Move to Jagran APP

बिहार में छात्र राजनीति का गौरवशाली इतिहास, इसने गढ़ा सूबे का भविष्य

आजादी के पहले व बाद में कई बार बिहार के छात्रों ने व्यवस्था में बदलाव की पहल की है। सूबे की छात्र राजनीति के इतिहास, संघर्ष और सफलता के विभिन्न आयामों की पड़ताल करती यह खबर पढ़ें।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 12 Feb 2018 08:30 AM (IST)Updated: Tue, 13 Feb 2018 11:13 PM (IST)
बिहार में छात्र राजनीति का गौरवशाली इतिहास, इसने गढ़ा सूबे का भविष्य

पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार की छात्र राजनीति का गौरवशाली अतीत रहा है, लेकिन मौजूदा दौर के छात्र संगठनों की पहचान सियासी दलों की अनुषंगी इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है। सियासत की शुचिता और बिहार के भविष्य के लिए सुखद है कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने छात्र संघों की आंदोलनकारी भूमिका को फिर जिंदा करने की पहल की है। पढ़ाई के दौरान राज्यपाल खुद छात्र राजनीति में अति सक्रिय रह चुके हैं।

loksabha election banner

सत्यपाल मलिक जब राज्यपाल बनकर बिहार आए तो उन्हें यह जानकर बड़ी हैरत हुई कि यहां की छात्र राजनीति दयनीय दौर से गुजर रही है। उन्होंने फौरन सभी विश्वविद्यालयों में नियमित रूप से छात्र संघ चुनाव कराने का फरमान जारी किया, क्योंकि उन्हें पता है कि बिहार के छात्रों ने आजादी के लिए कितनी बड़ी कुर्बानियां दी हैं।

आजादी के बाद देश-प्रदेश की तरक्की और समाज के नवनिर्माण में भी बिहारी छात्रों की अहम भूमिका रही है। सियासी शुचिता और सुशासन के उदाहरण तो खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। छात्र राजनीति से निकले लालू प्रसाद, सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे बड़े कद-पद वाले नेताओं की चर्चा आज भी देशभर में होती है।

आजादी के लिए दी प्राणों की आहूति

आजादी के पहले के क्रांतिकारी आंदोलनों में बिहारी छात्रों की सक्रिय भागीदारी थी। बड़े नेताओं की भूमिका नेतृत्व देने तक सीमित थी। सफलता की इबारत युवाओं ने ही लिखी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में 1906 में 'बिहारी स्टूडेंट्स सेंट्रल एसोसिएशन' की स्थापना हुई थी। इसका विस्तार बनारस से कलकत्ता तक था। 1942 के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की कहानी बिहार के बिना पूरी नहीं हो सकती। 11 अगस्त 1947 को विधानसभा सचिवालय पर तिरंगा फहराने की कोशिश में सात छात्रों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी।

आजादी के बाद भी देश में जो बड़े आंदोलन हुए, उनमें छात्रों की निर्णायक भूमिका रही। 1974 में इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन और आपातकाल, बोफोर्स घोटाले के बाद वीपी सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में छात्रों की ही अहम भूमिका रही।

बिहारी छात्रों के आगे नेहरू हुए मजबूर

पटना विश्वविद्यालय छात्र राजनीति की नर्सरी रही है। आजादी के महज आठ साल के भीतर ही पटना के छात्र आंदोलन की गूंज ने दिल्ली को भी परेशान कर दिया था। 1955 में बीएन कालेज के छात्र दीनानाथ पांडेय के पुलिस गोलीबारी में मारे जाने के बाद छात्र उग्र्र हो गए थे। यह आंदोलन इतना बड़ा हो गया कि खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को 30 अगस्त को पटना आना पड़ा। उन्हें भी आक्रोश झेलना पड़ा था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के न चाहने के बावजूद नेहरू को गोलीकांड की जांच के लिए दास आयोग का गठन करना पड़ा था। दरअसल गोलीकांड में श्रीबाबू के करीबी मंत्री महेश प्रसाद सिंह की भूमिका बताई जा रही थी। महेश के खिलाफ महामाया प्रसाद ने अगला चुनाव इसी को मुद्दा बनाकर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और जीता, जिसके बाद छात्र राजनीति की हनक बढ़ी।

