Bihar Lockdown Update: बिहार में अब नहीं आ रहा मनीऑर्डर, गांवों की अर्थव्यवस्था चरमराई
बिहार के गांवों में देश और विदेश से पैसे आते थे। राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था कहलाती थी। मनीऑर्डर की जगह मनी ट्रांसफर ने ले ली। लेकिन अब वह भी ठप है।
पटना, जेएनएन। बिहार के गांवों में देश और विदेश से पैसे आते थे। राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था कहलाती थी। मनीऑर्डर की जगह मनी ट्रांसफर ने ले ली। 20 लाख लोग तो लौट आए हैं। जो बाहर हैं, वह नौकरी और रोजगार का संकट झेल रहे। तो गांव में रहने वाले रिश्तेदारों के पास पैसे नहीं आ रहे। मार्च के अंत तक स्थिति ठीक थी। अप्रैल में भी कुछ लोगों ने पैसे भेजे, लेकिन मई में सूखा पड़ने लगा। इसका साफ असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है। उदाहरण के लिए 2000 रुपये भी अगर एक परिवार को मनीऑर्डर–मनी ट्रांसफर आता था तो 20 लाख प्रवासियों को सामने रखकर भी हिसाब किया जाए तो 400 करोड़ रुपये एक महीने में नहीं आए।
शहरों में ठप है काम-धंधा
दरअसल, कोरोना के लॉकडाउन ने हर महीने 'बाहर' से आने वाले रुपये से 'जीने-खाने' वाले लाखों परिवारों के सामने अनिश्चित भविष्य का पहाड़ खड़ा कर दिया है। देश और विदेश के शहरों में कमाने गए 'बेटों' के मनीऑर्डर और फंड ट्रांसफर बिहार के अधिसंख्य गांवों में खुशहाली के झोंके लाते थे। शहरों में काम-धंधा ठप है। गांव में रह रहे पिता के मोबाइल फोन पर एसएमएस की घंटी बजती है, तो चश्मा पोंछकर बार-बार देखते हैं कि कहीं बैंक वाला मैसेज तो नहीं आया? दुखद स्थिति है कि दो महीने से फंड ट्रांसफर के एसएमएस नहीं 'टुनटुना' रहे।
पैसों के ट्रांसफर में 50 फीसद की आई है कमी
बैंक और डाक विभाग के आधिकारिक सूत्र मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान पिछले डेढ़ महीने में विदेश होने वाले ट्रांसफर में 50 फीसद की कमी आई है, जबकि अपने देश के विभिन्न शहरों में कमाने गए लोगों में से तीस फीसद पैसे नहीं भेज पा रहे। उनमें से अधिसंख्य प्रवासियों की नौकरी चली गई है, काम बंद हो गया है, कारोबार चौपट है या फिर गांव लौटने के क्रम में क्वारंटाइन सेंटर में अनिश्चित भविष्य के भयानक सपने नींद उड़ा रहे।
बढ़ती जा रही है चिंता
उदाहरण है सिवान जैसे जिले, जहां के सर्वाधिक लोग खाड़ी देशों में गए। लौटे भी हैं बड़ी संख्या में। ऐसे जिलों के सर्वाधिक लोग नौकरी पेशा हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में रहते थे। कोरोना के शुरुआती दौर में यहां संक्रमण के लंबे चेन बने। 'मनीऑर्डर इकोनोमी' मंदी के दौर में गई है, तो चिंता बढ़ती जा रही। माताजी की रसोई खाली पड़ रही। नया मकान अभी नींव से आगे नहीं बढ़ पाया है। खेतों में इस बार खाद-पानी घटने की आशंका है। शादियां टलेंगी। छपरा, सिवान, गोपालगंज, चंपारण, दरभंगा से किशनगंज तक में खाड़ी के देशों इतना अधिक पैसा आता था कि कि पूरे देश में इसकी चर्चा होती है। जो लोग लौटे हैं, वे बैंकों से पैसा नहीं निकाल रहे। अनिश्चित भविष्य खर्च से रोक रहा। स्टेट लेबल बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) के आला अधिकारी इस बात से भी परेशान हैं कि बैंक खाते में पैसे पड़े हैं। लोग निकाल नहीं रहे। बाजार में पैसा का फ्लो नहीं है।
हर महीने आता था 200 करोड़ का मनीऑर्डर
डाक महकमे के आला अधिकारी ने बताया कि सामान्य स्थितियों में एक महीने में पहले दो सौ करोड़ रुपए का मनीऑर्डर आता था। इसमें खाड़ी देशों से आने वाले पैसे सर्वाधिक थे। लॉकडाउन काल में यह घटकर प्रति माह सौ करोड़ रुपए पहुंच गया है। देश के विभिन्न हिस्सों से होने वाले फंड ट्रांसफर में भी तीस प्रतिशत की कमी आ गई है। फरवरी तक देश के विभिन्न हिस्सों से औसत तीन सौ करोड़ रुपए का मनीऑर्डर-फंड ट्रांसफर आया। इस महीने इसमें 90 करोड़ रुपए कम हो गए हैं।
अनुमान बुरे हालात की ओर इशारा कर रहे
बिहार में 20 लाख प्रवासी लौटे हैं। अनुमान लगाया जा रहा कि एक व्यक्ति कम से कम दो हजार रुपये अगर अपने गांव वाले घर भेजता था, तो लगभग 400 करोड़ पहले की तरह गांव नहीं पहुंचे। यह प्रारंभिक अनुमान है। रुपये पहले सिर्फ मनीऑर्डर से आते थे। डाक विभाग से इसका लेखा-जोखा मिल जाता था। अब पैसे बैंक खाते, पेटीएम-भीम जैसे एप, जान-पहचान वाले व्यक्ति के हाथों और डाक घरों के माध्यम से आते हैं। यह समस्या विकराल होने वाली है, क्योंकि जिनकी कमाई बाधित हुई है, उनकी जिंदगी कितने दिन में पटरी पर लौटेगी, इसका कोई अनुमान नहीं लगा पा रहा।