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भीख मांगकर कट रही जिंदगी को हुनर ने बनाया लोकप्रिय, अब इनके बच्चे हैं स्कूलों की शान-जानें

अगर हुनर हो तो आपकी पहचान बहुत दिनों तक छिप नहीं सकती। जानें पटना के पाटलिपुत्र इलाके में चल रहे शांति कुटीर में आश्रय लिए महिलाओं ने कैसा बदला अपना जीवन।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 08:21 AM (IST)Updated: Sat, 08 Feb 2020 08:21 AM (IST)
भीख मांगकर कट रही जिंदगी को हुनर ने बनाया लोकप्रिय, अब इनके बच्चे हैं स्कूलों की शान-जानें
भीख मांगकर कट रही जिंदगी को हुनर ने बनाया लोकप्रिय, अब इनके बच्चे हैं स्कूलों की शान-जानें

श्रवण कुमार, पटना। नाम : अपराजिता .. सोनम ..। क्लास : यूकेजी । पता : बेगर हाऊस। पटना के कमला नेहरू स्कूल में पढ़ने वाली नन्हीं परियों का यह परिचय अब उन्हें शर्मिंदा नहीं करता। इनकी प्रतिभा और हुनर ने अल्पावधि में ही न सिर्फ इन्हें लोकप्रिय बना दिया है, बल्कि ये पूरे स्कूल की शान हैं। स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या फिर चित्र या शिल्प प्रदर्शनी, कार्यक्रम इनके बिना अधूरा रहता है।

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ऐसे बदल गई जिंदगी

ये बच्चियां हैं राजधानी के पाटलिपुत्र इलाके में चल रहे शांति कुटीर में आश्रय लिए उन महिलाओं की, जिनकी जिंदगी कभी हनुमान मंदिर, हाई कोर्ट मजार, पटना जंक्शन या सड़क किनारे भीख मांगकर कट रही थी। बिहार में मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना की शुरुआत हुई, तबसे इनकी जिंदगी बदल गई। पटना में मुक्ता सक्षम उत्पादक समूह, शांति और सेवा कुटीर में इन्हें आश्रय मिलने लगा। सड़कों से उठाकर इन्हें न सिर्फ दो जून की रोटी की व्यवस्था की जाने लगी, बल्कि जीने के सलीके भी सिखाए जाने लगे। जूट बैग तैयार करने, टेराकोटा की मूर्तियां बनाने और सिलाई-कढ़ाई के हुनर पैदाकर भिक्षुकों के लिए आर्थिक स्वावलंबन की मजबूत जमीन तैयार की जाने लगी। हुनर ने तब देश का ध्यान खींचा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह अभियान के तहत स्वच्छाग्रहियों को सम्मानित करने बिहार आए। उस समय इन भिक्षुकों द्वारा तैयार किए गए जूट के थैले खरीदकर ही स्वच्छाग्रहियों को भेंट किए गए थे। 24 लाख 51 हजार 450 रुपये के थैले इनसे खरीदे गए।

शहर में अब कम दिखते हैं भीख मांगने वाले

सड़कों से मजबूरी में भीख मांगने वालों की संख्या कम हुई है। महिला भिक्षुकों के लिए शांति और पुरुष भिक्षुकों के लिए सेवा कुटीर चल रहा है। संचालन यूथ मोबलाइजेशन फॉर नेशनल एडवांसमेंट द्वारा किया जा रहा है। संस्थान की सीईओ राखी शर्मा ने बताया कि 2014 से अब तक 571 महिलाओं को आश्रय दिया जा चुका है।मेहनत का फल मिलता है बैंक खाते में शांति कुटीर में टेराकोटा, जूट उत्पादन और सिलाई-कटाई, नृत्य का प्रशिक्षण देकर भिक्षुकों के उत्पाद को मेला-बाजार में रखा जाता है। बिक्री की राशि महिलाओं के बैंक खाते में डाली जाती है। पुरुष भिक्षुकों को पुनर्वासित करने की भी व्यवस्था है। नालंदा, मुजफ्फरपुर और पूर्णिया में भी शांति कुटीर चलाए जा रहे हैं।

राज्यभर में चलाई जाएगी भिक्षावृत्ति निवारण योजना

समाज कल्याण निदेशक राजकुमार ने बताया कि राज्य के सात और जिलों में आश्रय खोले जाने हैं। गया, दरभंगा और भागलपुर में एक-एक शांति और सेवा कुटीर खोले जाएंगे। सहरसा, पूर्णिया, मुंगेर, सारण में सेवा केंद्र खोले जाएंगे। बाल भिक्षुकों को शिक्षित कर पुनर्वासित करने के लिए सभी नौ प्रमंडलीय मुख्यालय के अलावा नालंदा में भी सेंटर खुलेगा। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रलय द्वारा भिक्षावृत्ति निवारण के लिए बिहार के मॉडल पर मुहर लगाने के बाद राज्य सरकार और मजबूती से इस अभियान में जुटेगी।


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