विशेष सीरीज पार्ट 2: लालू के विज्ञान की देन हैं उनके राजनीतिक सफर के ये फॉर्मूले
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने लंबे राजनीति जीवन में कई बड़े प्रयोग किए हैं। राजनीति में उनके प्रयोगों पर केंद्रित खबरों की हमारी दूसरी कड़ी में जानिए ये खास बातें।
पटना [अमित आलोक]। बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव से प्यार व नफरत के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं। लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने अनेक यादगार प्रयोग किए। राजनीति का उनका अपना विज्ञान रहा है। इसके फॉर्मूले वे स्वयं गढ़ते रहे हैं। जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में जीत के बाद राष्ट्रीय जनता दल की कमान थामे उनके बेटे तेजस्वी यादव ने भी इसका श्रेय लालू के विज्ञान का ही दिया है।
बिहार के गोपालगंज जिले के एक पिछड़े गांव फुलवरिया के गरीब परिवार में पले-बढ़े लालू जब अपने चपरासी भाई मुकुंद राय के साथ पटना आए तो परिवार ने यही इच्छा की रही होगी कि वे भी भाई की तरह चपरासी आदि कुछ बन जाएं, ताकि गरीब परिवार के 'अच्छे दिन' आ सकें। लेकिन, लालू महत्वाकांक्षी थे।
लालू के विज्ञान की प्रयोगशाला बना पटना विश्वविद्यालय
पटना विश्वविद्यालय में छात्र जीवन के दौरान राजनीति के वैज्ञानिक प्रयोगों ने लालू के भविष्य का जन नेता बनने की नींव रखी। फिर, आपातकाल का विरोध व जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ना, सांसद, मुख्यमंत्री व रेलमंत्री बनना इतिहास है।
तमाम उतार-चढ़ाव के बीच क्रेज बरकरार
इस बीच उनपर घोटालों के दाग भी लगे। फिलहाल वे चारा घोटाला के कई मामलों में सजायाफ्ता तथा इलाज के लिए अंतरिम जमानत पर मुंबई में हैं। लंबे राजनीतिक जीवन के इन तमाम उतार-चढ़ाव के बीच अगर लालू का क्रेज खत्म नहीं हुआ है, तो इसके पीछे उनकी राजनीति का विज्ञान ही है।
ठेठ अंदाज में जनता से कनेक्ट की यूएसपी
एक चीज जो लालू की यूएसपी रही, वह है उनका ठेठ देसी अंदाज। जनता के मनोभावों को पढ़ उसके साथ कनेक्ट हो जाना लालू की खासियत रही है। अपनी सभाओं में मजाकिया लहजे में बातें करना, चुटकुले सुना कर हंसाते हुए बड़ी से बड़ी बात कह जाने का असर अधिक होता रहा है। लालू जनता का यह मनोविज्ञान जानते हैं कि दिल में जगह बनानी है तो दिल में घुसना होगा।
इस दौरान उनके जुमले भी लोगों की जुबान पर चढ़ गए। 'जब तक रहेगा समोसा में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू', 'बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गाल की तरह चिकनी बनाएंगे' आदि जुमलों के सहारे वे जन-जन की जुबान पर चढ़ते गए। आलोचनाएं होती रहीं, खुद भी मजाक के पात्र बने, लेकिन उन्हें पता था कि इन बातों का कोई मतलब नहीं, अगर वोट बैंक सधता है।
विपक्ष के मुद्दों को भटकाना व मिमिक्री रही खासियत
जनता से संवाद के दौरान विपक्ष के मुद्दाें को भटकाना लालू की खासियत रही है। बिहार में बीते लोकसभा व विधानसभा चुनावों बात करें तो शुरुआती दौर में विकास का मुद्दा हावी रहा। भाजपा व उसके सहयोगी दल चुनाव प्रचार में गोमांस, जंगलराज और चारा घोटाले जैसे मुद्दों पर लालू यादव को घेरते नजर आए तो लालू भी आरक्षण, पिछड़ों व कालाधन के मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा व राजग पर पलटवार करते रहे। इस दौरान उनकी जनसभाओं में जबरदस्त भीड़ उमड़ी। उनकी प्रधानमंत्री के भाषण की मिमिक्री की भी खूब चर्चा रही।
आंकड़ेबाजी नहीं, सीधी बात पर जोर
लालू फिलहाल कोर्ट की बंदिशों के कारण जनसभाएं नहीं कर सकते। लेकिन, उनकी सभाओं पर गौर करें तो वे आकंडे नहीं गिनाते, योजनाओं की बात नहीं करते। जनता से सीधे संवाद में वही बातें करते हैं जो पार्टी हित में होती है। वही मुद्दे उठाते हैं जो कि जनता को समझ में आ जाए। अगड़े-पिछड़े या आरक्षण की बात हो या गरीबी व महंगाई की, वे आंकड़ों में उलझे बिना सीधी बात करते हैं। सीधा सवाल करते हैं कि लालू के राज में आलू कभी मंहगा हुआ? फिर कहते हैं, ' लालू के राज में आलू 2 रुपया किलो, ...सरकार तो हर गलव है। हमरा पॉवर दो।'
सोशल मीडिया को बनाया हथियार
वक्त की नब्ज को भांप फैसले लेना लालू की खासियत रही है। कभी इंटरनेट व सूचना तकनीक का मजाक उड़ाने वाले लालू आज इसके फैन हैं। फेसबुक व ट्विटर पर उनकी फैन फॉलोइंग भी जबरदस्त है। लालू ने सूचना क्रांति को भी हथियार बनाया। इसका लाभ उन्हें जेल में जनता से दूर रहने के दौरान मिल रहा है। लालू के फेसबुक व ट्विटर अकांंउट पर उनके संदेश दिए जाते रहे हैं। इससे लालू का जनता से कनेक्ट जारी रहा है। उन्होंने अपनी भाषा शैली के माध्यम से जनता को कटने नहीं दिया। यही कारण है कि जोकीहाट की विजय में भी तेजस्वी यादव चुनाव से दूर रहे लालू का विज्ञान को श्रेय दे रहे हैं।
घर के विरोध का सेफ्टी वाल्ब बनते रहे लालू
ऐसा नहीं कि लालू की सत्ता को घर में चुनौती नहीं मिली। लेकिन वे इसे मैनेज करने का विज्ञान जानते हैं। करीब 20 साल पहले अररिया के तत्कालीन सांसद तस्लीमुद्दीन (अब दिवंगत) लालू प्रसाद को खरी-खोटी सुना गए। लेकिन, लालू चुप रहे। उनके जाने के बाद जब मौके पर मौजूद लोगों ने इस मौन का कारण पूछा तो लालू ने कहा था कि तस्लीमुद्दीन की नाराजगी यहां निकल गई। अब वे पार्टी छोड़कर नहीं जाएंगे।
तस्लीमुद्दीन की मौत के बाद उनके बेटे सरफराज आलम उनकी सीट पर राजद के सांसद बने। इसके लिए सरफराज ने जो जोकीहाट विधानसभा सीट खाली की, उसपर तस्लहमुद्दीन के ही दूसरे बेटे शाहनवाज आलम ने जीत दर्ज की है। सोचिए, अगर 20 साल पहले तस्लीमुद्दीन की खरी-खोटी से लालू नाराज हो गए होते तो ऐसा होता? इस घटना के दौरान अगर लालू अपना आपा खो देते तो आज सीमांचल की राजनीति कुछ और होती। लालू जानते हैं कि घर के विरोध का कहां सेफ्टी वाल्ब बनना है।