यादों की देहरी: सड़कों पर सीना ताने चलती थीं टमटम और बग्घियां, इमारतों से थी शहर की पहचान Patna News
पटना के इतिहास की बात होगी तो बहुत सी बातें सामने आएंगी। शहर का अतीत हजारों सालों का है। आइए जानते हैं बिहार की राजधानी के विषय में।
पटना, जेएनएन। पटना का अतीत हजारों सालों का है। वक्त के साथ यह शहर काफी बदला है। पटना विश्व के प्राचीनतम शहरों में एक रहा। हिंदुस्तान में बनारस के बाद यह दूसरा प्राचीनतम शहर है। यादों की देहरी में आज शहर के बारे में बता रहे हैं लेखक और इतिहास अध्येता अरुण सिंह।
दिल्ली, मुंबई और कोलकाता इसकी तुलना में नये बसे शहर हैं। पटना का करीब ढाई हजार वर्षो का लिपिबद्ध इतिहास रहा है। पटना की सड़कों से गुजरते हुए जिन इमारतों को देखते हुए हमारी पीढ़ी जवान हुई, वे एक-एक कर गायब होते जा रही हैं। इन इमारतों के सामने सड़क से गुजरते हुए एक अजीब सी अनुभूति होती थी। पटना उन दिनों विकसित नहीं था। फिर भी गोथिक, ग्रीक, इंडो-इस्लामिक और सारसैनिक शैली में बने भवन शहर की गरिमा बढ़ाते थे। बड़े-बड़े अहातों में बने उन मकानों को हम दूर से पहचान सकते थे। पटना में रह रहे अंग्रेजों, स्थानीय रईसों, नवाबों, जमींदारों और शौकीन लोगों ने जो मकान बनवाए थे, उनमें स्थानीय जलवायु और परिवेश का पूरा ख्याल रखा था।
मौर्या होटल की जगह था पटना विवि के कुलपति का भवन
गांधी मैदान के पास बना मौर्या होटल आज राजधानी की शान है। इस जगह पर कभी पटना विश्वविद्यालय के कुलपति का लाल खपड़ा वाला बड़ा सा बंगला हुआ करता था। पहले यह बंगला बिहार सरकार के मंत्री के लिए आवंटित हुआ था और इसमें सर गणेश दत्त सिंह रहा करते थे। जब उन्होंने मंत्री पद छोड़ा तो कुलपति का आवास बन गया। इसके बगल में एक कोलोनियल इमारत थी, जहां पीएमसीएच के रेडियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष रहा करते थे। आगे बाढ़ के जमींदार नवाव सर्फुद्दीन की कोठी थी। बड़े से अहाते में बनी यह इमारत इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना थी।
फूलों से महकता था शहर
टाइम्स ऑफ इंडिया के पीेछे लाल खूबसूरत ईटों वाली इमारत 'शांति निकेतन' थी, जो आज भी मौजूद है। यह उन दिनों सड़क से ही दिखती थी। बैरिस्टर सीआर दास, पीआर दास के इस घर को गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की मेजबानी करने का अवसर मिला था। इसके आगे ठीक मोड़ के पास इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष सैय्यद हसन इमाम के बड़े भाई सर अली इमाम की बड़ी सी कोठी हुआ करती थी, जो बाद के दिनों में डनलप का दफ्तर बनी। इसके आगे दार-उल मल्लिक नाम की बड़ी सी हवेली थी जो ब्रिटिश इंडिया में बिहार के पहले प्रधानमंत्री (अब मुख्यमंत्री) मोहम्मद युनूस साहब का आवास हुआ करती थी। कालांतर में यह ग्रैंड होटल बना और अब ग्रैंड अपार्टमेंट। वहीं एक्जीविशन रोड पर बड़े से अहाते में छोटा सा खूबसूरत सफेद कॉटेज हुआ करता था। इसके लॉन में गुलाब के कई फूल होते थे। यह कॉटेज मशहूर सोशलाइट बैरिस्टर धर्मशीला लाल का घर हुआ करता था।
डाकबंगला पर था लखनऊ स्वीट हाऊस
डाकबंगला चौराहे पर लखनऊ स्वीट हाऊस मिठाई की सबसे पुरानी दुकान थी। सामने पॉल स्वीट्स खुला। जेजे कार और डी लाल एंड संस पुराने डिपार्टमेंटल स्टोर्स थे। बाद के दिनों में रौशन ब्रदर्स खुला। वहीं चौराहे पर 'भारत कॉफी हाऊस' का मसाला डोसा और उसकी कॉफी काफी मशहूर थी। उसके स्वाद को भुलाया नहीं जा सकता। वही ग्रैंड होटल का मुगलई खाना, गांधी मैदान के समीप सोडा फाउंटेन के समोसे और रसमलाई लोगों को बेहद पसंद थे। पीरमुहानी में निताई कैफे की हींग की कचौरी और आलू की सब्जी काफी मशहूर थी। फ्रेजर रोड के सामने न्यू पिंटू के कटलेट्स और रसगुल्ले के सभी दीवाने थे।
टमटम और बग्घियां सड़कों पर सीना ताने चलती थीं
पटना की सड़कों पर आज की तरह इतनी गाडिय़ां नहीं थीं। वह जमाना साइकिल और रिक्शे का था। टमटम और बग्घियां सड़कों पर दिखती थीं। सड़कों पर स्कूटर कम हीं दिखाई पड़ते थे। फ्रेजर रोड से शाम को गुजरते हुए बगल के अहातों से फूलों की खुशबू लोगों को थोड़े देर रुकने पर मजबूर करती थी।
इंडियन कॉफी बोर्ड था प्रबुद्ध वर्ग का प्रिय ठिकाना
बचपन के दिनों में स्टीमर से गंगा पार कर मुजफ्फरपुर जाना एक पिकनिक की तरह होता था। डेक पर खड़े होकर डॉल्फिनों को देखना और उन्हें गिनना बच्चों का प्रिय खेल होता था। महेंद्रु घाट की कैंटीन जो पहले तल पर थी, कई लोगों की प्रिय जगह हुआ करती थी। वहां बैठकर लोग गंगा को निहारते थे। वही न्यू डाकबंगला रोड का इंडियन कॉफी बोर्ड तत्कालीन राज्यपाल डीके बरूआ के प्रयास से खुला था। हम अपने दोस्तों के साथ वहां जाते थे। राजनेताओं, साहित्यकारों, रंगकर्मी, पत्रकारों का यह प्रिय ठिकाना हुआ करता था।