चार माह पटना में रुके थे गुरु नानक देव, जानें श्रीहरिमंदिर जी पटना साहिब का इतिहास Patna News
गुरु नानक देव जी ने चार धार्मिक यात्राएं कीं। अपनी पहली धार्मिक यात्रा में अनेक शहरों से गुजरते हुए नानक देव पटना साहिब भी पहुंचे थे। आइए जानते हैं इतिहास
प्रभात रंजन/अनिल कुमार, पटना। सिख पंथ के प्रथम गुरु नानक देव ने अपने जीवन दर्शन के माध्यम से लोगों को जीने का सही मार्ग बताया। नानक जी ने आमजन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने के लिए चार धार्मिक यात्राएं कीं। अपनी पहली धार्मिक यात्रा में अनेक शहरों से गुजरते हुए नानक देव पटना साहिब भी पहुंचे थे। वे यहां चार महीने तक रहे। जिन-जिन स्थानों से गुरु नानक गुजरे वे आज तीर्थस्थल का रूप ले चुके हैं। इन्हीं में एक सिखों का दूसरा सबसे बड़ा तख्त श्री हरिमंदिर साहिब भी है।
पटना साहिब में पड़े थे चरण
गुरुनानक देव के कार्तिक पूर्णिमा संवत 1526 विक्रमी यानी वर्ष 1469 ई. को ननकाना साहिब में पिता मेहता कालूचंद और माता तृप्ता जी के घर अवतरित श्री गुरुनानक देव के बारे में भाई गुरदास की प्रसिद्ध उक्ति है- सतगुरु नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानन होआ। अर्थात संसार से अज्ञान की धुंध समाप्त करके ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले प्रथम पातशाह ने अद्भुत कौतुक किए। गुरु नानक देव ने भारत के कोने-कोने का भ्रमण किया। 30 वर्ष की उम्र में गुरु नानक देव ने पंजाब स्थित सुल्तानपुर में अपने परिवार से अनुमति ली और मरदाना के साथ पूर्व की ओर अपनी प्रथम उदासी यात्रा के लिए प्रस्थान किए। वर्ष 1506 में गुरु नानक ने पूर्व की प्रथम उदासी यात्रा के दौरान बिहार में कदम रखे। तभी वे पटना साहिब भी आए थे।
वे बिहार पहुंचने से पूर्व सैय्यदपुर (पाकिस्तान में आधुनिक इमीनाबाद), हरिद्वार, प्रयागराज और बनारस में रुके थे। गुरुनानक देव यात्रा के क्रम में बिहार पहुंचने के बाद गया के विष्णुपद मंदिर के समीप देवघाट में रुके थे। यात्रा के क्रम में रजौली, राजगीर, अकबरपुर, मुंगेर, भागलपुर समेत अन्य स्थानों पर जाने के प्रमाण हैं। हाजीपुर व लालगंज में भी नानकशाही सिख निवास करते हैं।
चार माह रहे थे गुरु नानक
कथावाचक ज्ञानी दलजीत सिंह बताते हैं कि पटना में गुरु नानक के आगमन की सूचना तेजी से फैल गई। यहां अपने धर्मोपदेश में गुरु नानक देव ने मानव के अंदर की दिव्य रोशनी की तुलना एक बेशकीमती रत्न के साथ की थी। उस समय भाई मरदाना ने पूछा कि अगर हमारे अंदर यह दिव्य रोशनी एक दुर्लभ रत्न की तरह है तो हर कोई इसे पहचान क्यों नहीं पाता? क्यों हर कोई इसका अधिक से अधिक लाभ नहीं उठा पाता है। उस समय गुरु नानक मौन रहे।
अगले दिन जब मरदाना को भूख लगी तो गुरु नानक ने बेशकीमती नग बेचकर अपना भोजन खरीदने को कहा। वह सब्जी विक्रेता, मिठाई दुकानदार, वस्त्र कारोबारी, सोनार के पास गया। वहां उसे उचित कीमत नहीं मिली। तब वह शहर से सबसे अमीर जौहरी सालिस राय के पास गया। सालिस राय ने बेशकीमती नग देखने के बदले उसे 100 रुपये दिए। हैरान मरदाना मणि और रुपये लेकर वापस गुरु नानक के पास पहुंचा तो उन्होंने रुपये रखने से मना कर दिया। जब मरदाना ने सालिस राय को रुपये वापस किए तो जौहरी व उसका सेवक अधरखा गुरु जी से मिलने को बैचेन हो गए।
विनम्रता देख हो गए भावविह्लल
गुरु जी से मिलते ही दोनों उनके शिष्य बन गए। गुरु नानक उनकी विनम्रता से भावविह्वल हो गए और सालिस राय के मकान पर चार माह ठहरने को राजी हो गए। इसी मकान में धर्म प्रचार केंद्र स्थापित किया गया। कथावाचक ने बताया कि गुरुनानक ने ही यहां पंगत में संगत के लंगर छकने की परंपरा चालू की। इसी मकान में नौवें गुरु तेग बहादुर आए और दशमेश गुरु गोविंद सिंह का जन्म भी यहीं हुआ। यह वही मकान है, जो ऐतिहासिक रूप से सिख पंथ के पांच तख्तों में दूसरा तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब बन गया। यहां से गुरु नानक देव हरिहर क्षेत्र मेला सोनपुर भी गए थे।
गायघाट गुरुद्वारा-बड़ी संगत में आए थे गुरु नानक देव
तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित गायघाट गुरुद्वारा पहले भगत जैतामल का पुराना घर हुआ करता था। सबसे पहले इस भूमि को गुरु नानक देव ने यहां आकर पवित्र किया। भक्त जैतामल जी गुरुजी के शिष्य बने और इस जगह को संगत का नाम दिया गया, जो बाद में बड़ी संगत गायघाट के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके बाद नौवें गुरु तेग बहादुर पूरब की अपनी यात्रा के दौरान परिवार समेत इस जगह पर आकर ठहरे थे। भक्त जैतामल जी को मुक्ति देने के बाद परिवार समेत 1666 ई. में खालसा राय जौहरी की संगत (वर्तमान का तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब) में आए थे। यहां पर प्रबंधक समिति द्वारा प्रत्येक वर्ष श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश पर्व मनाया जाता है।