ऐसी ही हालत रही तो सबसे नाटे रह जाएंगे बिहार के लोग, पटना विश्वविद्यालय के शोध ने बढ़ाई चिंता
स्वस्थ बचपन में कुपोषण की सेंध मां के दूध से आस जनसंख्या अनुसंधान केंद्र ने राज्य के बच्चों की स्थिति पर किया शोध कुपोषण के कारण लगभग आधे बच्चे बौनापन के हैं शिकार राष्ट्रीय औसत के पास पहुंचा कमजोर बच्चों का फीसद
पटना [जयशंकर बिहारी]। बिहार में पांच साल से कम उम्र के 48 फीसद बच्चे बौनापन के शिकार हैं, जबकि 44 फीसद कम वजन और 20 फीसद कमजोर बच्चे हैं। बौनापन की राष्ट्रीय सूची में राज्य पहले नंबर पर है। हालांकि अन्य दो मामलों में क्रमश: 10वें व तीसरे नंबर पर है। राज्य में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति पर पटना विश्वविद्यालय के पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर ने शोध पत्र जारी किया है।
केंद्र प्रभारी प्रो. दिलीप कुमार ने बताया, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में सबसे बड़ी बाधा कुपोषण है। पिछले कुछ सालों में केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ बच्चों को मिला है। लेकिन, यह नाकाफी साबित हो रहा है। कुपोषण पर लगाम में सबसे कारगर हाथियार मां का दूध है। लेकिन, कम उम्र में विवाह, हीमोग्लोबिन की कमी और बच्चों के बीच अंतराल कम होना बाधा उत्पन्न कर रहा है।
कमजोर बच्चों में राष्ट्रीय औसत से बिहार बेहतर
शोधार्थी डॉ. अजीत कुमार ने बताया, कुपोषण के तीन मानकों में राज्य राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है। 2005-06 में बौनापन, कमजोर तथा कम वजन के बच्चों की संख्या बिहार व केंद्र में क्रमश: 55.6 व 48 फीसद, 27.1 व 19.8 फीसद तथा 55.9 व 42.5 फीसद थी। यह आंकड़ा 2015-16 में क्रमश: 48.3 व 38.4 फीसद, 20.8 व 21 फीसद तथा 43.9 व 35.7 फीसद था। 2019 में भी राष्ट्रीय और राज्य के आंकड़े में अंतर अधिक है। प्रो. दिलीप कुमार ने कहा, आंगनबाड़ी केंद्रों में सुविधाएं बेहतर होने का प्रभाव कमजोर बच्चों की संख्या में कमी के रूप में देखा जा सकता है। 2015-16 में कमजोर बच्चों की संख्या में राज्य राष्ट्रीय औसत से नीचे चला आया था।
बौनापन में सीतामढ़ी और कमजोर बच्चों में अरवल शीर्ष पर
बौनापन के शिकार सबसे अधिक बच्चे सीतामढ़ी जिले के हैं। यहां के 57.3 फीसद बच्चे इससे प्रभावित हैं। नालंदा, कैमूर, गया, जहानाबाद, अरवल, शिवहर, वैशाली, मधुबनी, लखीसराय व मधेपुरा के आधे से अधिक बच्चे बौनापन के शिकार हैं। कमजोर बच्चों के मामले में अरवल शीर्ष पर है। यहां के 30.7 फीसद बच्चे इससे प्रभावित हैं। इस श्रेणी में जमुई, पटना, भोजपुर, गया, शेखपुरा व बांका रेड जोन में है। वहीं, कम वजन वाले सबसे अधिक 54 फीसद बच्चे अरवल जिले के हैं।