Move to Jagran APP

चंपारण में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की बुनियाद खड़ा करना चाहते थे गांधी Patna News

एक दिन बाद यानी दो अक्टूबर को पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मनाएगा। आइए इससे पहले उनसे जुड़े कुछ संस्मरण जानते हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 08:53 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 08:53 AM (IST)
चंपारण में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की बुनियाद खड़ा करना चाहते थे गांधी Patna News
चंपारण में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की बुनियाद खड़ा करना चाहते थे गांधी Patna News

पटना, जेएनएन। इतिहास अध्येता  भैरवलाल दास को महात्मा गांधी से जुड़े कई प्रसंग याद हैं। वे बताते हैं कि 11 नवंबर, 1917 को मुजफ्फरपुर में गांधीजी की एक सभा आयोजित की गई थी। गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि चंपारण में रैयतों के दुख समाप्ति होने के दिन नजदीक आ गए हैं। उस समय न तो चंपारण कृषि विधेयक बिहार विधान परिषद में पेश हुआ था और न सरकार द्वारा कोई निर्णय लिया गया था, लेकिन गांधी का यह आत्मविश्वास निलहों को राजनीतिक रूप से और भी आसक्त बना दिया।

loksabha election banner

इस सभा में गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम एकता बनाए रखने और सामाजिक उत्थान पर बल दिया। राजनीतिक कार्यों को समेटकर अब गांधी चंपारण में सामाजिक परिवर्तन का आधार शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता को बनाना चाहते थे। वे स्वयंसेवकों से कहा करते थे कि ये हमारे यज्ञ की अत्यंत आवश्यक और अंतिम पूर्णाहुति होगी। हमें ऐसे स्वयंसेवक चाहिए जो जवान, विश्वसनीय और परिश्रमी हों। उन्हें कुदाल लेकर गांवों में नये रास्ते बनाने अथवा पुराने रास्ते मरम्मत करने में कोई दुविधा नहीं हो। वे गांव की नालियों को साफ करेंगे। साथ ही रैयत और जमींदार के आपस के व्यवहार में रैयत को ठीक-ठीक राह बताएं।

20 नवंबर को भितिहरवा विद्यालय की स्थापना के अवसर पर उन्होंने अपनी पूरी योजना लोगों के सामने रख दी। गांधी ने कहा कि जिन स्कूलों को मैं खोल रहा हूं उनमें 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे लिए जाएंगे। हमारा ख्याल है कि बच्चों को हिंदी और उर्दू का पूरा ज्ञान, साथ ही हिसाब, इतिहास और भूगोल की जानकारी, विज्ञान के मूल सिद्धांतों का ज्ञान और थोड़ी सी शिल्पकारी की भी शिक्षा दी जाए। इसके लिए कोई निश्चित पाठ्यक्रम तैयार नहीं किया गया है, क्योंकि मैं नई राह पर चल रहा हूं।

आधुनिक परिपाटी को नहीं मानते थे गांधी

आधुनिक परिपाटी को गांधी नहीं मानते थे। उनका मानना था कि बच्चों की मानसिक शक्ति बढ़ाने तथा उनके चरित्र सुधारने के बदले आधुनिक परिपाटी उन्हें दबाती है। इसके दुर्गुण से बचने का प्रयास करना चाहिए। गांधी का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सुशिक्षित और चरित्रवान बनाना, पुरुषों और स्त्रियों को सत्संग की राह दिखाना था। वे इसी को शिक्षा कहते थे। उनका कहना था कि लिखना-पढ़ना भी इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए सिखाया जाएगा। उनका मानना था कि शिल्प कला की बारीकी उन्हीं लड़कों और लड़कियों को बताई जाए, जो अपने जीवन-निर्वाह के लिए इसका प्रयोग कर सकें।

उनकी इच्छा थी कि बच्चे अपनी विद्या को कृषि और कृषकों के जीवन उन्नति में लगाएं। जवानों को आत्मरक्षा का ज्ञान भी दिया जाए और आपस में मिलकर काम करने से क्या लाभ होगा, इसके बारे में भी उन्हें अवगत कराया जाए।

नई शिक्षा नीति की नींव रखना चाहते थे गांधी

गांधीजी भारत में एक नई शिक्षा नीति की नींव रखना चाहते थे। उनके लिए शिक्षा का अर्थ जीविकोपार्जन भी और उत्तम चरित्र का निर्माण भी। छात्रों के पहले वे शिक्षकों के चरित्र पर अधिक जोर देते थे। उनका मानना था कि माता-पिता के बाद बच्चों का शिक्षकों से ही सबसे ज्यादा संपर्क होता है। गांधी ने बिहार के लोगों के साथ महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा एवं अन्य जगहों के स्वयंसेवकों को चंपारण लाकर कार्य आरंभ किया। लेकिन चंपारण के लिए यह दुखद अध्याय रहा कि समाज निर्माण की पौध एकदम छोटी हीं थी कि गांधी को गुजरात के खेड़ा सत्याग्रह के लिए जाना पड़ा। यदि गांधी का यह अभियान कुछ वर्षो तक भी चलता तो बिहार में शिक्षकों का एक ऐसा जत्था तैयार होता जो कुशल, शिक्षित और उत्तम चरित्र के होते।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.