आंखों की अनदेखी कहीं आपको न पड़ जाए भारी, हो जाए सावधान
यदि समय रहते आंखों में हो रही समस्याओं का समाधान न निकाला जाए तो संभावना है कि हम अंधेरे में जीने को विवश हो जाएंगे।
पटना [जेएनएन]। आंखों की अनदेखी आपको कभी भी खतरे में डाल सकती है। आंखों में यदि किसी तरह की समस्या हो तो शीघ्र ही चिकित्सक से परामर्श लिया जाना चाहिए। नहीं तो आप अंधेरे में जीने को विवश को हो जाएंगे।
प्राय: देखा जा रहा है कि आखों में मोतियाबिंद की समस्या भयावह रूप ले रही है। पूर्व समय में यह बीमारी 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की उम्र मानी जाती थी। लेकिन यह अब 35-40 वषरें के उम्र के लोगों में भी होने लगी है। अंधेपन का कारण बनने वाली बीमारी मोतियाबिंद का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। मोतियाबिंद या सफेद मोतिया आख के लेंस में सफेदी आ जाने के बाद की बीमारी है। इसके आख में प्रवेश करने के बाद ही आखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। भारत में मोतियाबिंद के मामले अधिक है। खासकर बिहार में यह आकड़ा ज्यादा है। लोगों में जागरूकता के अभाव के कारण लोग मोतियाबिंद के शिकार हैं। मोतियाबिंद मधुमेह और गुर्दे की खराबी जैसे मेटाबोलिक रोगों, मायोपिया या निकट दृष्टि दोष, ग्लूकोमा, शक्तिवर्धक स्टेरायड के सेवन, धूम्रपान और पोषक तत्वों की कमी के कारण भी होता है। मोतियाबिंद के लक्षण आने के बाद इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आखों के अन्य ऑपरेशनों में मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सफलता की दर सबसे अधिक होती है। इसे नजरअंदाज करने से खतरा अधिक बढ़ जाती है।
ऐसे करे मोतियाबिंद की पहचान
मोतियाबिंद की शुरुआत होते ही आखों से धुंधला दिखाई देता हैं, नजदीक की वस्तुएं बिना चश्मे के दिखती हैं जो धीरे-धीरे कम होने लगती है।
रात में चंद्रमा देखने पर एक साथ कई चंद्रमा दिखाई देती है।
अधिक पावर का चश्मा लगाने पर भी सामान्य रूप से दिखाई नहीं देता।
अखबार पढ़ने या टीवी देखने पर आखों पर दबाव पड़ता है।
आखों पर दबाव पडऩे से सरदर्द देने लगता है।
ऑपरेशन के नई-नई तकनीक का हुआ इजाद
मोतियाबिंद की ऑपरेशन को लेकर नई-नई तकनीक का इजाद हो चुका है। यह तकनीक का उपयोग अब सरकारी अस्पतालों में भी हो रहे है। मोतियाबिंद सर्जरी की तकनीकों में विकास के कारण अब मोतियाबिंद की ऑपरेशन आरंभ में ही कराना कराना बेहतर हो गया है। मोतियाबिंद के मरीज सही समय पर अपनी आखों की जाच और रोग की पहचान करके मोतियाबिंद की सर्जरी कराना काफी लाभदायक रहता है।
अब फोल्डेबल लेंस का प्रत्यारोपण संभव
मोतियाबिंद का ऑपरेशन के माध्यम से फोल्डेबल लेंस का प्रत्यारोपण संभव हो गया है। यह सबसे छोटे चीरे के साथ की जाने वाली ऑपरेशन है। इसमें चीरे का आकार 2-3 एमएम का होता है। फोल्डेबल लेंस के माध्यम अत्याधुनिक ऑपरेशन कराकर दृष्टि सुधार कराया जा सकता है। एस्फेरिक आईओएल लेंस मुलायम एवं लचीले पदाथरें से बने होते हैं। इस लेंस को मोड़कर आख में प्रवेश कराया जाता है। जो अपने आप फैल कर प्रत्यारोपित हो जाता है। यह लेंस सूर्य से निकलने वाली किरणों से भी रेटिना की रक्षा करता है। ऐसे मरीजों में सर्जरी के कारण दृष्टि दोष (एस्टिगमेटिज्म) होने की आशका भी कम होती है। जिन मरीजों में एस्टिगमैटिस्म की परेशानी रहती है उसमें टोरिक फोल्डेबल लेंस प्रत्यारोपण से इसका निदान किया जा सकता है। मल्टी फोकल मल्टी फोकल फोल्डेबल जैसी नई तकनीक के कारण अब मरीज को निकट एवं दूर की वस्तुएं देखने के लिए चश्मा पर निर्भरता कम हो गई है।
इन बातों पर रखें ध्यान
मोतियाबिंद को रोकने का नहीं हैं उपाय।
आहार पर ध्यान रख इसके विकास पर पाया जा सकता हैं काबू।
धूम्रपान से परहेज करें।
धूप से निकलने से पहले पहन ले टोपी या धूप के चश्मे।
शराब के सेवन से बचें।
शुगर मरीज लेवल को रखें नियंत्रित।
हर तीन-चार महीने में आखों की अवश्य कराएं जाच।
एनाबोलिक स्टेरॉयड न लें।