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Guru Gobind Singh Jayanti 2021: फूलों की बारिश में बधाइयां...बधाइयां...से गूंजा बाललीला गुरुद्वारा

ऐतिहासिक बाललीला गुरुद्वारा मैनी संगत में गुरुवार को फूलों की बारिश के बीच 354वां जन्मोत्सव संत बाबा कश्मीर सिंह जी भूरिवाले की देखरेख में मनाया गया। बाबा सुखविंदर सिंह सुख्खा तथा बाबा गुरविंदर सिंह की देखरेख में विशेष दीवान का आयोजन किया गया।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 04:41 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 04:41 PM (IST)
दशमेश गुरु के 354वें जन्मोत्सव पर बाल लीला गुरुद्वारा में होता आयोजन।

जागरण संवाददाता, पटना सिटी: सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह के बचपन के चमत्कार वाले ऐतिहासिक बाललीला गुरुद्वारा मैनी संगत में गुरुवार को फूलों की बारिश के बीच 354वां जन्मोत्सव संत बाबा कश्मीर सिंह जी भूरिवाले की देखरेख में मनाया गया। बाबा सुखविंदर सिंह सुख्खा तथा बाबा गुरविंदर सिंह की देखरेख में विशेष दीवान का आयोजन किया गया। शबद-कीर्तन-कथा-प्रवचन के बाद विश्व शांति के लिए अरदास किया। संतों ने बाला प्रीतम दशमेश गुरु के बचपन से जुड़े संस्मरणों तथा बलिदान की कथा सुनाकर संगतों को भाव विह्वल किया। इसी के साथ चार दिनों से पटना साहिब में चल रहे 354वें प्रकाश पर्व की गुरुवार को समाप्ति हुई। विभिन्न राज्यों से पहुंची संगत घुघनी-पुड़ी का प्रसाद ग्रहण कर लौटने लगी है।

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मित्र प्यारे नु हाल मरीदा दा कहना... से संगत निहाल

जन्मोत्सव पर कीर्तनी रागी जत्थाें ने मित्र प्यारे नु हाल मुरीदा दा कहना..., तुम हो सब राजन के राजा..., तही प्रकाश हमारा भयो..., वाहो-वाहो गोविंद सिंह, आपे गुरु चेला..., तेरी सेवा-तेरी सेवा... से संगतों को निहाल किया। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक तख्त श्री हरिमंदिर में दशमेश गुरु के प्रकाशोत्सव के अगले दिन बाललीला गुरुद्वारा में जन्मोत्सव मनाया जाता है।


दशमेश गुरु की बलिदानी अनोखी मिशाल

संत बाबा कश्मीर सिंह भूरिवाले ने कहा कि विश्व इतिहास में श्रभ् गुरु गोविंद सिंह की बलिदानी अनोखी मिसाल है। गुरु जी ने दूसरों के लिए न केवल प्राण न्योछावर किए बल्कि जो कुछ अपना था वह सारा देश को अर्पण कर दिया। उन्होंने अपने चारों पुत्रों को भी धर्म के लिए कुर्बान कर दिया। अपना सर्वस्व न्योछावर कर वे सबसे बड़े त्यागी बन गए। संत भूरिवाले ने बाहर से आए विशिष्टों को सिरोपा देकर सम्मानित किया। कथावाचकों में लुधियाना के ज्ञानी पिंदरपाल सिंह, भाई अवतार सिंह, ज्ञानी गुरबाज सिंह, ज्ञानी करम सिंह ने श्री गुरु गोविंद सिंह की जीवनी पर प्रकाश डालते कहा कि पटना साहिब में जन्में श्री गुरु गोविंद सिंह बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। स्टेज की सेवा अमृतसर के भाई जगदेव सिंह ने किया।

बचपन की कथा सुनकर भावुक हुई संगत

कथावाचक ज्ञानी सुखदेव सिंह ने बाललीला मैनी संगत में कथा के दौरान बताया कि राजा फतेहचंद मैनी को कोई संतान नहीं थी। गोविंद राय प्रतिदिन दोस्तों के साथ राजा के महलों में खेलने जाते थे। संतान नहीं होने के कारण राजमाता विशभंरा देवी बराबर गोविंद राय जैसे बालक का संकल्प करती प्रभु से रोज प्रार्थना करती थी। एक दिन रानी की गोद में बैठ गोविंद राय ने मां कहकर पुकारा। इस बात से रानी खुश होकर उन्हें धर्मपुत्र स्वीकारा। खेलने के क्रम में गोविंद राय को भूख लगी थी। तब रानी ने उबले चने यानी घुघनी व पूड़ी सभी बच्चों को खिलाया। माता के साथ दशमेश गुरु की बातें व खेल सुनकर संगत भावुक हो गई। तब से यहां प्रसाद के रूप में घुघनी-पुड़ी ही संगतों को दिया जाता है।

पचास हजार से अधिक लोगों ने छके लंगर

प्रकाश पर्व पर आए संगतों ने पंगत में बैठकर लंगर छके। लंगर की सेवा महंत कश्मीर सिंह भूरिवाले स्वयं कर रहे थे। सुबह से देर रात तक लंगर चलता रहा। विभिन्न राज्यों से आए लोग सेवा में जुटे रहे। पचास हजार से अधिक लोगों ने बाललीला गुरुद्वारा में मत्था टेक लंगर छके।


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