Bihar Assembly Election: मगध के मध्य क्षेत्र में सिर्फ चलती है लालू-नीतीश की, बाकी सब नाम के
जदयू और राजद के लिए जहानाबाद की सियासी धरती बैटल फील्ड की तरह है। यहां गठबंधन का न तो असर है और न हाल-फिलहाल में कोई आसार। न भाजपा की चलती है न कांग्रेस की।
पटना [अरविंद शर्मा]। जदयू और राजद के लिए जहानाबाद की सियासी धरती बैटल फील्ड की तरह है। यहां गठबंधन का न तो असर है और न हाल-फिलहाल में कोई आसार। न भाजपा की चलती है, न कांग्रेस की। यहां की राजनीति में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का सीधा दखल है। पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के जेल से निकलते ही जहानाबाद का मैदान फिर सजने लगा है।
जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने राजग के लिए पेशबंदी शुरू कर दी है। खबर है कि जगदीश शर्मा की मुलाकात नीतीश कुमार से भी हो चुकी है। स्पष्ट है कि चुनाव से पहले मगध के मध्य क्षेत्र की राजनीति में हलचल होने वाली है, जिसका असर आसपास के क्षेत्रों में व्यापक होगा। सियासी समीकरण भी गहरे तक प्रभावित होंगे।
छह हस्तियों की प्रतिष्ठा दांव पर
विधानसभा चुनाव के दौरान जहानाबाद में सक्रिय छह हस्तियों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। जगदीश शर्मा के अलावा जदयू सांसद चंदेश्वर चंद्रवंशी, पूर्व सांसद सुरेंद्र यादव, अरुण कुमार, रामजतन सिन्हा और शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा मुख्य रूप से सामाजिक समीकरण एवं वोट बैंक को प्रभावित करेंगे। जमानत पर जेल से बाहर आए जगदीश शर्मा खुद चुनाव लडऩे से वंचित हैं, लेकिन पुत्र राहुल शर्मा के लिए कारपेट बिछाने में जुट गए हैं। विधानसभा चुनाव में राहुल ने जीतनराम मांझी के दल से चुनाव लड़ा था। हार गए। सबक लेकर लोकसभा चुनाव से पहले जदयू में वापस आ गए। चंदेश्वर के पक्ष में प्रचार किया और जीत की राह बनाई। अब अपने पिता की परंपरागत सीट घोसी से जदयू के स्वाभाविक दावेदार हैं। माना जा रहा है कि राहुल की घोसी से दावेदारी के बाद कृष्णनंदन वर्मा को जहानाबाद या कुर्था भेजा जा सकता है।
पलट सकता है समीकरण
जगदीश शर्मा की वापसी से जदयू जहानाबाद में पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे को पलट सकता है। 2015 में राजद के साथ लड़ते हुए जदयू को इस संसदीय सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से दो पर जीत मिली थी। बाकी चार पर राजद ने कब्जा जमाया था। अबकी समीकरण पलट सकता है, क्योंकि 1977 से जगदीश परिवार की जीत का सिलसिला पर सिर्फ एक बार 2015 में ब्रेक लगा है। आठ बार विधायक और दो बार सांसद का रिकॉर्ड उनके नाम है।
सुरेंद्र यादव के हाथ में लालू का मोर्चा
लोकसभा चुनाव में निर्दलीय लड़कर बुरी तरह हार चुके अरुण कुमार की राजनीति अभी स्पष्ट नहीं है कि वह किस खेमे की ओर कदम बढ़ाना चाह रहे हैं। रामजतन सिन्हा को जिस तामझाम से साल भर पहले जदयू में इंट्री दिलाई गई थी, उससे साफ है कि विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। लालू प्रसाद का मोर्चा पूर्व सांसद सुरेंद्र यादव के हाथ में होगा। हालांकि अतरी विधायक कुंती देवी और मुनीलाल यादव का कुनबा सुरेंद्र यादव पर हावी होने की कोशिश करेगा। जहानाबाद के विधायक सुदय यादव का प्रयास अपने पिता स्व. मुंद्रिका सिंह यादव की पुरानी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने की होगी। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को मखदुमपुर से हराने वाले राजद विधायक सूबेदार दास भी अपने दायरे को बढ़ाने की कोशिश में हैं, जिससे राजद की राजनीति कई ध्रुवों में विभक्त हो सकती है।
भाजपा और कांग्रेस का नहीं है वजूद
जहानाबाद संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं- कुर्था, अरवल, घोसी, अतरी, मखदुमपुर और जहानाबाद। पांच साल पहले के नतीजे के हिसाब से चार पर राजद और दो पर जदयू का कब्जा है। लोकसभा चुनाव में जदयू के हाथों राजद को शिकस्त मिल चुकी है। इस क्षेत्र में भाजपा और कांग्र्रेस का वर्तमान में वजूद नहीं है। कांग्र्रेस की जड़ को जगदीश शर्मा ने ही वर्ष 2000 तक जमाए रखा था, जो उनके दल बदल के साथ खत्म भी हो गया है। भाजपा ने 2010 में अरवल से पहली बार खाता जरूर खोला था, किंतु निरंतरता नहीं रह पाई। 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अहसास था। तभी उसने अरवल के अलावा सभी पांच सीटें अपने सहयोगी दलों में बांट दी थीं। अरवल भी बचा नहीं पाई।