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लोकसभा चुनाव: बिहार में जब-जब पड़े 60 फीसदी वोट, तब-तब डोला है दिल्ली का सिंहासन

दिल्ली के सिंहासन के फैसले में बिहार की भी अहम भूमिका होती है। जब-जब बिहार में 60% से अधिक वोट पड़े हैं तब-तब दिल्ली का सिंहासन डोल गया है। पढ़िए इस खास रिपोर्ट में....

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 10:41 AM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 12:57 PM (IST)
लोकसभा चुनाव: बिहार में जब-जब पड़े 60 फीसदी वोट, तब-तब डोला है दिल्ली का सिंहासन
लोकसभा चुनाव: बिहार में जब-जब पड़े 60 फीसदी वोट, तब-तब डोला है दिल्ली का सिंहासन

पटना [श्रवण कुमार]। बिहार को यूं ही देश की राजनीति का थर्मामीटर नहीं कहा जाता है। जब-जब यहां के वोटरों का ताप बढ़ा है, देश का सिंहासन डोला है। आंकड़े गवाह हैं कि एक अपवाद छोड़कर जब भी बिहार में 60 फीसदी से ज्यादा मतदान हुए हैं, देश की सरकार बदल गई है। अब तक 1977, 1989, 1991, 1998 और 1999 में बिहार का मतदान ग्राफ 60 प्रतिशत से ऊपर रहा है। 

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इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार बिहार के 60.76 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट किए थे। तब जनता पार्टी की सरकार बनी थी और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे। 

बिहार के मतदाताओं के मिजाज की  गर्मी दूसरी बार 1989 में दिखी। इस बार 60.24 प्रतिशत मतदाताओं ने मतपेटी में मतपत्र डाले। असर यह हुआ कि देश पर राज कर रहे राजीव गांधी की कुर्सी डोल गई। यही वो चुनाव था, जब भाजपा ने दो सीट से 85 सीट का सफर तय कर देश में भगवा झंडा के लिए जमीन तैयार कर दी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नेशनल फ्रंट को लाल कृष्ण आडवाणी का समर्थन मिला। 

तीसरी बार बिहार के 60.35 प्रतिशत मतदाताओं ने 1991 के लोकसभा चुनाव में वोट डाला।

इस चुनाव की कहानी लालकृष्ण आडवाणी की रथ-यात्रा से जुड़ी है। रथ-यात्रा के दौरान 23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया। तब आडवाणी ने केंद्र की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

उसके बाद राजनीतिक घटनाक्रम में चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने। पर सरकार ज्यादा दिन चल नहीं सकी और 1991 में चुनाव कराया गया। राजनीतिक थर्मामीटर पर बिहार का पारा दिखा और वीपी सिंह की पार्टी बुरी तरह खारिज हुई । अलबत्ता भाजपा 85 से 120 पर पहुंच गई। देश में सरकार बनाने में कांग्रेस कामयाब हुई और पी.वी. नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने। 

1998 में बिहार के 64.6 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट कर एक बार फिर से देश की सरकार को बदल दिया। 1996 में 13 दिनों की अटल बिहार वाजपेयी सरकार बनी थी। उसके बाद प्रधानमंत्री बने एच. डी. देवगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल को 1998 में बदलने में बिहार के मतदाताओं ने जमकर जोर लगाया।

देश की सत्ता बदली ओर डोर अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में आई। पर यह सरकार मात्र तेरह महीने चली थी। 60 फीसदी से अधिक मतदान कर वाजपेयी को पीएम बनाने वाले बिहार ने केंद्र की सरकार गिरने पर गुस्से का इजहार किया। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बिहार के 61.48 प्रतिशत मतदाताओं ने पहली बार दुबारा अपनी पसंद को फिर से सत्ता में लाने के लिए वोट किया। वाजपेयी फिर से देश के प्रधानमंत्री बने। 


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