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Chhath 2019: छठ को ले शारदा सिन्‍हा ने कहा- लोगों को जोड़ते मेरे गीत, नई पीढ़ी को त्योहार मनाते देख लगता सुखद

छठ के त्योहार की बात हो और लोकगायिका शारदा सिन्हा के गीत न बजें एेसा मुमकिन नहीं। आइए जानते हैं कैसे छठ गीत गाने की शारदा ने की शुरुआत।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 09:35 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 06:16 PM (IST)
Chhath 2019: छठ को ले शारदा सिन्‍हा ने कहा- लोगों को जोड़ते मेरे गीत, नई पीढ़ी को त्योहार मनाते देख लगता सुखद
Chhath 2019: छठ को ले शारदा सिन्‍हा ने कहा- लोगों को जोड़ते मेरे गीत, नई पीढ़ी को त्योहार मनाते देख लगता सुखद

पटना [कुमार रजत]। लोकगायिका शारदा सिन्हा की आवाज छठ के आने की तस्दीक कराती है। उनके छठ गीत सुने बिना त्योहार पूरा नहीं होता, पर शारदा अपने गाये गीत सुनकर सिहर जाती हैं। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में लोकगायिका ने कहा कि नई पीढ़ी को छठ मनाते देखना सुखद लगता है। 

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छठ का पहला गीत आपने कब और कौन सा गाया?

छठ का पहला गीत मैंने 1978 ई. में गाया था। वह गीत था- 'डोमिन बेटी सूप लेले खाड़ छैई...उग हो सुरुज देव भइल अरग के बेर। 'मोरा भइया जाए ला महंगा मुंगेर' गीत भी मेरे शुरुआती कैसेट में था। बाद में इसे अनुराधा जी और बाकी गायकों ने गाया। यह एलबम एचएमवी से आया और खूब सराहा गया। इसके बाद तो कई एलबम आए। अभी तक सिर्फ 60-70 छठ गीत गा चुकी हूं।

आपके गीतों के बिना छठ अधूरा लगता है? आपके समय में कौन से छठ गीत बजते थे?

हमारे समय में लाउडस्पीकर का प्रचलन तो था नहीं। रेडियो ही गीत सुनने का सबसे बड़ा साधन था। मुझे याद है, उस समय रेडियो पर विंध्यवासिनी देवी जी छठ गीत गाती थीं। इसके अलावा मुन्नी देवी जी भी गीत गातीं मगर उनके गीतों में शृंगार का पक्ष ज्यादा होता था।

छठ से जुड़ी आपकी बचपन की यादें कैसी हैं?

बचपन से ही छठ से लगाव रहा। पटना की छठ नामी होती थी। मुझे याद है मेरी नानी पटना में छठ करती थीं। इसके लिए खजांची रोड में एक माह तक किराया लेकर कमरा लिया जाता था। यहां पूरे परिवार की जुटान होती। हम बच्चे सबसे ज्यादा खुश होते कि नया कपड़ा मिलेगा, घाट पर जाएंगे। शादी के बाद तो मेरी सास ही छठ करती थीं। एक वाकया बड़ा दिलचस्प है, जो याद आ रहा। एक बार छठ के समय मैं मायके में थी। खरना के बाद पहली अर्घ्य के लिए हम ससुराल के लिए चले मगर जाम में फंसे और देर हो गई। जब तक हम पहुंचते ससुराल के लोग घाट के लिए जा चुके थे। हमें बताया गया कि घाट नजदीक ही है। पैदल चलना शुरू किए मगर रास्ता लंबा था। हर 10 मिनट पर कहा जाता कि बस आ ही गए, बस आ ही गए। बाद में किसी तरह बैलगाड़ी मंगाई गई और हम छठ घाट पहुंचे।

लोकगीतों, लोकसंगीत तक पहुंचने में कितनी परेशानी हुई?

छठ गीतों को इकट्ठा करने में काफी मेहनत करनी पड़ी। कहीं भी गांव-देहात में कोई अच्‍छा गीत सुनती तो उसे नोट कर लेती। सिन्हा जी (शारदा सिन्हा जी के पति) एक बार छपरा गए तो वहां 'आठ ही काठ के कठोरिया...हो दीनानाथ' गीत सुना। उन्होंने गीत के चार लाइन नोट कर लाए। बाद में मैंने बाकी गीत पूरा किया। इसी तरह कुछ पुरानी किताबों से छठ गीत ढूंढ़ें और इसे अपने तरीके से पॉलिश किया। कई छठ गीत मैंने खुद भी लिखे। इसमें 'पटना के घाट पर हमहू अरगिया देबई हे छठी मइया...हम न जाईब दूसर घाट' खूब लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा 'खरना पुजाई भोरे ही सबेरे' जैसे कई अन्य गीत भी लिखे।

छठ गीतों को गाना आपके लिए कितना सहज या मुश्किल रहा?

सबसे पहले तो मुझे खुद को ही एडजस्ट करना पड़ा। बहुत धीरे-धीरे गाना पड़ता था। लोकगीतों में डोमिन, महतारी जैसे कई शब्द थे जिसे लगता था बदल दूं मगर जब लोकगीतों में डूबी तो समझ आया कि यही शब्द गीतों के जान हैं। मुझे याद है 1975 ई. में मैं राजेंद्रनगर में पन्ना देवी जी से गाना सीखने जाती थी। उन्होंने भी लोकगीतों को गाने और समझने में मेरी काफी मदद की। (उदाहरण के लिए शारदा जी फोन पर ही ' मोरा भइया जाएला महंगा मुंगेर' गाना दो तरीके से गाकर सुनाती हैं)। पन्ना जी मुझसे कहती थीं- शारदा, तुम्हारी आवाज में बहुत कसक है। तुम गांव तो वाह नहीं, आह निकलनी चाहिए।

आपने इतने सारे गीत गाए हैं। आपका पसंदीदा छठ गीत कौन सा है?

'सोना सटकोनिया हो दीनानाथ' गीत मेरा पसंदीदा है। आज भी जब यह गीत बजता है, तो सिहरन सी उठ जाती है। कहीं दूर से आ रही मद्धम आवाज भी मन को खींच ले जाती है।

जल्द ही बेटे अंशुमान की शादी होने वाली है? क्या चाहेंगी कि बहू छठ करे?

मुझे इस बात का संतोष होता है कि मेरे गीत लोगों को छठ से जोड़ते हैं। मैं इसे ही अपनी जवाबदेही की तरह लेती हूं। मुझे लगता है मेरे एक के छठ करने से ज्यादा प्रभाव मेरे गीतों का होता है। मेरी इच्छा है कि जब तक संभव है, मैं छठ गीत गाकर अपनी जिम्मेदारी निभाऊं। भविष्य में बेटी या बहू छठ का व्रत करेगी तो मुझे खुशी ही होगी। नई पीढ़ी तो काफी कम उम्र से ही छठ कर रही है। यह सब देखना सुखद है।


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