पहला अध्यक्ष बने राम जतन सिंह

पटना विश्वविद्यालय में डायरेक्ट चुनाव से 1967 में पहली बार राम जतन सिंह अध्यक्ष और नरेंद्र सिंह उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। राम जतन को अध्यक्ष बनाने में बाल मुकुंद शर्मा की अहम भूमिका थी। इसके पहले 1964 के छात्र संघ चुनाव का स्वरूप दूसरा था। तब सीधे चुनाव नहीं होता था। प्रत्येक क्लास से एक-एक काउंसिलर चुने जाते थे जो बाद में मुख्य चुनाव के लिए वोट देते थे।

पुरानी व्यवस्था से राम प्रसाद यादव और मुन्ना त्रिपाठी छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। इस बीच चुनाव पैटर्न में बदलाव की मांग भी होती रही। राम जतन के नेतृत्व में छात्रों के सवाल पर 1967 में जबरदस्त आंदोलन हुआ। उस वक्त केबी सहाय की सरकार थी। उग्र्र छात्रों ने खादी ग्र्रामोद्योग और रिजेंट सिनेमा हॉल को फूंक दिया था। आक्रोश पूरे प्रदेश में फैला और इसका इतना असर हुआ कि अगले विधानसभा चुनाव में पटना से केबी सहाय को महामाया प्रसाद ने परास्त कर दिया। महामाया छात्रों के हीरो बन गए थे।

छात्र राजनीति में लालू का पदार्पण

अगले चुनाव में 1970 राम जतन सिन्हा फिर अध्यक्ष बने। छात्र राजनीति में लालू प्रसाद का पहली बार प्रवेश हुआ और वह महासचिव बनाए गए थे। इसके तीन साल बाद 1973 के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए नरेंद्र सिंह और लालू प्रसाद में मुकाबला हुआ। समाजवादी युवजन सभा के समर्थन से लालू ने कांग्र्रेस के करीबी नरेंद्र को परास्त कर पहली बार अध्यक्ष बने। महासचिव सुशील मोदी और संयुक्त सचिव रविशंकर प्रसाद बने।

बिहार की छात्र राजनीति पर 1977 में पहली बार विद्यार्थी परिषद का कब्जा हुआ और अश्विनी कुमार चौबे अध्यक्ष चुने गए। राजाराम पांडेय उपाध्यक्ष थे। खास बात यह कि पहली बार वाम छात्र संगठनों ने कड़ी टक्कर दी और तीन पदों पर जीत दर्ज की।

छात्र राजनीति पर गैर राजनीतिक संगठन का कब्जा 1980 में हुआ, जब अनिल कुमार शर्मा अध्यक्ष बने। चुनाव से पहले उन्होंने स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन फॉर यूनिटी एंड लिबर्टी नाम का संगठन बनाया था, जिसके महासचिव चितरंजन गगन थे। इसी चुनाव में दो पद लेकर एनएसयूआई ने खाता खोला। जीतेंद्र राय वाद-विवाद सचिव और विनीता झा समाज सेवा सचिव बनी।

नीतीश का मॉडल सबसे अलग

छात्र राजनीति में लालू प्रसाद की टीम में सक्रिय रहे एवं वर्तमान में राजनारायण चेतना मंच के अध्यक्ष बाल मुकुंद शर्मा नीतीश कुमार की सियासी शैली को सबसे अलग मानते हैं। वह कहते हैं- राजनीति में अच्छे लोग नहीं आएंगे तो बुरे लोग हावी हो जाएंगे। ऐसे में राजकाज और समाज पर बुरा असर पड़ेगा। 1974 के आंदोलन के दौरान नीतीश की राजनीतिक शुचिता आज भी अनुकरणीय है।

