Move to Jagran APP

अजब चुनाव की गजब कहानी: तब लालू ने चलाया था चक्र, चुनाव हो गया था रद, जानिए मामला

साल 1991 में पटना सीट पर जो चुनाव हुआ था उसने लोकतंत्र के नाम पर बदनुमा दाग साबित हुआ था। तब लालटेन लालू के राजद की नहीं थी तब लालू चक्र चलाते थे। जानिए उस साल का हाल...

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 06 May 2019 10:08 AM (IST)Updated: Tue, 07 May 2019 03:09 PM (IST)
अजब चुनाव की गजब कहानी: तब लालू ने चलाया था चक्र, चुनाव हो गया था रद, जानिए मामला
अजब चुनाव की गजब कहानी: तब लालू ने चलाया था चक्र, चुनाव हो गया था रद, जानिए मामला
पटना [अनिल कुमार]। बात 1991 के आम मध्यावधि चुनाव की है, जब पटना संसदीय क्षेत्र पर पूरे देश की निगाहें टिकी थीं। तब पटना संसदीय क्षेत्र का विभाजन नहीं हुआ था। राजनीति के चार बड़े सूरमा यहां से ताल ठोंक रहे थे। आइके गुजराल, यशवंत सिन्हा, डॉ. सीपी ठाकुर और शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव जैसे बड़े नेता मैदान में थे और उनके बीच कांटे का मुकाबला था।
यह चुनाव पटना की शांतिप्रिय जनता के लिए बदनुमा दाग साबित हुआ, जिसमें मतदान के दौरान व्यापक पैमाने पर बूथ लूट और मतपत्रों की छीना झपटी के कारण चुनाव आयोग ने मतगणना पर रोक लगा दी और बाद में पूरे संसदीय क्षेत्र का चुनाव रद कर दिया गया।  

वह चुनाव राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में हो रहा था और तब जनता दल से अलग राजद अस्तित्व में नहीं आया था। लालू प्रसाद ने पटना से चुनाव लडऩे के लिए इंद्र कुमार गुजराल को पंजाब से बुलाया था। आइके गुजराल के अलावा भाजपा से शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव और कांग्रेस से  डॉ. सीपी ठाकुर मैदान में थे।
इनके अलावा मैदान में सबसे चर्चित चेहरा यशवंत सिन्हा थे। चार महीने की चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के लिए यह प्रतिष्ठा का चुनाव था। वहीं, लालू प्रसाद हर हाल में यशवंत सिन्हा को संसद पहुंचने से रोकना चाहते थे।
लालू ने इंद्र कुमार गुजराल को बताया था गुज्जर 

सिन्हा कायस्थ बहुल संसदीय क्षेत्र में वोटरों को गोलंबद करने में सफल हो रहे थे और खुद को स्थानीय और गुजराल को बाहरी बताकर प्रचार कर रहे थे। हालांकि, लालू यादव ने अपने उम्मीदवार को बाहरी बताने वाले बयान की सटीक काट खोज ली थी और गुजराल को गुज्जर कहकर अपनी ही जमात का बता रहे थे।
अपने वोटरों को वे पूरी तरह से समझा चुके थे, लेकिन चुनाव को केवल जनता के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था। तब चुनाव आयोग बूथों पर सुरक्षा और फोर्स की तैनाती में पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन पर निर्भर रहता था।

लालू यादव की सरकार थी और 20 मई, 1991 को हुए मतदान में फोर्स की तैनाती इस तरह से हुई थी कि वह न बूथों पर दिख रही थी और न ही सड़कों पर। बहुत कम लोग मतदान के लिए घरों से निकलने की हिम्मत जुटा पाए। नतीजा जमकर फर्जी मतदान हुए और मतदानकर्मी मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते रहे।
अगले दिन पर्यवेक्षकों और बड़ी संख्या में पीठासीन पदाधिकारियों की रिपोर्ट को देखकर चुनाव आयोग ने मतगणना पर रोक लगा दी। बाद में पूरी समीक्षा के बाद चुनाव को रद कर दिया गया। इस तरह यह कभी पता नहीं चल पाया कि उस चुनाव में किस दिग्गज का जनता ने साथ दिया।
दो साल बाद 1993 में पटना का जब अगला चुनाव हुआ तब यहां से न तो आइके गुजराल थे और न ही यशवंत सिन्हा। उस चुनाव में रामकृपाल यादव को लालू प्रसाद ने मैदान में उतारा और वे जीतकर पहली बार सांसद बने। बाद में वर्ष 1997 में भारत के 12 वें प्रधानमंत्री बने इंद्र कुमार गुजराल।
एक तरफ नेशन, दूसरी तरफ शेषन 
देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए टीएन शेषन ने लोक सभा चुनाव में जारी धनबल, बाहुबल व मंत्रीपद के दुरुपयोग पर ऐसी नकेल कसी कि मुहावरा बना- 'एक तरफ नेशन, दूसरी तरफ शेषण। देश के मध्यवर्ग के मन में तिन्नेल्लई नारायण अय्यर शेषन की छवि आनेवाले कई दशकों तक लोकतंत्र के महापर्व के महापुरोहित के रूप में कायम रहेगी। खुद कानून की चौहद्दी में रहा, दूसरों को इस चौहद्दी के भीतर रहने की हिदायत दी। शेषन ने जैसा कहा था, 1991 के चुनावों में ठीक वैसा ही करके दिखाया।

चुनाव में जमकर हुई थी धांधली 
यशवंत सिन्हा के पटना पूर्वी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष नंदगोला के चंद्रमणि ङ्क्षसह बताते हैं कि उस समय लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। गुजराल की जीत लालू यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। उधर, यशवंत सिन्हा गुजराल को कड़ी टक्कर दे रहे थे।
लोकसभा चुनाव के दिन नजारा बदल गया। दबंगों और बाहुबलियों की जमात बूथ लूटती रही, चुनाव में लगे कर्मचारी और पुलिस तमाशबीन बने रहे। बोगस वोटिंग भी जमकर हुई। चुनाव आयोग में इस धांधली की सैकड़ों शिकायतें पहुंची थीं। चुनाव आयोग ने जांच में गड़बड़ी पाए पाने के बाद 1991 के पटना लोकसभा का चुनाव रद कर दिया था। 

तब लालटेन थी किसी और की, लालू घुमा रहे थे चक्र 
यह संयोग ही कहा जाएगा कि आज राष्ट्रीय जनता दल का चुनाव चिन्ह लालटेन है। उसपर भी सियासत हो रही है। 1991 के चुनाव में भी चुनाव चिन्ह के रूप में लालटेन छपा था लेकिन लालू प्रसाद को उस लालटेन से कोई मतलब नहीं था। तब जनता दल का चुनाव चिन्ह चक्र छाप के लिए लालू यादव प्रचार कर रहे थे। उस वक्त चंदेश्वर प्रसाद सिन्हा का चुनाव चिह्न लालटेन था।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.