गांव की संस्कृति से प्रेरित थे महात्मा गांधी : प्रोफेसर रुद्रांगशु मुखर्जी
गांधी के विचार भारत के बारे में कैसे थे वो किस स्वरूप में बिहार को देखना चाहते थे इसे जानना आज की तारीख में ज्यादा जरूरी
पटना। गांधी के विचार भारत के बारे में कैसे थे, वो किस स्वरूप में बिहार को देखना चाहते थे। गांधी के संदेशों और आज के जीवन में उनके महत्व पर रविवार को अर्थशिला द्वारा आयोजित 'गांधी का भारत' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें वक्ता के रूप में अशोक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं इतिहास के प्रोफेसर रुद्रांगशु मुखर्जी मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे।
उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ते तनाव और आक्रामकता के बीच, गांधी के जीवन का तरीका कैसे शांति प्रदान करता है। उनके जीने का तरीका वर्तमान स्थिति में अधिक प्रासंगिक है। उनकी अहिसा की नीति दूर हमेशा वर्तमान और भविष्य की पीढि़यों का मार्गदर्शन करती रहेगी। उन्होंने गांधी जी द्वारा लिखित 'हिद स्वराज' पुस्तक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हिदी में लिखी इस पुस्तक को अंग्रेजी हुकुमत ने राजद्रोह का आरोप लगाकर प्रतिबंधित कर दिया था। तब गांधी जी ने खुद इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद किया था। किताब का अनुवाद अंग्रेजों को पसंद आया और उन्होंने उसको प्रकाशित करने की अनुमति दी। गांधी को पहली बार प्राजीवन मेहता ने कहा था महात्मा :
प्रोफेसर रुद्रांगशु मुखर्जी ने कहा कि गांधी जी के मित्र प्राजीवन मेहता को पुस्तक 'हिद स्वराज' इतनी पसंद आई कि उन्होंने गांधी को 'महात्मा' नाम से बुलाना शुरू कर दिया था। हालांकि, जब रविंद्र नाथ टैगोर ने गांधीजी को महात्मा संबोधित किया तो ये बाते सब के सामने आई। इससे दो साल पहले ही प्राजीवन मेहता का निधन भी हो गया था। गांव की संस्कृति थी गांधी जी को पसंद :
गांधी जी हमेशा से एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहां गांव बसता हो। प्रोफेसर रुद्रांगशु मुखर्जी बताते हैं कि गांधी अपनी पुस्तक में हमेशा कहते थे कि शहर के रहने वाले गांव के लोगों से सीखना चाहिए। यहां मानवता और जीवन जीने का सही तरीका भी मिलता है। ट्रेन वाली घटना बड़ा मोड़
प्रोफेसर रुद्रांगशु मुखर्जी बताते हैं कि गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिद स्वराज' में अपने ट्रेन वाले सफर को भी बयान किया है, जिसमें एक अंग्रेज ने उन्हें फर्स्ट क्लास एसी में बैठने से मना कर दिया था। बाद में गांधी जी ने उसे अपने तर्क और ज्ञान के माध्यम से चुप कर दिया था। इस घटना के बाद गांधीजी की इच्छा थी कि भारत का हर वासी हिसा छोड़कर अहिसा के प्रति प्रेरित हो।