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बिहार के सुदामा के लिए नीरज चोपड़ा बने थे 'कृष्ण', जब सबने मोड़ा मुंह तब थमा दिया था भाला

जेवलिन में नेशनल जूनियर चैंपियन जमुई के सुदामा यादव नीरज चोपड़ा को कृष्ण का दर्जा देते हैं। अंजनी कुमारी व मीनू सोरेन भी उन्हें अपना प्रेरणाश्रोत मानती हैं। हांगकांड में यूथ एशियन चैंपियनशिप के दौरान घायल हुए सुदामा से जब सबने मुंह मोड़ा तो नीरज उनकी मदद को सामने आए।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 08 Aug 2021 06:39 PM (IST)Updated: Sun, 08 Aug 2021 06:39 PM (IST)
बिहार के सुदामा के लिए नीरज चोपड़ा बने थे 'कृष्ण', जब सबने मोड़ा मुंह तब थमा दिया था भाला
टोक्यो आलिंपिक में गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा और बिहार के सुदामा। जागरण आर्काइव।

अरुण सिंह, पटना। ओलिंपिक के इतिहास में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में पहला मेडल वह भी गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा बिहार के नहीं है। न ही वह कभी यहां आए हैं, लेकिन उनका असर यहां के एथलीटों पर काफी है। जेवलिन में नेशनल जूनियर चैंपियन जमुई के सुदामा कुमार यादव उन्हें कृष्ण का दर्जा देते हैं। अंजनी कुमारी व मीनू सोरेन भी उन्हें अपना प्रेरणाश्रोत मानती हैं। हांगकांड में यूथ एशियन चैंपियनशिप के दौरान 2019 में घायल हुए सुदामा से जब सभी ने मुंह मोड़ा तो नीरज चोपड़ा उनकी मदद को सामने आए। नीरज ने सुदामा के घुटने का आपरेशन करवाया और फिर से जेवलिन थामने को प्रोत्साहित किया। कर्नाटक के इंस्पायर इंस्टीट्यूट आफ स्पोट्र्स में प्रशिक्षण हासिल कर रहे सुदामा ने जागरण के साथ खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने बिहार में एथलेटिक्स के संदर्भ में अपने विचार रखे।

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शुरू हो ओलिंपिक पोडियम अभियान

जूनियर नेशनल में अंजनी कुमारी, मीनू सोरेन जैसे चैंपियन जेवलिन थ्रोअर प्रोत्साहन के अभाव में सीनियर में पिछड़ जाते हैं। 2016 में रियो ओलिंपिक से पूर्व केंद्र सरकार ने ओलिंपिक पोडियम अभियान की शुरुआत की थी। इसका असर टोक्यो में दिखा है। इसी तरह 2024 पेरिस ओलिंपिक की तैयारी हमारे खेल विभाग को अभी से शुरू करनी होगी। बेहतर एथलीटों का चयन कर उन्हें सुपर एक्सीलेंस सेंटर में प्रशिक्षण की व्यस्था करनी होगी। उनके खेल उपकरण, डाइट पर ध्यान देना होगा। नौकरी देनी होगी। तब जाकर वे अपने खेल पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

हान जैसे हों कोच

जर्मनी के कोच उवे हान के आने से नीरज चोपड़ा के खेल पर काफी फर्क पड़ा हैं, जिनके नाम 104 मीटर जेवलिन फेंकने का विश्व रिकार्ड है। इसी तरह के कोच की जरूरत बिहार के एथलीटों काे है। ग्रास रूट लेवल पर बेस मजबूत करने के लिए स्थानीय कोच से काम चल सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के लिए ऊंची सोच जरूरी है। खेल विभाग जब एथलीटों को विदेश में ट्रेनिंंग करने भेजेंगे तब जाकर उन्हें रिटर्न गिफ्ट मिलेगा।

चाहिए छह सिंथेटिक ट्रैक

एथलीटों को अभ्यास के लिए कम से कम राज्य में छह सिंथेटिक ट्रैक की जरूरत है। दुर्भाग्य से बिहार में केवल दो ऐसे ट्रैक राजधानी पटना में है। इनमें भी एक बीएमपी परिसर में है, जिसका उपयोग आम खिलाड़ी नहीं कर सकते। दूसरा पाटलिपुत्र खेल परिसर में है, जहां पिछले दो साल से कोरोना के कारण अभ्यास बंद है। रही-सही कसर खिलाड़ियों पर प्रवेश शुल्क लगाकर कर दी। कला, संस्कृति व युवा विभाग के मंत्री ने पिछले दिनों प्रमंडलों में सिंथेटिक ट्रैक लगाने की बात कही थी। ऐसा संभव हुआ तो हमारे एथलीट भी उन्हें निराश नहीं करेंगे।     

नई दिशा के साथ मिलेगी उड़ान

एनआइएस एथलेटिक्स प्रशिक्षक अभिषेक कुमार ने कहा कि नीरज चोपड़ा के स्वर्ण जीतने से भारतीय एथलेटिक्स जगत को एक नई दिशा और उड़ान मिलेगी। बिहार में भी अनेकों खेल प्रतिभाएं हैं। उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकार भी अंतरराष्ट्रीय पदक के लिए खेल को मिशन मोड में लेगी और आने वाले ओलिंपिक में बिहार की  भागीदारी तय होगी। 


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