चीनी हस्तक्षेप को लेकर नेपाल में आंदोलन की राह पर मधेशी, नेपाल का नक्शा बदलने का करेंगे विरोध
नेपाल सरकार ने अपने नए नक्शे में भारत के कालापानी लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल कर लिया है। राष्ट्रीयता के नाम पर सदन से पारित भी करा लिया। जानें क्या है पूरा मामला।
पूर्वी चंपारण, अनिल तिवारी। नेपाल सरकार ने अपने नए नक्शे में भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल कर लिया है। राष्ट्रीयता के नाम पर सदन से पारित भी करा लिया। इसे लेकर देशों के बीच विवाद की स्थिति है। वहीं, नेपाली मधेशी इसे चीन की चाल मान रहे और खुद को इससे दरकिनार कर चुके हैं। मधेशियों की आबादी करीब एक करोड़ है। संसद में 33 मधेशी सांसद हैं। मधेशी इस मामले में उलझने की जगह अपनी पुरानी मांग संविधान संशोधन को लेकर गोलबंद हो रहे। मांगों को पूरा कराने के लिए विभिन्न मधेशी संगठन एक प्लेटफॉर्म पर आ गए हैं। साथ ही नेपाली कांग्रेस पर भी उनका दबाव बढऩे लगा है।
क्या कहते हैं नेपाल के मधेशी नेता
नेपाल के मधेशी नेता महंथ ठाकुर, उपेंद्र यादव, अजय चौरसिया, सर्वेंंद्र नाथ शुक्ला मानते हैं कि जिस जगह को नेपाल के नक्शे में दर्शाया गया है, वह कभी नेपाल का हिस्सा जरूर था। मगर, सुगौली संधि के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल को नहीं सौंपा था। जिस सड़क को लेकर विरोध हो रहा, जब इसका शिलान्यास हुआ था, तब आज के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली विदेश मंत्री के रूप में मौजूद थे।
मिल-बैठ कर समाधान करने की जरूरत
तब विरोध क्यों नहीं किया? अब सरकार को अचानक ऐसा क्या हो गया कि वह इस मुद्दे को आगे बढ़ा रही है? नेपाल के पूर्व मंत्री व नेपाली कांग्रेस के सीसीएम अजय चौरसिया चार दिन बाद वीरगंज आनेवाले हैं। संभव है वे इन मुद्दों पर अपनी बात रखें। इधर, मधेशी नेता सुभान अंसारी, मुकुल गिरी, अलाउद्दीन अंसारी, हैदर अली एवं कैलास ठाकुर ने बताया कि 1950 की भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि के तहत दोनों देशों को मिल-बैठकर समस्या का समाधान करना चाहिए। भारत-नेपाल का संबंध बेटी-रोटी के साथ-साथ बड़ा भाई व छोटा भाई का भी है।
नक्शा विवाद भारत को ब्लैकमेल करने जैसा
क्षेत्र संख्या तीन के सांसद प्रदीप यादव का कहना है कि दोनों देशों को वार्ता और कूटनीति तरीके से समस्या का समाधान करना चाहिए। नेपाल समाजवादी पार्टी के केंद्रीय सदस्य सीपू तिवारी का कहना है कि नक्शा विवाद से मधेश ख़ुद को अलग रखता है। यह विवाद चीन के इशारे पर भारत को ब्लैकमेल करने जैसा है। पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री जयप्रकाश गुप्ता ने बताया कि चीन उस भूमि को पाना चाहता है। तीन देशों को जोडऩे वाले उक्त क्षेत्र से चीन बहुत कम समय में भारत में प्रवेश कर सकता है।
उपेक्षा के शिकार मधेशी, 56 लाख को नागरिकता नहीं
नेपाल की तराई में कुल 22 जिले हैं, जहां करीब एक करोड़ से ज्यादा मधेशी हैं। ये आज भी सामाजिक और सांस्कृतिक अलगाववाद के शिकार हैं। नेपाल के मूल निवासियों की नजर में इन्हें पूरी तरह नेपाली नहीं माना जाता। राजनीतिक तौर पर भी उन्हें उपेक्षित किया गया है। नेपाल में पहाड़ की महज सात-आठ हजार की आबादी पर एक सांसद हैं, लेकिन तराई में 70 से एक लाख की आबादी पर। नेपाल में कुल सांसदों की संख्या 275 है। इसमें से मधेशी दलों के सांसद 33, वहीं अन्य दलों के 242 हैं। नेपाल के 56 लाख लोगों को अब तक वहां की नागरिकता नहीं मिल पाई है। ये मधेशी हैं। संविधान संशोधन कर इस तरह के भेदभाव खत्म करने की अपनी मांग को लेकर मधेशी फिर एकजुट हो रहे हैं।