सियासी पर्दे पर चल रहा है तेजप्रताप के लुका-छिपी का खेल, पल में यहां-पल में वहां...
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव इन दिनों राजनीतिक पर्दे से गायब हैं। वो कब-कहां-कैसे हैं? इसका कुछ पता नहीं चल पाता। कभी वो प्रकट होते हैं तो कभी गायब..
पटना, राज्य ब्यूरो। बिहार चुनाव की दहलीज पर खड़ा है और लालू प्रसाद के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव सियासी पर्दे से पूरी तरह ओझल हैं। या यूं कहें कि लुका-छिपी के खेल की तरह कभी प्रकट होते हैं तो कभी गायब हो जाते हैं। वह कब-कहां-क्या करते मिलेंगे, कोई नहीं बता सकता है। लगता है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की तरह ही तेजप्रताप को भी सियासत या परिवार की विरासत से ज्यादा मतलब नहीं रह गया है।
शायद इसीलिए कभी बिहार में तो कभी वृंदावन में तो कभी कहीं और भटकते रहते हैं, तो कभी एकदम से प्रकट होकर कुछ बयान देते हैं फिर गायब हो जाते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद तेजप्रताप को राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं देखा गया है। हालांकि अन्य गतिविधियों में वह यदा-कदा नजर आ जाते हैं।
राजधानी के संपतचक में दो दिन पहले तेजप्रताप को माता के जागरण में देखा गया। दिवाली और गोवर्धन पूजा के दौरान मथुरा गए तो गो-सेवा में मग्न हो गए। जमुना नदी की हालत देखकर द्रवित हो गए।
सोशल मीडिया के जरिए यूपी सरकार के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी भी दे दी, किंतु आंदोलन कब होगा-कैसे होगा, इसकी मियाद नहीं बताई। पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक प्रकरण को अगर अपवाद मान लिया जाए तो तेजप्रताप के बयानों का इतिहास रहा है कि वह एक बार बोलने के बाद दोबारा उसे याद नहीं करते हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान जब पार्टी और परिवार में उनकी उपेक्षा हुई और टिकट बंटवारे में उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने राजद से अलग लालू-राबड़ी मोर्चा बना लिया। उसके तीन प्रत्याशी भी उतार दिए। उनके पक्ष में जमकर प्रचार किया और राजद प्रत्याशियों पर प्रहार भी किया। हालांकि हार गए तो खुद-ब-खुद बैकफुट पर आ गए। अपने तथाकथित अर्जुन तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए फिर से सारथी कृष्ण बन जाने का दावा करने लगे।
तेजप्रताप का दावा सच के कितना करीब है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले महीने बिहार की छह सीटों पर हुए उपचुनाव में कहीं भी प्रचार करते नहीं दिखे, जबकि राजद के प्रत्याशी भी चार सीटों पर किस्मत आजमा रहे थे।