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खुद हैं एचआइवी संक्रमित पर अपने जैसे दूसरे लोगों को जागरूक करती हैं मंगलामुखी अमरूता

World Aids Day 2013 से एक गैर सरकारी संस्था के साथ जुड़कर कर रहीं जागरुकता के लिए कार्य एचआइवी पीड़ि‍त मरीजों के प्रति मानवीय संबंध बनाए रखने के लिए दूसरों को करती हैं प्रेरित अपने काम से रोशन कर रहीं नाम

By Shubh NpathakEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 11:08 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 11:08 AM (IST)
खुद हैं एचआइवी संक्रमित पर अपने जैसे दूसरे लोगों को जागरूक करती हैं मंगलामुखी अमरूता
अपने काम से नाम रोशन कर रहीं अमरूता। जागरण

पटना, [अंकिता भारद्वाज]। एचआइवी (एड्स) का नाम सुनते ही लोग पीड़ि‍त व्यक्ति से दूर भागने लगते हैं, लेकिन राजधानी की एक ट्रांसजेंडर (Transgender) अमरूता एचआइवी (HIV) मरीजों की मदद भी करती है और लोगों को उनके प्रति मानवीय भाव बनाए रखने के लिए जागरूक भी करती हैं। अमरूता (Amruta) बताती हैं, वह जब 10 साल की थी, तब ही उन्हें मंगलामुखी (ट्रांसजेंडर) होने के कारण घर से बाहर निकाल दिया गया था।

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परिवार ने दिखाया समाज का डर और कर दिया घर से बाहर

उनके परिवार के एक सदस्य ने उनके साथ गलत करने की कोशिश की थी। इसके बाद उन्होंने आवाज उठाई तो परिवार के लोगों ने समाज का डर दिखा कर चुप करा दिया और घर से बाहर निकाल लिया। अमरूता कहती हैं, ट्रांसजेंडर होने के कारण कोई उन्हें अपने घर में रखने को तैयार नहीं था और न ही कोई उन्हें काम देता था। खुद को जिंदा रखने के लिए उन्होंने लाचार होकर गलत तरीका अपनाया। उसी दौरान वह खुद एचआइवी की शिकार हो गईं।

कर लिया था अपनी जिंदगी खत्‍म करने का फैसला

जब उन्हें पता चला कि वह एचआइवी पीड़ि‍त हो गई हैं, तो उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला लिया। लेकिन बाद में उन्हें महसूस हुआ कि वो अपने जीवन को दूसरों की सहायता के लिए समर्पित कर सकती हैं। इसके बाद से वह दूसरों को प्रेरित करने लगीं।

एचआइवी पी‍ड़ि‍तों के बीच बांटती हैं दवाएं, पूरी करती हैं उनकी जरूरतें

अमरूता बताती हैं, वह 2013 से एक गैर सरकारी संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही हैं। संस्था के माध्यम से वह लोगों को जागरूक करती हैं। उन्होंने बताया, कोरोना और लॉकडाउन के समय वह खुद एचआइवी पीडि़तों के पास जाकर उन्हें दवा देती थीं और उनकी जरूरतें पूरी करती थीं। लॉकडाउन के दौरान उनका काम काफी बढ़ गया था। एचआइवी पीड़ि‍त उनके पास दवा के लिए फोन करते थे। दरअसल लॉकडाउन के शुरुआती दौर में लोग घर से बाहर निकल नहीं पाते थे और एचआइवी की दवाएं आसानी से मिलती नहीं थीं।


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