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मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ मोह व्यक्ति को पथ से भ्रष्ट नहीं कर सकता

मन पर नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति आत्मसंयम के साथ जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है किन्तु अनियंत्रित गति के साथ दौड़ रहे मन के साथ जो चलता है उसे भारी कष्ट उठाना पड़ सकता है। उसी प्रकार जैसे अनियंत्रित गति से वाहन दौड़ाने पर दुर्घटना की संभावना होती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 11:01 AM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 11:01 AM (IST)
मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ मोह व्यक्ति को पथ से भ्रष्ट नहीं कर सकता
धैर्य और साहस के साथ इस ओर निरंतर प्रयत्न करने पर अवश्य ही संयम साधना पूर्ण होती है

जासं, पटना। आत्मसंयम अर्थात मन को वश में करना, इंद्रियों को वश में रखना। मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ मोह व्यक्ति को पथ भ्रष्ट नहीं कर सकता। मनुष्य की पहचान उसके मन से ही होती है और मन की गति बहुत तीव्र होती है। मन पर नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति आत्मसंयम के साथ जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है, किन्तु अनियंत्रित गति के साथ दौड़ रहे मन के साथ जो चलता है उसे भारी कष्ट उठाना पड़ सकता है। उसी प्रकार जैसे अनियंत्रित गति से वाहन दौड़ाने पर दुर्घटना की संभावना होती है।

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उदाहरण के लिए एक छात्र को ही ले लीजिए, वो अपना कोर्स और परीक्षा की तैयारी करते समय यदि उसका मन इधर-उधर भागेगा तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से वंचित रह जाएगा। परीक्षा भवन में भी बहुत से विद्यार्थी सब कुछ याद होते हुए भी केवल इसीलिए मात खा जाते हैं कि प्रश्नपत्र सामने आते ही धैर्य खो बैठते हैं। जल्दी जल्दी प्रश्नपत्र हल करने की घबराहट में या तो आधा अधूरा करके आते हैं या फिर गलत उत्तर लिखकर आ जाते हैं। यदि पढ़ाई करते समय ही उन्हें अपने मन और भावनाओं पर नियंत्रण रखना, धैर्य के साथ प्रश्नों को समझ कर उनका उत्तर देने की शिक्षा दी जाए तो उनके प्रदर्शन में बहुत सुधार हो सकता है।

डॉन बोस्को एकेडमी की प्राचार्या मेरी अल्फासो ने बताया कि इस प्रकार आत्मसंयम का अर्थ हुआ धैर्य जीवन के हर क्षेत्र में धैर्यवान रहने की आवश्यकता है। प्रेम, व्यवसाय या कोई भी क्षेत्र हो जब हम अपनी भावनाओं को उन्मुक्त रूप से प्रवाहित होने देते हैं तो अपनी बहुत सारी ऊर्जा समाप्त कर देते हैं। आत्म संयम के अभिलाषियों के लिए दोषों, बुराइयों को जानबूझ कर छिपाना, उन पर कृत्रिमता का पर्दा डालकर ढक देना अथवा स्वीकार करने में संकोच करना सर्वथा अनुपयुक्त है। चरित्र गठन या आत्म संयम के लिए अपनी बुराइयों को मुक्त कंठ से स्वीकार करना होगा। एकांत में बैठकर अपने हृदय के समक्ष अपनी बुराइयों, दुष्कृत्यों एवं दुíवचारों पर विचार करके उन्हें स्वीकार करना होगा। संयम साधना के पथ पर चलना कोई आसान कार्य नरीं है। जब मनुष्य को उसकी बुरी आदतें, दुíवचार, वासनाएं पछाड़ पछाड़ कर पटकती हैं तब अच्छे-धैर्यवानों का धैर्य टूट जाता है, निराशा टपकने लगती है और सफलता का भविष्य संदिग्ध दिखाई देता है। असंयम के शैतान से लड़कर उस पर विजय प्राप्त करना कोई आसान कार्य नहीं है। धैर्य और साहस के साथ इस ओर निरंतर प्रयत्न करने पर अवश्य ही संयम साधना पूर्ण होती है और मनुष्य लक्ष्य में सफल हो जाता है।


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