Bihar Chunav 2020: बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत का असर राज्यों से लेकर राज्यसभा तक दिखेगा
भाजपा ज्यादा से ज्यादा राज्यों में जीत हासिल कर वहां सरकार तो बनाना चाहती ही है साथ ही उन राज्यों के विधायकों की मदद से राज्यसभा में अपने सदस्यों की संख्या बढ़ा खुद को मजबूत करना चाहती है ताकि विधेयक पास कराने में विपक्ष अड़चन न पैदा कर सके।
पटना, जेएनएन। बिहार विधानसभा चुनाव व अन्य उपचुनावों में राजग और खासकर भाजपा को मिली जीत का असर अगले साल पांच प्रमुख राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर देखने को मिल सकता है। इन राज्यों में अगर भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा तो निश्चित तौर पर राज्यसभा का गणित भी उसके पक्ष में चला जाएगा, जहां फिलहाल विपक्ष मजबूत भूमिका में है। इनमें बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु व पुडुचेरी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर में भी अगले साल चुनाव हो सकता, लेकिन यह तभी संभव होगा जब वहां परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
असम में भाजपा के नेतृत्व में राजग की सरकार सत्ता में काबिज है, इसलिए वहां पार्टी के सामने सरकार को बरकरार रखने की चुनौती होगी। इसके लिए पार्टी काफी पहले से तैयारी में जुट गई है। भाजपा का सबसे ज्यादा ध्यान बंगाल पर है, जहां वह 10 साल से सत्ता में काबिज ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंकना चाहती है।
अहम होंगे आगामी विधानसभा चुनाव : बंगाल में विधानसभा की कुल 294, असम में 126, केरल में 140, तमिलनाडु में 234 व पुडुचेरी में 33 सीटें हैं। असम में भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दरार की खबरें आई थीं, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने जल्द ही इस पर काबू पा लिया। कांग्रेस की कमजोरी भाजपा के लिए वरदान साबित हो सकती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में सत्तारूढ़ ममता बनर्जी कमजोर होती नजर आईं। 22 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस भले ही नंबर एक पर रही, लेकिन भाजपा के खाते में 18 सीटें आ गईं।
राज्य में महज 16 विधानसभा सीटें हासिल करने वाली भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव की यह जीत बेहद अहम हो गई। इसके बाद से पार्टी लगातार बंगाल में सक्रिय है और आगामी विधानसभा चुनाव में 200 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा के पास केरल में एक और पुडुचेरी में तीन सीटें हैं। तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी पार्टी एआइडीएमके सत्ता में है।
बदल सकता है संसद के उच्च सदन राज्यसभा का गणित : विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत न सिर्फ स्थानीय सरकार के गठन, बल्कि केंद्र की सरकार के सुचारू संचालन में भी मददगार साबित होगी। लोकसभा में बंपर बहुमत वाली केंद्र सरकार के सामने जब राज्यसभा से किसी विधेयक को पास कराने की बात आती है तो वह कई बार कमजोर पड़ती दिखाई देती है। 86 सदस्यों वाली भाजपा को 40 सदस्यों वाली कांग्रेस से जीतने के लिए दांवपेच आजमाने पड़ते हैं। इसका कारण है कि कांग्रेस को विभिन्न राज्यों से चुनकर आने वाले क्षेत्रीय दलों का मुद्दा आधारित समर्थन प्राप्त हो जाता है।
और निखरी पीएम मोदी की छवि : बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और निखरी है। कमजोर अर्थव्यवस्था और कोरोना महामारी के बीच बिहार में राजग के पक्ष में आए नतीजों ने साफ किया है कि जनता के बीच मोदी का जलवा कायम है। दिखा तेजस्वी का तेज भले ही महागठबंधन हार गया हो, लेकिन इस चुनाव में तेजस्वी प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे। उन्होंने न सिर्फ महागठबंधन का कुशल नेतृत्व किया, बल्कि उसे जीत दिलाने की भी भरसक कोशिश की।
कमजोर नहीं नीतीश : जदयू की की सीटें भले ही घटकर 43 रह गई हों, लेकिन नीतीश कुमार कमजोर नहीं हुए। तमाम आलोचनाओं के बीच शराबबंदी को लेकर अपने रुख पर कायम रहने वाले नीतीश कुमार का महिला वर्ग में काफी सम्मान है। पहले चरण के बाद के चुनावों में ऐसा दिखा भी, जब नीतीश कुमार को मजबूत करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं बूथ पर उमड़ने लगी थीं। भाजपा की तरफ से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा भी उनकी मजबूत स्थिति को दर्शाती है।
चिराग नहीं बचा पाए ‘घर’ : लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पिता रामविलास पासवान की तरह राजनीति के ‘मौसम विज्ञानी’ नहीं निकले। बिहार में राजग से अलग राह अपनाने वाले चिराग को सिर्फ एक सीट मिली है। हालांकि, उनका मानना है कि वह जदयूको दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर हरवाने में कामयाब रहे।
कांग्रेस में नेतृत्व का संकट : राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में नेतृत्व का संकट हर जगह दिखाई देता है। बिहार चुनाव में भी इसका प्रभाव दिखा। पार्टी कार्यकर्ता उदासीन दिखे। पार्टी को 19 सीटों पर जीत भले ही मिली हो, लेकिन इसके पीछे प्रत्याशियों और गठबंधन के सहयोगी दलों का ज्यादा योगदान है।
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