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धान की नई प्रजाति 'राजेंद्र नीलम', अब कम पानी में होगी अच्छी उपज, जानें इसकी खूबियां

डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने धान की नई प्रजाति विकसित की है। ये कम पानी में अधिक उपज देगी। जानें इसकी खासियत।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 08:11 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2020 08:11 AM (IST)
धान की नई प्रजाति 'राजेंद्र नीलम', अब कम पानी में होगी अच्छी उपज, जानें इसकी खूबियां
धान की नई प्रजाति 'राजेंद्र नीलम', अब कम पानी में होगी अच्छी उपज, जानें इसकी खूबियां

नीरज कुमार, पटना। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में कम बारिश हो रही है। इससे कृषि पर पड़ रहे प्रभावों को कम करने के लिए कृषि विज्ञानियों ने कम पानी में उगने वाली फसलों की नई प्रजातियों की खोज शुरू कर दी है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने कम पानी में अच्छी उपज देने वाली धान की नई प्रजाति विकसित की है। नई प्रजाति का नाम 'राजेंद्र नीलम' दिया गया है। इसे सेंट्रल वेरायटी रिलीज कमेटी ने पूरे देशभर के लिए जारी भी कर दिया है।

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कृषि विवि की ओर से बीज तैयार करने के लिए इसे बिहार राज्य बीज निगम को मुहैया करा दिया गया है। अगले साल से निगम किसानों को बीज उपलब्ध कराएगा। हालांकि प्रगतिशील किसानों को धान की नई प्रजाति विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से मुहैया कराई जा रही है। किसान विश्वविद्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

ये हैं खूबियां :

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के डीन डॉ. केएम सिंह का कहना है कि 'राजेंद्र नीलम' मात्र दो से तीन सिंचाई में तैयार होने वाली धान की प्रजाति है। इससे 40 प्रतिशत पानी के साथ लागत खर्च में भी बचत होगी। सामान्य धान की प्रजातियों को तैयार होने में सात से आठ बार सिंचाई की जरूरत होती है। 'राजेंद्र नीलम' प्रजाति की फसल 105 से 110 दिन में तैयार होती है। यह ज्यादा पैदावार देने वाली प्रजाति है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 40 से 45 क्विंटल है। इसकी ऊंचाई 100 सेंटीमीटर होती है।

बिहार, झारखंड, कर्नाटक एवं गुजरात में हुआ ट्रायल

'राजेंद्र नीलम' को विकसित करने वाले कृषि विज्ञानी डॉ. नीलंजय का कहना है कि बिहार के साथ इस प्रजाति का ट्रायल झारखंड, कर्नाटक एवं गुजरात में हुआ था। इसके बाद केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के लिए इसे जारी कर दिया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के किसान इस प्रजाति के बीज को उगाकर बोवाई कर सकते हैं। कृषि विज्ञानियों के अनुसार 15 जून के बाद किसान इसकी सीधी बोवाई कर सकते हैं। इससे पैदावार में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। चाहें तो इसका बिचड़ा भी डाल सकते हैं।


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