मंत्री पद से हटाए गए श्रवण कुमार, बड़ी जिम्‍मेदारी मिलने की उम्‍मीद

CM Nitish Kumar जेपी आंदोलन के जरिए बिहार की राजनीति में कदम रखने वाले पूर्व मंत्री श्रवण कुमार को इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इस तरह अब नालंदा से सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रह गए किसी को मंत्री पद नहीं दिया गया।

By Prashant KumarEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 07:25 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 07:25 PM (IST)
CM Nitish Kumar के गृह जिला से एक भी मंत्री नहीं, मंत्री पद से हटाए गए श्रवण कुमार, बड़ी जिम्‍मेदारी मिलने की उम्‍मीद
नई सरकार में मंत्री पद से हटाए गए श्रवण कुमार। जागरण।

पटना, जेएनएन। जेपी आंदोलन के जरिए बिहार की राजनीति में कदम रखने वाले पूर्व मंत्री श्रवण कुमार को इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इस तरह अब नालंदा से सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रह गए, किसी को मंत्री पद नहीं दिया गया। इसे चुनाव में पार्टी की सीटें घटने से भी जोड़ा जा रहा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब श्रवण कुमार को संगठन में महत्वपूर्ण जवाबदेही दी जा सकती है। ताकि वे संगठन की ढीली चूलों को कसने का काम कर सकें। वे जद यू के लक्ष्य 2025 पर काम करेंगे।

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जार्ज फर्नांडिस के चुनावी कर्ता-धर्ता रहे हैं श्रवण

श्रवण समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के चुनावी कर्ताधर्ता रहे हैं। चुनाव प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में भी चुनाव जीतते रहे हैं। यही वजह है कि वे 1995 के बाद लगातार सातवीं बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने संसदीय कार्य विभाग समेत कई अन्य विभागों के दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन भी किया।

समता पार्टी से जीते सात विधायकों में थे श्रवण

61 वर्षीय श्रवण कुमार मूलतः समाज सेवा से जुड़े रहे हैं। जब लालू यादव से अलग होकर नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस ने साल 1994 में समता पार्टी का गठन किया था, तब से श्रवण कुमार नीतीश के खास सिपाही रहे हैं। श्रवण कुमार  पहली बार समता पार्टी के टिकट पर 1995 में नालंदा सीट से विधायक चुने गए। तब से लेकर आज तक सात बार हुए सभी विधानसभा चुनावों में नालंदा सीट से वही जीतते आ रहे हैं। 1995 में समता पार्टी के मात्र सात उम्मीदवार जीते थे, उनमें से एक श्रवण कुमार भी थे।

अपने वोटरों को जोड़े रखा, विपक्ष टुकड़ों में बंटा

श्रवण चुनावी राजनीति के मंजे खिलाड़ी हैं। न विचलित होते हैं और न ही उत्तेजना में कोई बयान देते हैं। 2020 का विधानसभा चुनाव इसका जीवंत उदाहरण है। नालंदा से जद यू प्रत्याशी श्रवण कुमार को हराने के लिए विपक्ष ने हर सम्भव जतन किया। मजबूत चक्रव्यूह रचने की कोशिश की, परन्तु सब बेकार रहा। वे अंततः अपने पक्ष के वोटरों को संगठित रखने में कामयाब रहे और विपक्ष के मत टुकड़ों में बंट गए। खूबी यह रही कि श्रवण को हर जमात के कम या ज्यादा वोट मिले। इसमें वोटरों की दलीय प्रतिबद्धता आड़े नहीं आई। यही वजह रही कि श्रवण ने जदयू प्रत्याशी के तौर पर निर्दलीय कौशलेंद्र कुमार को 16077 मतों के बड़े अंतर से हराने में सफलता पाई ।  महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने युवा चेहरे गुंजन पटेल को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन वह कोई जादू नहीं कर पाए। लोजपा भी चौथे नम्बर पर चली गई।

अधूरा है नालंदा को प्रखंड का दर्जा दिलाने का टास्क

मंत्री श्रवण कुमार के सामने नालन्दा को प्रखंड व अंचल बनवाना। सड़क व पेयजल की उपलब्धता सहित सिंचाई के पर्याप्त साधन की व्यवस्था, नहर, पइन की उड़ाही का मामला, नालन्दा को पर्यटन का मानचित्र पर लाना तथा अस्पतालों में महिला चिकित्सक की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनोती है। इस विस क्षेत्र की जनता उनसे काफी उम्मीद रखे हुए है।


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