ताकि बनी रहे 'पूरब के ऑक्सफोर्ड' की गरिमा
पटना शहर में गंगा किनारे बने पटना विश्वविद्यालय को एक समय में 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' कहा जाता था। देश-विदेश की सरहद पार कर छात्र अपने ज्ञान की भूख मिटाने के लिए पटना विश्वविद्यालय आते थे।
पाटलिपुत्र से अजीमाबाद और अजीमाबाद से पटना के ऐतिहासिक सफर में शहर पटना ने अपनी भावी पीढ़ी को भरपूर ज्ञान बांटा है। बिहार के गांव-कस्बों से निकल बच्चे अपनी शिक्षा की भूख को शांत करने के लिए पटना का रुख करते थे, यह सिलसिला आज भी जारी है।
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पटना शहर में गंगा किनारे बने पटना विश्वविद्यालय को एक समय में 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' कहा जाता था। देश-विदेश की सरहद पार कर छात्र अपने ज्ञान की भूख मिटाने के लिए पटना विश्वविद्यालय आते थे। इस यूनिवर्सिटी ने देश को अनेक आइएएस-आइपीएस अधिकारी दिए। यहां का पुराना रुतबा आज भी वैसा ही है। समय की मार ने भले ही कुछ कमी पैदा की हो, लेकिन उन कमियों को दूर किया जा रहा है।
बीते दिनों पटना यूनिवर्सिटी के सौ वर्ष पूरे होने पर आयोजित शताब्दी समारोह में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए और उन्होंने इसकी सराहना की और कहा कि इस विश्वविद्यालय को देश के चुनिंदा बीस संस्थानों में शामिल करेंगे। प्रधानमंत्री के निर्देश पर पटना विश्वविद्यालय ने अगले तीन वर्षों के विकास का खाका तैयार किया है, जिस पर अमल भी शुरू हो गया है।
हाल के कुछ वर्षों में पटना में कई नामी और प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान खुले हैं। इन्होंने वैसे विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई के मार्ग आसान कर दिए हैं जो आर्थिक कारणों से राज्य से बाहर जाकर पढ़ाई करने में सक्षम नहीं। पटना में आज राष्ट्रीय स्तर के चंद्रगुप्त आर्थिक प्रबंधन संस्थान में छात्र बेहतर मैनेजमेंट की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
कानून की पढ़ाई के लिए चाणक्य लॉ विश्वविद्यालय यहां मौजूद है। आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में छात्र सामान्य विषयों के साथ ही आज के समय में रोजगार और शोध से जुड़े विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं।
स्कूल स्तर की पढ़ाई के लिए भी पटना में सर्वाधिक शिक्षा संस्थान और संसाधन मौजूद हैं। पटना शहर गरीब-अमीर के बीच भेदभाव नहीं करता। यह दोनों तरह के विद्यार्थियों को समान सुविधा देता है। निजी स्कूलों के अलावा सरकारी स्तर पर चलने वाले शहर में अनेक स्कूल हैं, जिनकी अच्छी ख्याति है। इनमें राजा राममोहन राय सेमिनरी, पटना हाई स्कूल, देवी पद चौधरी शहीद स्मारक, पाटलिपुत्र हाई स्कूल आदि इसी श्रेणी में हैं। प्रदेश की सरकार के साथ ही राजभवन ने भी अब अपना सारा फोकस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर केंद्रित किया है।
प्रयास इस दिशा में शुरू हो गए हैं कि शिक्षा को किसी भी हाल में गुणवत्ता पूर्ण बनाया जाना है। इससे कोई समझौता नहीं होगा। लेकिन, इन प्रयासों के बीच यह सवाल भी उठते हैं कि आखिर क्या बात है कि यहां तमाम सुविधाएं, शोध के संस्थान, उच्च श्रेणी के संस्थान रहने के बाद भी प्रतिभा का पलायन रुक नहीं रहा। क्यों बड़ी संख्या में बच्चे आज भी महज पढ़ने के लिए राज्य की सीमा के बाहर जा रहे हैं?
कोटा, बंगलुरु और दिल्ली जैसे शहर बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र क्यों हैं? व्यवस्था को इन तमाम पहलुओं पर गौर करना होगा और उसी अंदाज में सुधार के कार्यक्रम भी बनाने होंगे, ताकि यहां से होनहार बच्चों का पलायन रुके और यहां की भावी पीढ़ी को ज्ञान के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े। जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उस दिन गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा चुनौती नहीं रहेगी। यहां ही अवसर होंगे और छात्र अपने उज्जवल भविष्य को लेकर पूरी तरह निश्चिंत और आश्वस्त भी होंगे।