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पटनाः स्लम बस्ती के बच्चों को रितेश दे रहे शिक्षा का दान

रितेश अपनी पॉकेटमनी से इंद्रपुरी की स्लम बस्ती में रह रहे गरीब बच्चों के पठन-पाठन का इंतजाम कर रहे हैं। हर दिन शिक्षादान करते हैं, साथ ही हर शनिवार-रविवार को अतिथि बुलाकर कॉपी-कलम व टॉफी बंटवाते हैं।

By Gaurav TiwariEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 07:47 AM (IST)
पटनाः स्लम बस्ती के बच्चों को रितेश दे रहे शिक्षा का दान

नलिनी रंजन, पटना। ए फॉर एप्पल, बी फॉर बॉल, सी फॉर कैट..., टी फॉर टेबल नहीं टॉफी। कुछ इसी तरह राजधानी के इंद्रपुरी रोड नंबर 10 के समीप साईं मंदिर परिसर में पढ़ाई करने वाले बच्चे पढ़ाई करते हैं। राजीवनगर रेलवे लाइन कि किनारे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले तीन दर्जन से अधिक बच्चों की कक्षा साईं मंदिर परिसर में लगती है, जहां एएन कॉलेज में अंग्रेजी से तृतीय वर्ष में स्नातक कर रहे रितेश कुमार अपने दोस्तों के साथ मिल कर बच्चों को पढ़ाते है।

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रितेश अपनी पॉकेटमनी से इंद्रपुरी की स्लम बस्ती में रह रहे गरीब बच्चों के पठन-पाठन का इंतजाम कर रहे हैं। हर दिन शिक्षादान करते हैं, साथ ही हर शनिवार-रविवार को अतिथि बुलाकर कॉपी-कलम व टॉफी बंटवाते हैं। बच्चे रितेश को टॉफी वाले भैया भी कहते हैं। इसी कारण से बच्चे टी फॉर टॉफी बोलते हैं।

बच्चे बोलना सीख रहे अंग्रेजी
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले ये बच्चे दिन-भर कचरा चुनने का काम कर रहे थे लेकिन पिछले छह-सात महीने से इनका पढ़ाई के प्रति आकर्षण बढ़ा है। छोटे-छोटे बच्चे हर दिन टॉफी व कॉपी-कलम की डिमांड करते हैं, जिसे रितेश अतिथियों के माध्यम से पूरा कराते हैं। यहां हर शनिवार-रविवार एएन कॉलेज के कई प्राध्यापकों के अतिरिक्त अन्य अतिथि आते हैं।

दोस्त करते हैं पढ़ाई में मदद
रितेश बताते हैं बचपन से ही मुझे बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था। तब अपने शहर जहानाबाद के अम्बेडकर कॉलोनी में बच्चों की कक्षा लगाया करता था। वहां 2012 तक बच्चों को पढ़ाया। 2013 में स्नातक करने के लिए पटना आ गया। इसके बाद पहले एएन कॉलेज पानी टंकी के पास, फिर इंद्रपुरी में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इस नेक काम में उनके दोस्त शुभम कुमार और रजनीश कुमार भी मदद करते है। एएन कॉलेज के एनएसएस समन्वयक डॉ. रत्ना अमृत भी इसमें मदद करतीं हैं।

साई मंदिर परिसर में पढ़ाई कर रही गुडिय़ा कहती है, पहले हमलोग सिर्फ खेलते थे, फिर भइया ने पढ़ाई करने को कहा। हमलोग नहीं आते थे तो टॉपी देकर बुलाते थे। धीरे-धीरे पढ़ने में मन लगने लगा। अब हमलोग रोज पढ़ने आते हैं।


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