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RS Election: NDA ने दी समर्पण व अनुभव को तरजीह, पहली बार परिवार से ऊपर उठा RJD

राज्यसभा चुनाव में बिहार में सभी पार्टियों के प्रत्‍याशी नामांकन कर चुके हैं। राजग ने समर्पण व अनुभव को तरजीह दी है तो राजद पहली बार परिवारवाद से ऊपर उठा दिख रहा है।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 09:39 AM (IST)Updated: Tue, 13 Mar 2018 07:37 PM (IST)
RS Election: NDA ने दी समर्पण व अनुभव को तरजीह, पहली बार परिवार से ऊपर उठा RJD
RS Election: NDA ने दी समर्पण व अनुभव को तरजीह, पहली बार परिवार से ऊपर उठा RJD

पटना [अरविंद शर्मा]। राज्यसभा की छह सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में सभी दलों ने अलग-अलग फार्मूले अपनाए। जदयू ने पार्टी और नेतृत्व के प्रति समर्पण को तरजीह दी तो राजद ने पहली बार परिवारवाद से ऊपर उठकर जातिवाद के आरोपों को झुठलाने की कोशिश की है। कांग्रेस के सामने अशोक चौधरी की बगावत के बाद पार्टी को मंझधार से बचाकर किनारे तक लाने की चुनौती थी। भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को दोबारा आगे करके बिहार में अनुभव और काबिलियत को प्राथमिकता दी है।

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राज्यसभा के अनुभवी सदस्य रहे  हैं किंग महेंद्र

जदयू ने प्रसिद्ध उद्योगपति महेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ किंग महेंद्र को तीसरी बार राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। वैसे महेंद्र पिछले 38 वर्षों से लगातार किसी न किसी सदन का प्रतिनिधित्व किया है। इन्हें देश में राज्यसभा का सबसे अनुभवी सदस्य माना जाता है। पहली बार वह 1980 में कांग्र्रेस के टिकट पर जहानाबाद से लोकसभा के लिए चुने गए थे। 1985 से वह लगातार राज्यसभा के सदस्य हैं। जदयू के पहले महेंद्र कांग्र्रेस और राजद की ओर से भी राज्यसभा जा चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू के टिकट पर तीसरी बार उन्हें उच्च सदन में भेजकर अनुभव का सम्मान किया है।

वशिष्ठ को मिला समर्पण व निष्ठा का पुरस्कार

इसी तरह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह को पार्टी के प्रति समर्पण का पुरस्कार मिला है। वशिष्ठ प्रारंभ से ही नीतीश कुमार के हमराही हैं। नीतीश और वशिष्ठ की सियासी दोस्ती तब से है जब पहली बार लालू से अलग होकर नीतीश ने समता पार्टी बनाई थी। तब वशिष्ठ लालू की सरकार में श्रम संसाधन मंत्री थे, लेकिन नीतीश के पार्टी से अलग होते ही वशिष्ठ ने भी लालू का साथ छोड़ दिया था।

बाद में जब नीतीश ने समता पार्टी का विलय जदयू में कर दिया तो कुछ दिनों बाद वशिष्ठ फिर नीतीश के साथ हो गए। पिछले तीन बार से वशिष्ठ जदयू के अध्यक्ष भी हैं और राज्यसभा के सदस्य भी।

लालू ने की सवर्णों को साधने की कोशिश

सियासी एजेंडे में दलित-पिछड़ों के अधिकारों की बात करने वाले राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने इस बार उच्च सदन के लिए नुमाइंदों के चयन में सवर्णों को साधकर राजद के नए अवतार की झलक दिखाई है। इसे लालू के सियासी वारिस एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की प्रगतिशील राजनीति को स्थापित करने की कोशिश भी मानी जा रही है। ऊर्जावान राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा को राज्यसभा भेजने का संदेश साफ है कि अबतक परिवारवाद के आरोपों से घिरे लालू अब सवर्णों को नाराज करके राजनीति नहीं करना चाहते हैं।

नया ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण गढ़ते दिख रहे लालू

मुस्लिम नेता अशफाक करीम को आगे करके लालू अपने लिए ब्राह्मïणों और मुस्लिमों का नया समीकरण भी गढ़ते दिख रहे हैं। लालू की छवि सवर्ण विरोधी मानी जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजद की ओर से सवर्ण प्रत्याशियों की अनदेखी से इस धारणा को और बल मिला था। तेजस्वी को राजद का सीएम प्रत्याशी घोषित करने के बाद लालू ने शिवानंद तिवारी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर पुरानी छवि को बदलने की कोशिश शुरू कर दी थी। मनोज झा को राज्यसभा भेजकर आलोचकों के अक्स से निकलने की पहल की है।

सामाजिक संतुलन बनाने की जुगत में कांग्रेस

राजद की सहयोगी कांग्र्रेस ने भी लालू के हिसाब से फील्ड सजाई है। भूमिहार जाति से अखिलेश सिंह को राज्यसभा भेजकर महागठबंधन में सामाजिक संतुलन बनाने की कोशिश मानी जा रही है।


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