बेड नहीं होने का हवाला देकर लौटा देते हृदय के मरीज, इधर करोड़ों की इमारत फांक रही धूल
हाल आइजीआइसी के नए बने भवन का उद्घाटन के बाद से आजतक उपचार व्यवस्था शुरू कराने की दिशा में नहीं हुआ कोई काम ठंड के साथ बढ़े ह्रदय रोगी इमरजेंसी में बेड नहीं होने से बिना उपचार किए जा रहे वापस आइसीयू और वार्डों में भी नहीं बढ़ सके बेड
पटना, जेएनएन। प्रदेश में ह्रदय रोग का इकलौता सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान (आइजीआइसी) के नए भव्य भवन के उद्घाटन को तीन माह से अधिक समय बीत चुका है लेकिन उपचार व्यवस्था शुरू कराने की दिशा में कोई काम नहीं किया गया है। उद्घाटन के समय स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने 15 दिन में फर्नीचर आदि मुहैया कराने की घोषणा की थी। इस पर तत्कालीन निदेशक ने फर्नीचर मिलते ही ओपीडी को नए भवन में शिफ्ट करने और अन्य सामान मिलते ही एक से डेढ़ माह में इमरजेंसी व अन्य इलाज की व्यवस्था कराने की घोषणा की थी। इसके विपरीत भवन में उपचार व्यवस्था शुरू नहीं होते देख डॉक्टरों व ओपीडी में आए मरीज इस परिसर का इस्तेमाल पार्किंग के रूप में करना शुरू कर दिया है। वहीं हर दिन जिन मरीजों को इमरजेंसी से यह कहकर लौटाया जाता है कि बेड नहीं, इस बंद पड़े भव्य भवन को देखकर उनके दिल से आह निकल जाती है।
तत्कालीन निदेशक ने तो दिसंबर तक हृदय प्रत्यारोपण तक का किया था दावा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट रहे हृदय रोग संस्थान की सुविधाओं में चार-चांद लगाने के लिए सरकार से लेकर संस्थान के मुखिया तक दावे बड़े-बड़े करते हैं। उद्घाटन के बाद जब स्वास्थ्य मंत्री ने फर्नीचर आदि की व्यवस्था करा 15 दिन में ओपीडी नए भवन के सुसज्जित चैंबर में शिफ्ट करने और अगले एक से डेढ़ माह में इमरजेंसी और इसके बाद धीरे-धीरे एक नई कैथलैब, आइसीयू, सीसीयू आदि शुरू कराने की बात कही थी। तत्कालीन निदेशक डॉ. अरविंद कुमार ने तो उस समय दिसंबर तक हृदय प्रत्यारोपण शुरू कराने का दावा किया था। इसके लिए उन्होंने दूसरे राज्यों के विशेषज्ञों से बातचीत भी की थी।
नए भवन के शुरू होने से कई गरीबों की बच जाती जान
गरीब हृदय रोगियों के उपचार का एकमात्र केंद्र आइजीआइसी ही है। यहां मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष से मिले अनुदान की मदद पेसमेकर से लेकर एंजियोप्लास्टी तक गरीब मरीज मुफ्त करा सकते हैं। ठंड के मौसम में ह्रदय रोगियों की संख्या बढ़ी है लेकिन कोरोना जांच के कारण इमरजेंसी में भर्ती मरीजों को इसके बाद ही वार्ड में शिफ्ट करने से हर दिन आठ से दस गंभीर मरीजों को मायूस लौटना पड़ रहा है। हाल के दिनों में बेगूसराय की एक महिला की पीएमसीएच-आइजीआइसी का चक्कर काटते-काटते बिना उपचार मौत हो गई थी।