जन्म से नेपाली कराटे की रानी शीतल ने भारत को बनाया कर्मभूमि, 500 बेटियों को बना चुकी हैं सशक्त
नेपाल में जन्मी शीतल पिछले 12 साल से नालंदा की बेटियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रही हैं। शीतल अब तक पांच सौ से अधिक बेटियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देकर बेल्ट होल्डर बना चुकी हैं।
बिहारशरीफ। शीतल खड्गी को बिहार की 'वूमेंस बेस्ट फाइटर' के तौर पर जाना जाता है। वे पिछले 12 साल से नालंदा की बेटियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रही हैं। शीतल का मानना है कि समाज में बेटियों को सुरक्षित रहना है, तो किसी दूसरे से अपेक्षा की बजाए खुद सशक्त बनना होगा। शीतल अब तक पांच सौ से अधिक बेटियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देकर बेल्ट होल्डर बना चुकी हैं। भारत की बेटियों को आत्मरक्षा की कला सिखा रहीं शीतल मूलतः नेपाल की हैं, परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि भारत को बना लिया है।
बेटियों को सबल व सक्षम बनाने का प्रयास
अपने हुनर का इस्तेमाल बिहार के नालंदा जिले की बेटियों को सबल व सक्षम बनाने में कर रही हैं। कहती हैं, राजगीर महाभारत काल से ही मल्ल युद्ध की भूमि रही है। मगध सम्राट जरासंध का मल्ल युद्ध में कोई सानी न था। उन्होंने राजगीर को ही मगध की राजधानी बनाया था। ऐसे में यहां की बेटियां कमजोर रहें, ऐसा हो नहीं सकता। एक बेटी कराटे सीखेगी तो वह अपनी संतान व परिवार को आत्मरक्षा का गुर बताएगी, सीखने को प्रेरित करेगी। धीरे-धीरे ऐसा वक्त आएगा कि नियमित अभ्यास से पूरा समाज स्वस्थ्य और सक्षम हो जाएगा।
रग-रग में बस चुका है नालंदा
जागरण से विशेष बातचीत में शीतल ने बताया कि लगभग 40 साल से उनके पिता पुष्पराज नालंदा के राजगीर में रह रहे हैं। अब तो रग-रग में नालंदा बस चुका है। वह फिलवक्त बिहारशरीफ में अपने पति संजय खड्गी के साथ रह रही हैं। संजय भी पेशे से मार्शल आर्ट ट्रेनर हैं। शीतल ने दसवीं तक की पढ़ाई राजगीर से की है। शुरू से मार्शल आर्ट के प्रति झुकाव रहा। सीखने की ललक ने कराटे में दक्ष बना दिया। कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में धुरंधर खिलाड़ियों के पसीने छुड़ाए, तो मनोबल बढ़ता गया। शीतल की क्षमता, कौशल व उपलब्धियों को देखते हुए कई साल पहले उन्हें वूमेंस बेस्ट फाइटर ऑफ बिहार के खिताब से नवाजा गया। शीतल नालंदा हेल्थ क्लब स्थित गोल्डन फिस्ट कराटे स्कूल में हर दिन बच्चों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देती हैं। साथ ही वे गरीब बच्चियों को निशुल्क ट्रेनिंग देती हैं।
अब बिहार ही मायका और ससुराल
शीतल खड्गी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अब तो भारत ही मेरा मायका व ससुराल जैसा है। पिता 40 साल पहले बिहार आए और राजगीर में ही बस गए। बिजली विभाग में नौकरी की। यहीं मेरी शादी हुई। पति संजय खड्गी भी नेपाल से हैं। शादी के बाद वो भी यहीं बस गए। अब तो नेपाल जाने का मन नहीं करता। यहां के लोग काफी अच्छे हैं। नेपाल के लोगों के मन में भी भारत के लिए काफी सम्मान है। यह बेटी-रोटी का रिश्ता है। बिहार की मिट्टी ने मुझे पहचान दी, अब यहीं दफन होने का इरादा है।
भारत को अपना समझ कर आए थे पापा
शीतल ने कहा कि पिछले दिनों भले ही भारत व नेपाल कई मसलों पर आमने-सामने हुए, परंतु यह महज सियासत है। दोनों देश की जनता एक है। चार दशक पहले तो भारत व नेपाल में कोई फर्क ही नहीं महसूस होता था। जब पिता रोजगार के लिए नेपाल से बिहार के लिए चले तो नाना दान बहादुर ने कहा था कि जाओ भारत भी अपना है। इसके बाद पिता बिहार के राजगीर आए। कभी भी उन्हें यह ख्याल नहीं आया कि वे दूसरे मुल्क में हैं। अक्सर कहते थे कि भारत-नेपाल एशिया महाद्वीप में सबसे अच्छे दोस्त हैं।
मात्र तीन बर्तन लेकर आई थीं नालंदा
शीतल ने बताया कि मात्र तीन बर्तन लेकर वह पति संग 2006 में बिहारशरीफ आई थीं। किराए का छोटा सा रूम था, खाने तक के लाले थे। बेटा सोजल अपनी नानी सुशीला देवी का इंतजार किया करता था कि वे राजगीर से आएंगी और उसे बढ़िया खाना मिलेगा। संजय खड्गी बताते हैं कि अगर ससुराल का साथ नहीं मिलता तो आज हम यहां नहीं होते। सास ने हर छोटी-बड़ी जरूरतों का ख्याल रखा। उस समय कमाई का जरिया नहीं था, बस कराटे के बूते अपनी किस्मत आजमाने बिहारशरीफ चले आए थे।
पूरा परिवार कराटे को ही जी रहा
शीतल व संजय खड्गी नालंदा जिले में जाना-पहचाना नाम है। इनके संघर्ष की कहानी भी काफी प्रेरणादायी है। पूरा परिवार कराटे को ही जीता है। बेटा सोजल खड्गी भी मार्शल आर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल समेत कई उपलब्धियां हासिल कर चुका है। मां व पिता की तरह सोजल ब्लैक बेल्ट है। बिहारशरीफ के सोहसराय स्थित शीतल खड्गी के घर में बने रैक पर सजे शील्ड, मेडल व दर्जनों सर्टिफिकेट की तस्वीर कराटे के प्रति पूरे परिवार के समर्पण की कहानी बयां करने के लिए काफी है।