18 मार्च 1974 को महंगाई, भ्रष्टाचार और शिक्षा में अव्यवस्था के मुद्दे पर विधानसभा का घेराव करना था। करीब एक लाख छात्रों ने पटना में डेरा डाल रखा था, जिन पर आम लोगों की भी नजर थी। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, सुशील मोदी, नरेंद्र सिन्हा, राम जतन सिन्हा, वशिष्ठ नारायण सिंह और बाल मुकुंद शर्मा नेतृत्व कर रहे थे। अफवाहों के बाद छात्रों का एक जत्था भड़क उठा, जिसके बाद पर्ल सिनेमा एवं फ्रेजर रोड स्थित एक पेट्रोल पंप को फूंक दिया गया। इसमें बड़े छात्र नेताओं की भूमिका नहीं थी, लेकिन नीतीश इस तरह की राजनीति के पक्षधर नहीं थे। बाद में उनकी सलाह पर जेपी से संपर्क किया गया और छात्र आंदोलन की नई पटकथा लिखी गई।

जेपी के नेतृत्व में उत्कर्ष

70 के दशक की छात्र राजनीति ने पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लोकप्रियता की शिखर पर थी, किंतु गरीबी, मंदी, महंगाई, बेरोजगारी एवं अशिक्षा के चलते जन-आकांक्षाएं अधूरी थीं। देश अशांत हो चुका था। ऐसे में छात्र राजनीति शैक्षणिक परिसरों से निकल कर सड़कों पर आ गई। 18 मार्च 1974 को बिहार विधानसभा के घेराव से शुरू हुआ यह आंदोलन बार-बार छात्रों और पुलिस मुठभेड़ में तब्दील होने लगा। हफ्ते भर में 27 लोग मारे गए। जयप्रकाश नारायण ने नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया और 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया। दरअसल यह व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष था। बिहार ने पूरे देश को रास्ता दिखाया जिसके कारण शक्तिशाली इंदिरा गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

1980 में प्रदेश भर में विस्तार

प्रारंभ में सिर्फ पटना विश्वविद्यालय में ही छात्र संघ चुनाव होते थे। 1980 में पहली बार सभी विश्वविद्यालयों में चुनाव कराए गए। पटना विवि में अनिल कुमार शर्मा, मगध में बबन सिंह यादव अध्यक्ष और योगेंद्र सिन्हा महासचिव बने। भागलपुर में नरेश यादव, बिहार यूनिवर्सिटी में हरेंद्र कुमार, रांची में दीपक वर्मा और मिथिला में वैद्यनाथ चौधरी अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

इसी दौरान छात्र संघ चुनाव की नियमावली तैयार करने के लिए माधुरी शाह आयोग का गठन किया गया, जिसने कई तरह की शर्तें लगाकर छात्र राजनीति को नियमों में बांध दिया। उम्र सीमा तय कर दी गई। 1982 में नई नियमावली के आधार पर ही चुनाव हुआ, जिसका भारी विरोध हुआ।

अब तक छात्र राजनीति परिपक्व होकर परिसर से निकल चुकी थी। जन समस्याओं पर भी आंदोलन होने लगे थे। 1982 में जनता पार्टी, लोकदल, सीपीआई, सीपीएम, माले और आइपीएफ ने मिलकर छात्र संघर्ष मोर्चा बनाया।

नए नियमों ने लगाया अड़ंगा

छात्र संघर्ष मोर्चा ने नए नियमों के खिलाफ पूरे बिहार में चुनाव का बहिष्कार किया। पटना में प्रशासन के बल पर चुनाव कराने की कोशिश हुई तो वोट पोल नहीं हुआ, लेकिन बैकडोर से मतदान कराकर शंभु शर्मा को अध्यक्ष घोषित कर दिया गया। रणवीर नंदन महासचिव बने। बाकी किसी विवि में चुनाव नहीं हो सका। पटना में विरोध कर रहे छात्रों को गिरफ्तार करके चुनाव कराया गया था।

नई नियमावली के चलते एक बार शिथिलता आई तो सबकुछ बदल गया। मुद्दे और आदर्श गायब हो गए हैं। पहले विद्यार्थियों को सहूलियतें-परेशानी, रोजगार परक प्रशिक्षण आदि मुद्दे होते थे, किंतु अब छात्रों की सियासत को बड़े राजनीतिक दल तय करने लगे हैं। इससे कंटेंट काफी बदल गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.