इंसानों को वफादारी सिखा जाते हैं बेजुबान
इंसानों की तरह पशु-पक्षियों में भी सोचने-समझने की अक्ल होती है।
इंसानों की तरह पशु-पक्षियों में भी सोचने-समझने की अक्ल होती है। वह भी खुले आसमां में अपनी जिदंगी जीना चाहते हैं। वह भी प्यार और दुलार की चाह रखते हैं। दूसरी ओर इंसान अपनी भूख और क्षुधा तृप्ति के लिए निरह प्राणियों की हत्या करने से बाज नहीं आता। बेजुबान जानवरों की देश में हो रही हत्या पर आधारित कहानी का पंचम राग संस्था के बैनर तले पार्थ सारथी के निर्देशन में 'मांस का रूदन' का मंचन कालिदास रंगालय में बुधवार को किया गया। मंच पर भोजपुरी कलाकार मनोज टाइगर ने एकल अभिनय से दर्शकों को बेजुबान जानवरों से प्यार और उनकी हत्या न करने का संदेश दिया।
नाटक की कहानी दो बेजुबान प्राणी पर आधारित थी। एक हिरनी और एक कुत्ते के बहाने कलाकार ने समाज को जानवरों के प्रति प्रेम बनाए रखने का संदेश दिया। हिरनी जिसका नाम जेरी और कुत्ता डोरा की अजब कहानी है। डोरा एक दिन भी मांस के बगैर नहीं रह सकता तो जेरी को मांस की गंध तक बर्दाश्त नहीं करती। बावजूद दोनों के बीच काफी प्रेम है। जो एक दूसरे के प्रति रह नहीं सकते। दोनों जीवों का आसरा ठाकुर साहब के आवास पर होता है। एक दिन ठाकुर के घर पर शहर के डीआइजी साहब का आना होता है। जिसकी मेहमाननवाजी ठाकुर साहब करते हैं। डीआइजी की नजर ठाकुर साहब के घर पर रह रही हिरनी जेरी पर पड़ती है। डीआइजी जेरी का मांस खाने की जिद ठाकुर से करता है। जिसे सुनकर ठाकुर साहब परेशान हो जाते हैं। अपनी शान-ओ-शौकत को बनाए रखने के लिए ठाकुर साहब जेरी की हत्या कर डीआइजी के सामने उसका मांस बनाकर रखते हैं। डीआइजी हिरनी की मांस को बड़े चाव से खाते हुए ठाकुर के घर से बाहर निकलता है। वहीं ठाकुर डोरा के सामने जेरी का मांस खाने को रखता है। जिस मांस के लिए कुत्ता डोरा एक दिन भी रह नहीं सकता वो जेरी का मांस सामने देख भौंकने लगता है। फिर डेरा जेरी को अपने पास न देख उसके आंखों से आंसू निकलने लगता है। वह बिना कुछ खाए चुपचाप बैठा रहता है। ठाकुर डेरा की हालत को देख उदास हो जाता है। उसे अपनी गलती का एहसास होता है, कि बेजुबान को मारकर अपनी पेट की आग बुझाना गलत है। जेरी की याद में डोरा भी कुछ दिनों बाद अपने प्राण त्याग ठाकुर के घर से हमेशा के लिए विदा हो जाता है।