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बिहार: महागठबंधन के छोटे मोहरों पर बड़ा दांव, लालू की चाल से सब हैं हैरान

लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार महागठबंधन में सीटों का एलान होने के साथ ही राजनीति जानकार ये जानकर हैरान हैं कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ने छोटी पार्टी को इतना महत्व क्यों दिया है?

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 05:05 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 04:05 PM (IST)
बिहार: महागठबंधन के छोटे मोहरों पर बड़ा दांव, लालू की चाल से सब हैं हैरान
बिहार: महागठबंधन के छोटे मोहरों पर बड़ा दांव, लालू की चाल से सब हैं हैरान

पटना, काजल। काफी जद्दोजहद के बाद बिहार में शनिवार को महागठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों के बंटवारे की औपचारिक घोषणा हुई, जिसमें चालीस सीटों में 20 राजद, नौ कांग्रेस, पांच रालोसपा, तीन हम और तीन विकासशील इंसान पार्टी, वीआइपी के मुकेश सहनी को दी गई है। एक सीट माले को राजद कोटे से मिलेगी।

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बिहार महागठबंधन के लिए राजनीति के चौसर पर रिम्स में इलाज करा रहे सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव की बिछाई बिसात से सभी हैरान हैं कि आखिर लालू बिहार में अपने सहयोगियों पर इतने मेहरबान कैसे हो गए? खासकर जिस पार्टी को कोई जानता नहीं, इसे तीन सीटें देकर महागठबंधन ने राजनीतिक गलियारे में प्रश्न चिह्न लगा दिया है।

पहले तो सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में हाय-तौबा मची रही। यहां तक कि सीट बंटवारे के एेलान से पहले तक सीटों को लेकर अनबन के साथ ही महागठबंधन टूट की कगार पर, इस तरह की तमाम अटकलों के बाद आखिरकार सबने मिलकर सीटों का फैसला कर दिया और औपचारिक घोषणा हुई।

बता दें कि राजद पहली बार पार्टी स्थापना के बाद से मात्र 20 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी। उसने अपने पांच सहयोगियों के लिए 20 सीटें छोड़ी हैं। सीटों के इस समझौते से साफ है कि राजद अध्यक्ष लालू यादव  ने अपने सहयोगियों को उनकी क्षमता के अनुसार या उनके बारे में अपने आकलन के अनुसार सीटें दीं हैं।

लालू यादव ने इस बार कई जोखिम लिया है। जैसे उन्होंने अंतिम दौर की बातचीत तक कांग्रेस को नौ की नौ सीटें ही दीं, जबकि छोटी पार्टियों, जैसे उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को पांच और जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी को तीन-तीन सीटें देने का अपना वादा पूरा किया। साथ ही सीपीआई-माले को भी एक सीट पर समर्थन देने के लिए तैयार हो गए।

 

लालू को पता है कि बिहार की चुनावी चौपड़ पर बिसात कैसे बिछानी है? 1990 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू हुई थी जिसके सबसे बड़े नेता लालू प्रसाद यादव बने। तब से लेकर 2000 के दशक की शुरुआत होने पर कुर्मी और वैश्‍य कॉम्बिनेशन ने मिलकर बिहार की सत्ता हासिल की, जो अब तक जारी है। इसे देखते हुए ही लालू ने सन अॉफ मल्लाह मुकेश सहनी की विकासशील पार्टी को तीन सीटें देकर सबको चौंका दिया है।  

 

राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के जेहन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस नई-नवेली पार्टी को महागठबंधन में तीन सीटें क्यों देनी पड़ी? सवाल उठ रहे हैं कि महागठबंधन के सबसे बड़े नेता लालू प्रसाद यादव जैसे सामाजिक वैज्ञानिक मुकेश सहनी पर इतना बड़ा दांव क्यों लगाया है? 

तो इसका जवाब ये है कि मुकेश की मल्‍लाह वोटरों में काफ़ी लोकप्रियता है। मुकेश सहनी बॉम्बे में फ़िल्म के सेट बनाने का काम करते हैं और उस धंधे में इन्होंने काफ़ी अच्छी कमाई की है। लेकिन इनकी हमेशा राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही जिसके कारण 2014 के लोकसभा चुनावों से वह बिहार में काफ़ी सक्रिय रहे। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की हार के बाद वो फिर वापस मुम्बई चले गए।

 

फिर से वे राजनीतिक महात्वाकांक्षा लेकर पिछले एक वर्ष से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं। वह अपनी जाति के वोटरों को लामबंद और अपने प्रति आकर्षित करने के लिए हर क़दम उठाते हैं चाहे वो हेलीकॉप्टर से प्रचार करने का तरीक़ा हो या विशेष रथ में घूम-घूमकर जिला और कस्बों में प्रचार करने का उनका स्टाइल।

शायद यही कारण था कि पिछले चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने क़रीब 40 सभाओं में मुकेश को अपने साथ रखा था वह उन्हें अपने साथ हर दिन हेलीकॉप्टर में ले जाते थे और दोनों संयुक्त सभा को संबोधित करते थे। 

कुछ दिनों पहले मुकेश ने घोषणा की थी कि माछ भात खाएंगे और महागठबंधन को जिताएंगे और अगर एनडीए दोहरे अंक में पहुंच गया तो राजनीति नहीं करेंगे, उससे लगता है कि उन्होंने अपने लिए कठिन लक्ष्य रखा है। उससे ज़्यादा उन्हें साबित करना होगा कि उनका अपने जाति के वोटरों के ऊपर प्रभाव है।

बिहार की मुजफ्फरपुर, दरभंगा, औरंगाबाद, उजियारपुर और खगड़िया लोकसभा सीट पर मल्लाह समाज निर्णायक भूमिका में रहे हैं। मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट पर 2014 में हुए चुनाव में बीजेपी के अजय निषाद जीते थे। इससे पहले इस सीट पर अजय निषाद के पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जयनारायण निषाद 4 बार सांसद रहे।

बिहार में मल्लाह अति पिछड़ी जाति कैटेगरी में हैं। फिर भी आर्थिक लिहाज से भी इस जाति के लोग थोड़े संपन्न हैं। इनका पुश्तैनी काम मछली पकड़ने से लेकर इन्हें बेचने के कारोबार से जुड़ा है और पिछले दो-तीन दशक में मल्लाहों की बड़ी आबादी शहरों में शिफ्ट हुई है और वे यहीं अपने कारोबार को बढ़ा रहे हैं। इस वजह से माना जा सकता है कि निषाद की आबादी भले ही 3-4 फीसदी है, लेकिन ये समाज के दूसरे लोगों को प्रभाव में लेने में सक्षम हैं।


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