यहां मौत के बाद लोगों को नहीं मिलती इज्जत से दो गज जमीन, घर में ही दफनाते हैं शव
बिहार के मधेपुरा जिले का एक गांव है केवटगामा जहां की कहानी सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी। यहां के लोग अपने परिजनों की मौत के बाद उनके शव को या तो घर में या घर के आसपास दफनाते हैं।
पटना [जेएनएन]। उफ्फ, यहां अजीब हालात हैं और मानवता को शर्मसार करने वाली एेसी घटना जिसे सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी। गरीबी और लाचारी का यहां एेसा आलम है कि यहां मरने के बाद लोगों को इज्जत से दो गज की जमीन भी नहीं मिलती। यहां के लोग घर में ही अपनों के शव दफनाने को मजबूर हैं। ये हम बिहार के मधेपुरा जिले के केवटगामा गांव की बात कर रहे हैं, जहां आज भी सुविधाओं का नितांत अभाव है। यह गांव इस जिले के कुमारखंड प्रखंड के अंतर्गत आता है। यहां सामने आई इस तरह की घटनाओं से किसी भी सभ्य समाज का सिर शर्म से झुक जाएगा। यहां पर गरीबी और लाचारी का आलम इस कदर है कि लोगों को अपने ही घर में शव को दफनाना पड़ रहा है।
आपको जानकर हैरत होगी कि यहां पर कोई श्मशान घाट तक नहीं है। इससे भी बड़ी हैरत की बात ये है कि यहां पर इसके लिए जमीन ही नहीं मिली है। लिहाजा अपने ही घर में शव को दफनाना एक बड़ी मजबूरी भी बन चुकी है। इसी मंगलवार को इस गांव की सोहगिया देवी की मौत के बाद सामने आई हृदयविदारकर घटना की अब हर जगह चर्चा हो रही है।
गांव के लोगों के मुताबिक काफी समय से यहां के लोग अपने परिजनों के शवों को घर में ही दफनाते आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यहां पर फैली गरीबी है। इन लोगों की माली हालत ऐसी है कि चाहकर भी यह दाह संस्कार में खर्च होने वाली पूंजी को नहीं जुटा पाते हैं। शुरुआत में इसी खर्च से बचने के लिए लोगों ने पहले अपने परिजनों के शवों को नदी में फेंकना प्रारम्भ किया था।
बाद में इस पर रोक लगा देने के चलते यह लोग शवों को नदी किनारे ही दफनाने लगे। लेकिन यहां पर इन्हें इलाके के दबंगों की दबंगई का भी सामना करना पड़ा। इन दबंगों ने जिनमें कई अवैध कब्जाधारी भी शामिल थे, नदी किनारे भी शव को दफनाने से रोक लगा दी। इसके बा गांववालों के पास शव के अंतिम संस्कार का कोई और जरिया नहीं बचा और मजबूरीवश इन लोगों ने घर में या आंगन में ही शवों को दफनाया शुरू कर दिया।
शव जलाने तक के नहीं है पैसे
स्थानीय लोग बताते हैं यहां गरीबी का आलम कुछ ऐसा है कि लोगों के पास शव को हिंदू रितिरिवाज के तरीके से अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे नहीं हैं। एेसे में किसी की मौत इनके लिए परेशानी का सबब बन जाती है। शव जलाने के लिए लकड़ी खरीदने तक के पैसे का इंतजाम ये लोग नहीं कर पाते हैं। बताते चले कि केवटगामा टोला में 265 परिवारों में से 230 परिवार एससी-एसटी समुदाय के ही हैं। इन परिवारों को रहने के लिए तीन डेसिमिल जमीन के अलावा कुछ भी उपलब्ध नहीं है। इसी तीन डेसिमिल जमीन में ही इन्में अपना सारा कार्य करना पड़ता है।
घर में ही दफनाया पत्नी का शव
केवटगामा गांव के 40 वर्षीय हरिनारायण ऋषिदेव एक भूमिहीन दिहाड़ी मजदूर हैँ। उन्होंने बताया कि उनकी 35 वर्षीय सहोगिया देवी रविवार को डायरिया से पीड़ित हो गई और अगले दिन उनकी मौत हो गई। ऋषिदेव ने बताया कि जब किसी ग्रामीण ने अपनी जमीन में पत्नी का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी तो उन्होंने मजबूरन उसे अपने ही घर में दफनाने का फैसला करना पड़ा।
हरिनारायण ने बताया कि यहां भूमिहीन लोगों को गरिमा से जीने का हक भी नहीं है और मरने के बाद भी उन्हें दो गज जमीन नसीब नहीं हो पाती है। उन्होंने हर पंचायत में एक सामुदायिक श्मशान बनाने की मांग करते हुए कहा, ‘मैं नहीं चाहता कि मेरे जैसे अन्य भूमिहीन भाइयों को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़े।
इन्हें घरों में है दफनाया गया है
सोहगिया देवी से पूर्व दर्जन से अधिक लोगों को घर के पास या घर में दफनाया जा चुका है। पूर्व पंचायत समिति के सदस्य के पिता परमेश्वरी ऋषिदेव, मां कविया देवी, भाई भोगी ऋषिदेव और सास दुखनी देवी को अपने घर के सामने ही दफन किया है। इसी प्रकार 18 वर्षीय आनंद कुमार, बादैर ऋषिदेव, खट्टर ऋषिदेव, फुदिया देवी एवं सविया देवी के शव को घर के आंगन में दफनाया गया है।
मधेपुरा के एसडीओ ने कहा-
बुधवार को एसडीओ वृंदा लाल गांव पहुंचे और सीओ को सरकारी भूमि चिन्हित कर श्मशान घाट के लिए प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि श्मशान निर्माण के लिए सरकारी भूमि को चिन्हित करने का निर्देश सीओ को दिया गया है। जमीन मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
मधेपुरा के डीएम ने कहा-
मधेपुरा के डीएम ने इस बाबत कहा कि केवटगामा की समस्याओं के समाधान को एसडीओ को भेजा गया है। उनके रिपोर्ट के बाद वहां के समस्या का निदान किया जाएगा। जमीन चिन्हित कर वहां शमशान का निर्माण किया जाएगा।
कहा -गांव के मुखिया ने
गांव के पूर्व मुखिया बेचन ऋषिदेव ने कहा, ‘दमित, भूमिहीन अनुसूचित जाति के लोगों को मरने के बाद भी शांति मिलना मुश्किल है। हरिनारायण की व्यथा सरकार तक पहुंचनी चाहिए और तत्काल सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए अन्यथा हम आंदोलन को मजबूर हो जाएंगे।’