दशहरा महोत्सव के दौरान कलाकारों को सुनने के लिए जगता था पूरा शहर : शोभना नारायण
कथक गुरु पद्मश्री डॉ. शोभना नारायण शनिवार को बिहार संग्रहालय परिसर में थीं।
प्रभात रंजन, पटना। कथक गुरु पद्मश्री डॉ. शोभना नारायण शनिवार को बिहार संग्रहालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान दर्शकों से मुखातिब थीं। इस दौरान उन्होंने बिहार के संदर्भ में कथक नृत्य की भूमिका के साथ अपने अपनी जीवन यात्रा से जुड़ी कई संस्मरण सुनाए। शोभना ने कहा कि बिहार की भूमि लोक संस्कृति के साथ शास्त्रीय संगीत, नृत्य की भूमि रही है। शास्त्रीय संगीत और नृत्य में यहां के सिद्धहस्त कलाकारों ने देश-दुनिया में अपना नाम कर रोशन किया है। शास्त्रीय संगीत की बात करें तो दरभंगा, बेतिया, गया, आमता कई घरानों से निकलने वाले कलाकार गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाह करते रहे हैं। शास्त्रीय संगीत और नृत्य के प्रति यहां के लोगों में आरंभ के दिनों से ही रूचि रही है। यहां के श्रोताओं ने हमेशा से कलाकारों का सम्मान दिया है।
बिहार से रहा पुराना संबंध -
शोभना ने कहा कि हमारी जीवन यात्रा की शुरुआत बिहार और खासतौर पर पटना से हुई। उन्होंने कहा कि मेरा ननिहाल मुजफ्फरपुर में रही। हमारे पिता आरा के थे। काफी समय तक पाटलिपुत्रा कॉलोनी में रही। पिता की नौकरी के कारण पटना से होते हुए दिल्ली गई। उन्होंने कहा कि कथक नृत्य के प्रति मेरा रूझान बचपन से था। जिसमें हमारी मां की अहम भूमिका रही। मां की इच्छा थी इसमें बेहतर करूं। पढ़ाई में तेज होने के साथ इस विधा से लगाव बचपन से रहा। चार साल की उम्र में पहली बार मुजफ्फरपुर में स्टेज पर अपनी प्रस्तुति दी थी और ईनाम भी मिला था। शोभना ने कहा कि पटना हमारी मातृभूमि रही। हम कहीं भी रहें जब भी मौका मिलता है पटना आने को तो मैं हमेशा तैयार रहती हूं।
दशहरा महोत्सव के दौरान दी थी प्रस्तुति -
शोभना ने कहा कि बिहार की कला-संस्कृति हमेशा से समृद्ध रही। यहां के कलाकारों को कद्र हमेशा से ऊंचा रहा है। 1970 के दौरान शहर ने कला के कई रंग देखे। उस दौरान दशहरा महोत्सव का आयोजन बड़े-धूमधाम से होता था। महोत्सव के दौरान विभिन्न घरानों के कलाकारों ने यहां आकर प्रस्तुति दी। कलाकारों की प्रस्तुति देखने के लिए पूरा शहर जगता था। वही 1972 से लगातार पटना आ रही हूं। इसके बाद यहां शहर के विभिन्न हिस्सों में हमारी प्रस्तुति होते रही। जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। उन्होंने कहा कि हमारे नृत्य में लखनऊ और बनारस घराने की झलक मिलती है। बनारस घराने के बिरजू महाराज और जयपुर घराने के गुरु कुंदन लाल से भी तालीम ली। वैसे तो हमारे लिए एक ही घराना है जो है कथक घराना। नृत्य को हमेशा से जीती रही हूं। इसके आगे और पीछे कुछ नहीं दिखता।
शास्त्रीय नृत्य और संगीत योग का रूप
उन्होंने कहा कि शास्त्रीय नृत्य और संगीत योग का विशुद्ध रूप है। अगर इसे रोजमर्रा की जिदंगी में शामिल किया जाए तो व्यक्ति अपने आप को ऊर्जावान और स्वस्थ महसूस करेगा। यह नृत्य ढाई हजार साल पुरानी है। इस कला का जीतना महत्व पहले था उतना आज भी है। कथक नृत्य के बारे में शोभना ने कहा कि कथा शब्द से कथक आया है। आज भी बिहार के गये जिले में कथकियों का गांव हैं। जिनमें कथक ग्राम, कथक बिगहा, जागीर कथक हैं। गांव के रिकार्ड में कथकियों की बात है।
बिहार छोड़कर उत्तरप्रदेश चले गए कलाकार
शोभना ने कहा कि एक बुजुर्ग कलाकार कन्हैया मल्लिक से वर्षो पहले मुलाकात हुई थी। लेकिन वो अब नहीं रहे। मल्लिक ने बताया था कि बिहार में कथकियों की लंबी परंपरा रही है। काफी वर्षो तक यहां के कलाकार राज-दरबार की शोभा-बढ़ाते रहे। धीरे-धीरे समय बदला और राजपाट भी। इनके यजमान जो उन्हें अपने दरबार में बुलाते थे लेकिन वो उनके जाने के बाद इन कलाकारों का कद्र धीरे-धीरे खत्म होता गया। जिसके बाद बहुत से कलाकार बिहार छोड़ उत्तरप्रदेश के ईश्वरपुर गांव में जा बसे। 1910 में गए कई परिवारों ने अपना संसार वहां बसाया। जिसके बाद वहां से कई दिग्गज कलाकार बाहर निकले। ये सभी कलाकार पहले गया के कथक गांव में रहा करते थे। नारायण ने कहा कि तवायफों के आगमन के बाद कथक गांव के कलाकारों का पलायन हुआ।
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