शिक्षण संस्थान होंगे सर्वोत्तम तो लौटेगा पटना का स्वर्णकाल
पटना विश्वविद्यालय में सत्र को नियमित करने के लिए कई योजनाओं पर एक साथ काम किया जा रहा है।
पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह देश के प्रख्यात भूगोलविद् हैं। सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है। बांका के सुदूर गांव से 1967 में पटना पहुंचे और इंटर की शिक्षा के लिए पटना कॉलेज में नामांकन लिया। पांच दशक से पटना विश्वविद्यालय से छात्र, शिक्षक, प्रॉक्टर और कुलपति के रूप में जुड़े हैं। कई वर्षों तक नालंदा ओपन विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति और कुलपति के रूप में भी योगदान दिया है। इनके ही कार्यकाल में पटना विश्वविद्यालय (पीयू) के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे। पीयू का पुराना गौरव लौटाने के लिए तीन वर्ष की कार्ययोजना पर काम कर रहे हैं।
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प्रो. सिंह कहते हैं, सूबे के पास मानव संसाधन प्रचुर संख्या में उपलब्ध है। इसका सदुपयोग कर राज्य को उसके स्वर्णिम युग में लौटाया जा सकता है। इसमें सबसे अहम भूमिका शिक्षा की है। किसी देश का स्वर्ण काल तभी रहा है, जब वहां की शिक्षा-व्यवस्था सर्वोत्तम रही है। मगध का प्रताप पूरे विश्व में तभी था, जब यहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे। पिछले एक दशक में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ हैं।
विश्वविद्यालय में सत्र को नियमित करने के लिए कई योजनाओं पर एक साथ काम किया जा रहा है। तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना अनूठी पहल है। सुनहरे दौर के लिए हमें अपने कंधे मजबूत करने होंगे। सरकार और समय को कोसने से बात नहीं बनेगी। सूबे को पुराना गौरव लौटाने के लिए हम सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी उठानी होगी।
स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता पर विशेष ध्यान
सूबे में अब कुछ ही बच्चे स्कूल से बाहर बचे हैं। अब सुदूर गांव में भी प्रारंभिक और माध्यमिक स्कूल हैं। इनमें बच्चे भी पहुंच रहे हैं, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा यहां की सबसे बड़ी चुनौती है। इसे दूर करने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षक नियुक्त किए गए हैं। शिक्षकों के साथ-साथ सोसाइटी को भी इसमें भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
तीन-चार दशक पहले गांव के स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में स्थानीय लोगों की अहम भूमिका होती थी। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा का स्तर बेहतर होने पर विश्वविद्यालयों को अच्छे विद्यार्थी मिलते हैं। आईआईटी, एनआईटी, मेडिकल आदि की पढ़ाई के लिए आधार प्लस टू ही तैयार करता है। 10वीं तक पढ़ाई के दौरान बच्चों को सामाजिक दायित्व का भी अहसास कराना होगा। इसे सिलेबस का अंग बनाने से युवा शक्ति को हम सही दिशा देने में सफल हो सकते हैं।
लक्ष्य आधारित हो उच्च शिक्षा
बच्चों पर कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के साथ ही रोजगार प्राप्त करने का दबाव होता है। आगामी दशक में स्थिति और विकराल होने वाली है। इसके लिए विश्वविद्यालयों में लक्ष्य आधारित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। मांग के अनुरूप कोर्स को फ्रेम कर युवाओं को पढ़ाई पूरी करने के साथ ही रोजगार की व्यवस्था की जा सकती है। राज्य में यूपी के बाद यहां सबसे ज्यादा युवा रहते हैं। यहां इस पर अमल अनिवार्य है। ऐसी व्यवस्था नहीं करने से विद्यार्थियों का पलायन रोकना संभव नहीं है। प्रसन्नता की बात है कि इसे लेकर राजभवन और सरकार संजीदा है।
10वीं बाद हो काउंसिलिंग की व्यवस्था
बच्चों को उनके पंसदीदा क्षेत्र में करियर के लिए 10वीं से ही काउंसिलिंग की व्यवस्था हो। मैट्रिक पास करने से पहले विद्यार्थी की रुचि शिक्षक और अभिभावक को मिल जाए। बच्चों को उनकी रुचि वाले क्षेत्र में करियर बनाने में सहूलियत होगी। स्पोर्ट्स के लिए प्राथमिक के बाद ही बच्चों का चयन किया जाए। शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के बराबर ही स्पोर्ट्स को भी प्राथमिकता मिले।
इनोवेशन के लिए करना होगा प्रेरित
सूबे के बच्चे दूसरे प्रदेश और देश में जाकर परचम फहराते हैं। पलायन के कारण मेधा का जो लाभ राज्य को मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है। इसके लिए बच्चों के इनोवेशन को प्लेटफॉर्म मुहैया कराने पर भी काम करना चाहिए। अभी कुछ विश्वविद्यालयों में बच्चों के लिए इनोवेशन सेंटर खोले गए हैं। सभी विश्वविद्यालय और कॉलेजों में इसका सेंटर होना चाहिए।
शिक्षा ऋण योजना के होंगे दूरगामी परिणाम
मुख्यमंत्री सात निश्चय के तहत इच्छुक बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए सुनिश्चित शिक्षा ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। इससे गरीब घरों के बच्चे भी उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित हो रहे हैं। ऋण की अदायगी पढ़ाई पूरी करने और रोजगार मिलने पर चुकता करने की व्यवस्था छात्रों के अच्छे करियर के लिहाज से बेहतर होगी।
- प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह, कुलपति, पटना विश्वविद्यालय
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